लखनऊ : मुहर्रम के महीने से इस्लामी साल की शुरुआत होती है। इस्लामी साल का पहला महीना मोहर्रम कहलाता है। पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के नवासे हजरत इमाम हुसैन (A.S.) और उनके साथियों की शहादत की याद में हर साल मोहर्रम मनाया जाता है। सल्तनत मंजिल, हामिद रोड, निकट सिटी स्टेशन, लखनऊ के रहने वाले नवाबजादा सैयद मासूम रज़ा, एडवोकेट ने आगे कहा की मोहर्रम बेहद गम का महीना होता है इसमें खुशियां नहीं मनाई जाती है। शिया और सुन्नी दोनों मुस्लिम समुदाय के ईलावा दुसरे मज़हब के लोग भी मुहर्रम मनाते हैं, मुहर्रम खुशी का महीना नहीं होता हैं यह बेहद गम भरा महीना होता है, इसमें शिया समुदाय काले रंग के कपड़े पहन कर अपने गम का इजहार करते हैं। आज से लगभग 1400 साल पहले इसी महीने में बातिल यानी झूठ और अन्याय के बीच इंसाफ की जंग लड़ी गई थी और इस जंग में शहीद होने वालों को याद किया जाता है। मुहर्रम मातम और गम का महीना होता है। जैसे जैसे मोहर्रम माह का महीना नजदीक आता जा रहा है आजादाराने हुसैन नवासे रसूल (स.) की दर्दनाक शहादत का गम मनाने के लिए दिलो जान से जुट जाते हैं। हर तरफ घरों की चुनाकारी व साफ सफाई के साथ साथ घर के अज़खाने को सजाया व संवारा जाता है। लखनऊ के सभी इमामबाड़ों में भी जनाब इमाम हुसैन (अ.स.) और उनके 72 साथियों की शहादत का गम मनाने के लिए बड़े पैमाने पर तय्यारियां करीब करीब पूरी हो चुकी हैं।आजादरी के मरकज लखनऊ में करीब सवा दो महीने की अजादारी का आगाज पहली मोहर्रम से शुरू हो जाता है। मोहर्रम का आगाज शानो शौकत से निकलने वाला बड़े इमामबाड़े से शाही जरीह के जुलूस से होता है जो 1838 से पाबंदी के साथ निकल रहा है। अवध के तीसरे बादशाह मोहम्मद अली शाह ने इस शाही जुलूस का आगाज किया था जो आज तक उसी शानो शौकत से निकलता चला आ रहा है। पुराने लखनऊ में हर साल की तरह इस साल भी जिला व पुलिस प्रशासन व इंतजामियां ने अपनी तैयारी पूरी तरह मुकम्मल कर ली है। हर तरफ चप्पे चप्पे पर पुलिस तैनात है और ड्रोन के जरिए भी निगरानी की जाती है। नवाबजादा सैय्यद मासूम रज़ा,एडवोकेट ने लोगों से शांति और अमन के माहोल में मोहर्रम का गम मनाने की अपील की है। मोबाइल : 9450657131
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