हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा की याद में मनाया सत्ताईस रजब का त्योहार

बिड़ौली शामली।मुसलमानों के त्योहारों की बात करे तो ईद बकराईद के अलावा खुद उनको भी नहीं पता रहता है कि कब कौनसा दिन आता है। अभी रजब का महीना चल रहा है। इसके बाद शाबान और फिर रमजान आएगा। हाल ही में कुंडे का त्योहार 22 रजब को मनाया गया था। अब 7 फरवरी 2024 की शाम से यानी 8 फरवरी को शब-ए-मेराज की रात आ गई है मंगलवार को मिली जानकारी के अनुसार आप को बता दे कि गांव बिड़ौली  सादात में हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा सल्लाहो वा आलेहि सल्लम की याद 27 रजब के दिन  नज़्र नियाज़ का एहतमाम किया गया इसी को याद करते हुए  शब-ए-मेराज यानी मेराज की रात में हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लाहो आलेही व सल्लम ने जमीन से आसमान का सफर किया था इसलिए 27 रजब को शबे ए मेराज़ यानी मेराज की रात कहा जाता है शबे ए मेराज में दुनिया के मुसलमान शब ए मेराज में नियाज़ नज़्र का प्रोग्राम किया जाता है जिस में मिट्टी के बर्तन में नज़्र दिलाते है और छोटे बच्चे नज़्र का भोजन करते है इस अवसर पर मोलाना ऑन मोहम्मद साहब मुज़फ्फरनगरी ने  देश दुनिया के लिए  दुआ कराई शब ए
 मेराज की रात में ही हजरत मोहम्मद मुस्तफ़ा  साहब को अल्लाह की तरफ से नमाज का तोहफा मिला था। जन्नत और जहन्नम यानी स्वर्ग का दीदार मिला 
आखिरी नबी हजरत मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहो वा अलैहि सल्लम ने इस रात को दो सफर किये। जमीन का सफर मक्का से मस्जिदे अक्सा तक का था, जिसे इसरा कहा जाता है। मस्जिदे अक्सा वही पवित्र स्थान है अल मिराज जिसे इसरा अल मिराज भी कहा जाता है। एक ऐसी ऐतिहासिक रात जिसका इस्लामी इतिहास में अहम किरदार है। जब आखिरी नबी हजरत मोहम्मद मुस्तफा सल्लाहों अलैहि वसल्लम को अल्लाह रब्बुल इज्ज़त ने जमीन से सीधे सातवे आसमान पर मुलाकात के लिए बुलाया था। इस सफर को 2 भागों में विभाजित किया गया है, जिन्हें इसरा और मेराज  कहा जाता हैं। यानी मक्का से यरुशलम मस्जिदे अक्सा का सफर इसरा यानी जमीनी सफर है। जबकि मस्जिदे अक्सा से सातवे आसमान तक का सफर मेराज कहलाता है। सातवे आसमान पर अल्लाह से मुलाकात के बाद पैगंबरे इस्लाम को 50 नमाजों का तोहफा दिया गया था। धीरे धीरे कम करवाते हुए आखिर में 5 नमाजे रह गई। इस रात में मुसलमान अपने गुनाहों पर शर्मिंदा होकर रब की बारगाह में खूब नमाज पढ़ते हैं।
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