सहारनपुर आरटीओ में दलाल राजनियम नहीं, रिश्वत से चलता है सिस्टम?

सहारनपुर। परिवहन विभाग, जिसे आम नागरिकों की सुविधा और पारदर्शिता का प्रतीक होना चाहिए, वही आज सहारनपुर में सवालों के घेरे में है। आरटीओ कार्यालय की कार्यप्रणाली को लेकर जो तस्वीर सामने आ रही है, वह न सिर्फ चौंकाने वाली है बल्कि सिस्टम की जड़ों में फैली सड़ांध को भी उजागर करती है।

ताज़ा मामला आरटीओ दफ्तर की उसी हकीकत को बयान करता है, जिसे रोज़ सैकड़ों ड्राइवर और वाहन मालिक झेलते हैं। एक आम व्यक्ति जब अपनी फाइल लेकर कार्यालय पहुँचा, तो उसे कभी एक काउंटर से दूसरे काउंटर, कभी एक कमरे से दूसरे कमरे और कभी “कल आना” कहकर टाल दिया गया। नियमों और प्रक्रियाओं का ऐसा जाल बिछाया गया कि काम होना तो दूर, उम्मीद भी टूटती चली गई।

लेकिन कहानी में मोड़ तब आया, जब वही फाइल अगले दिन एक तथाकथित “आरटीओ मित्र” यानी दलाल के हाथों अधिकारियों तक पहुँची। न नियम याद आए, न प्रक्रियाएँ आड़े आईं। महज़ 5,500 रुपये में वही काम कुछ ही घंटों में निपटा दिया गया। यह सवाल अब सिर्फ एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम पर है—
क्या नियम सिर्फ आम लोगों को परेशान करने के लिए हैं?
और सुविधा सिर्फ रिश्वत देने वालों के लिए?

एक नहीं, सैकड़ों की कहानी

यह कोई अकेला मामला नहीं है। आरटीओ कार्यालय में यह चर्चा का विषय बना हुआ है। पीड़ित ड्राइवर रवि ने इस पूरे प्रकरण की शिकायत जिलाधिकारी से लेकर ट्रांसपोर्ट मंत्री तक की है। लेकिन हकीकत यह है कि ऐसे सैकड़ों ड्राइवर और वाहन मालिक रोज़ इसी चक्की में पिस रहे हैं।

दफ्तरों में बैठे अधिकारी हों या बाहर घूमते दलाल—सिस्टम इस तरह सेट है कि बिना “खर्चा-पानी” के फाइल आगे बढ़ना मुश्किल हो जाता है। नियमों की आड़ में आम आदमी को थकाया जाता है और दलालों के जरिए वही काम चंद घंटों में निपटा दिया जाता है।

तस्वीर जो बहुत कुछ कह जाती है

फोटो में दिखाई देने वाली तस्वीर इस कड़वी सच्चाई की प्रतीक है—
जहाँ एक ड्राइवर की मेहनत की कमाई आरटीओ, चेक पोस्ट और दलालों के बीच बँटती नज़र आती है, और उसका परिवार नीचे बेबस खड़ा रह जाता है। यह सिर्फ एक चित्र नहीं, बल्कि ड्राइवर वर्ग की रोज़मर्रा की पीड़ा का आईना है।

जीरो टॉलरेंस या जीरो जवाबदेही?

सरकार की जीरो टॉलरेंस नीति पर अब खुद सवाल खड़े हो रहे हैं। अगर हालात यही हैं, तो फिर भ्रष्टाचार के खिलाफ दावों का क्या अर्थ रह जाता है?
कब तक ड्राइवरों और आम नागरिकों का खून चूसा जाता रहेगा?
और कब प्रशासन की चुप्पी टूटेगी?

यह मामला सिर्फ सहारनपुर आरटीओ का नहीं, बल्कि उस व्यवस्था का है जहाँ नियम कागज़ों तक सीमित हैं और ज़मीनी हकीकत रिश्वत से चल रही है।


“समझो भारत” राष्ट्रीय समाचार पत्रिका के लिए
सहारनपुर, उत्तर प्रदेश से
पत्रकार ज़मीर आलम की खास रिपोर्ट

📞 8010884848
🌐 www.samjhobharat.com
✉️ samjhobharat@gmail.com

No comments:

Post a Comment