दुनिया में कई फर्जी दुकानदार अपनी-अपनी "धर्म और पंथ" की दुकान खोलकर उसे ही सत्य बताते हैं और दूसरों को झूठा ठहराते हैं।
सच तो यह है कि 99% दुकानें फर्जी हैं, क्योंकि कोई यह नहीं कहता कि –
👉 “मैं मानव हूँ, तुम भी मानव हो, हम सब एक ही प्रजाति – होमोसेपियन्स – से करोड़ों वर्षों के संघर्ष के बाद यहां तक पहुँचे हैं।”
🌍 हम सब एक ही वंश के सदस्य हैं
कोई यह नहीं कहता कि हम सब एक ही वंश और परिवार से हैं।
सच्चाई यही है कि हम सभी समान हैं, पर अफसोस, कोई यह चर्चा नहीं करता कि आने वाली पीढ़ियों के लिए धरती और मानव सभ्यता को सुरक्षित कैसे रखना है।
धर्म वह नहीं है जो मानव-मानव में भेद करे, वह केवल धंधा है।
🧠 विचार करने की आवश्यकता
पहले सुनो, फिर सोचो, फिर मनन करो, फिर वर्तमान में देखो और फिर निर्णय लो।
प्रकृति का नियम है – जो संघर्ष करेगा वही बचेगा, जो संघर्ष नहीं कर पाएगा, वह नष्ट हो जाएगा।
हमारे पूर्वजों ने असंख्य विपरीत परिस्थितियों से लड़कर मानव सभ्यता को जीवित रखा।
🙌 महापुरुषों का संदेश
महान वैज्ञानिक, संत और चिंतक – बुद्ध, कबीर, रैदास, फुले, पेरियार, डॉ. आंबेडकर – सभी ने स्वयं जागकर मार्ग खोजा और बताया कि मनुष्य अपनी उन्नति और पतन का कारण स्वयं है।
पर अफसोस, हमने उन्हें ना ठीक से पढ़ा और ना समझा।
महापुरुषों ने कभी भीड़ के सहारे पाखंड का विरोध नहीं किया। उन्होंने अकेले ही सत्य का मार्ग चुना, मौत तक को गले लगाया, पर झुके नहीं।
इसीलिए आज हम उन्हें महामानव मानते हैं।
⚖️ अब हमारी जिम्मेदारी
हम क्या कर रहे हैं? – कुछ स्वार्थी लोगों की कठपुतली बनते जा रहे हैं।
हमें जागना होगा और यह ठानना होगा कि:
- पहले हम सच्चे मनुष्य बनें।
- शिक्षा और विज्ञान का उपयोग समाज की कमियों को दूर करने में करें।
- असमानता और पाखंड के खिलाफ खड़े हों।
👉 विज्ञान का दुरुपयोग विनाश का कारण है, लेकिन विज्ञान ही विकास का मूल मंत्र है।
🚩 निष्कर्ष
जरूरत है कि हम पहले मानव बनें।
जाति, धर्म और पंथ की जंजीरों से निकलकर सोचें कि समाज, राष्ट्र और आने वाली पीढ़ियों के लिए हमें क्या करना है।
महापुरुषों की तरह सत्य के मार्ग पर डटे रहना ही वास्तविक धर्म और मानवता है।
✍🏻 भारत राष्ट्रीय समाचार पत्रिका के लिए विशेष लेख – आर.एल. यादव, बांसवाड़ा (राजस्थान)
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