बरसात कभी राहत देती है तो कभी आफ़त बनकर टूटती है। इस बार बारिश ने उत्तर प्रदेश के जिला शामली, ग्राम बिडोली सादात में एक ऐसा दर्दनाक मंजर खड़ा कर दिया, जिसने पूरे गांव को हिला दिया। लगातार हो रही तेज़ बरसात ने न सिर्फ़ घरों को नुकसान पहुंचाया बल्कि पत्रकारिता और रोज़ी-रोटी दोनों पर गहरी चोट की है।
यह हादसा “समझो भारत” राष्ट्रीय समाचार पत्रिका, न्यूज़ पोर्टल और यूट्यूब चैनल से जुड़े पत्रकार शाकिर अली के साथ हुआ। गांव में उनका जनसेवा केंद्र और किराना दुकान थी, जो न केवल उनके परिवार की जीविका का साधन थी बल्कि पूरे गांव के लोगों के लिए सहारा भी थी। सोमवार को बारिश के बीच अचानक दुकान की छत भरभराकर गिर गई।छत गिरते ही दुकान के भीतर रखा करीब 50 हज़ार रुपये का सामान – अनाज, दालें, चीनी, तेल जैसी रोज़मर्रा की चीज़ों से लेकर लैपटॉप, सीसीटीवी कैमरे, इंवर्टर और एलसीडी जैसे कीमती उपकरण – पानी में डूबकर पूरी तरह बर्बाद हो गए।
जान बची लेकिन मेहनत डूब गई
गनीमत यह रही कि हादसे के वक्त न तो शाकिर अली और न ही कोई ग्राहक दुकान के भीतर मौजूद था। वरना यह हादसा जानलेवा भी साबित हो सकता था। छत गिरने की आवाज़ सुनते ही आसपास के लोग दौड़े और मलबा हटाने लगे।गांव के रहने वाले हाशिम अली ने कहा,
“हम सबने मिलकर मलबा हटाया, लेकिन बारिश इतनी तेज़ थी कि कुछ भी संभाला नहीं जा सका। जो मेहनत उन्होंने सालों से लगाई थी, वो एक पल में खत्म हो गई।”
वहीं पड़ोस में रहने वाली रिज़wana बेगम की आंखों में आंसू थे। उन्होंने कहा,
“शाकिर भाई हमेशा सबकी मदद करते हैं। गांव के लोग जनसेवा केंद्र से सरकारी काम कराते थे, अब हम सब परेशान हो जाएंगे। प्रशासन को तुरंत उनकी मदद करनी चाहिए।”
“बरसात ने सब कुछ छीन लिया”
पत्रकार शाकिर अली का कहना है,
“बरसात का पानी लगातार छत पर गिर रहा था। कई दिनों से छत कमजोर हो चुकी थी। अचानक यह टूट गई और हमारी सारी मेहनत मलबे में दफ़न हो गई। दुकान ही हमारा सहारा थी, अब समझ नहीं आ रहा परिवार कैसे चलेगा।”
उनकी आवाज़ में दर्द और आंखों में बेबसी साफ झलक रही थी।
प्रशासन से मदद की गुहार
घटना के बाद इलाके में अफरा-तफरी का माहौल है। ग्रामीणों का कहना है कि अगर समय रहते छत की मरम्मत या कोई और इंतज़ाम हो जाता तो इतना बड़ा नुकसान टल सकता था। अब गांववाले एकजुट होकर प्रशासन से मांग कर रहे हैं कि शाकिर अली को तुरंत आर्थिक मदद और मुआवजा दिया जाए।गांव के बुजुर्ग नफीस अहमद ने कहा,
“जिस पत्रकार ने हमेशा समाज की आवाज़ उठाई, आज वही खुद मदद की गुहार लगा रहा है। सरकार को चाहिए कि तुरंत उनकी आवाज़ सुनी जाए और परिवार को राहत दी जाए।”
एक सबक भी…
यह हादसा सिर्फ़ एक परिवार का नुकसान नहीं है, बल्कि यह चेतावनी भी है कि ग्रामीण इलाकों में जर्जर और कमजोर इमारतें बारिश के दौरान कितनी बड़ी त्रासदी में बदल सकती हैं। प्रशासन और स्थानीय निकायों को ऐसी घटनाओं पर समय रहते ध्यान देना होगा, ताकि किसी और परिवार की मेहनत और उम्मीदें मलबे में न दबी रह जाएं।
✍️ खास रिपोर्ट : शौकीन सिद्दीकी
📌 “समझो भारत” राष्ट्रीय समाचार पत्रिका / जिला शामली प्रभारी
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