— समझो भारत राष्ट्रीय समाचार पत्रिका के लिए शामली (उत्तर प्रदेश) से ब्यूरो-चीफ शौकिन सिद्दीकी की रिपोर्ट, कैमरा मैन रामकुमार चौहान के साथ
कहते हैं “शिक्षा भविष्य की कुंजी है,” मगर शामली जनपद के कैराना में यह कुंजी अब जान जोखिम में डालकर हासिल की जा रही है।
यहां के विद्यार्थी रोज़ाना बस की छतों पर बैठकर स्कूल-कॉलेज के लिए सफर कर रहे हैं — और यह नज़ारा किसी फिल्म का नहीं, बल्कि हकीकत का आईना है।
📍 कैराना से शामली रोड पर सुबह-शाम दौड़ती बसें अब चलती मौत का दूसरा नाम बन चुकी हैं।
एक ओर आसमान में हाईटेंशन बिजली के तार लटक रहे हैं, दूसरी ओर बसें तेज़ रफ़्तार में फर्राटे भर रही हैं।
किसी भी वक्त गंभीर हादसे की संभावना बनी रहती है — फिर भी जिम्मेदार विभाग चुप हैं।
परिवहन विभाग द्वारा जारी रूट परमिट में संचालन के सख्त नियम तय हैं, लेकिन जमीनी हकीकत इन नियमों को ठेंगा दिखा रही है।
ना बसों की जांच, ना सुरक्षा की व्यवस्था — बस छतों पर सफर करते बच्चे और लापरवाह सिस्टम का शर्मनाक मंजर।
ग्रामीण बताते हैं कि बसें गांव के बाहर सड़क किनारे बच्चों को उतारती हैं, जहां हाईटेंशन लाइनें बिछी हुई हैं।
ऐसे में छत से उतरते वक्त किसी बच्चे के करंट की चपेट में आने या गिरने का खतरा हमेशा बना रहता है।
कई स्थानों पर बिजली के तार सड़क के बिल्कुल ऊपर से गुजरते हैं, लेकिन विभागीय अधिकारी जैसे इस “खामोश मौत” से बेपरवाह हैं।
इधर, परिवहन और पुलिस विभाग की प्राथमिकता कुछ और ही दिखती है —
वे सड़कों पर चलने वाले सीधे-सादे नागरिकों और नौजवानों के चालान काटने में तो तत्पर हैं,
लेकिन इन खतरनाक बसों पर कार्रवाई करने की फुर्सत किसी को नहीं।
लोग कहते हैं — “उनके लिए बस वही गाड़ी ‘ग़लत’ है, जिससे वसूली ना हो सके!”
कैराना के लोगों की मांग है कि इस तरह के खतरनाक सफर पर तत्काल रोक लगाई जाए।
स्कूल प्रशासन, परिवहन विभाग और पुलिस मिलकर ऐसा सिस्टम बनाएं जिससे बच्चे सुरक्षित घर से निकलें और सुरक्षित ही लौटें।
क्योंकि शिक्षा का सफर, मौत का सफर नहीं बनना चाहिए।
📸 “बस की छतों पर उड़ते बच्चे, जमीन पर गिरा इंसाफ — अब वक्त है आंखें खोलने का।”
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🎥 कैमरा मैन: रामकुमार चौहान
📍 स्थान: कैराना / शामली, उत्तर प्रदेश
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