कैराना (शामली) गुरुवार की रात कैराना कस्बे के मोहल्ला आल कलां स्थित अड्डे वाली मस्जिद पर सिरतुल नबी के मौके पर एक अजीमुश्शान इजलास-ए-आम का आयोजन किया गया। यह जलसा हर लिहाज से खास रहा। मस्जिद और आसपास की गलियां पूरी तरह जगमगाती रोशनियों से सजी रहीं।
इस मौके पर न सिर्फ कैराना बल्कि शामली, मुजफ्फरनगर, बुढ़ाना, थानाभवन, कांधला और हरियाणा के नजदीकी कस्बों और गांवों से भी हजारों की तादाद में अकीदतमंदों की मौजूदगी रही। बड़ी संख्या में उलमा-ए-किराम, हाफिज, कारी, इमाम और नौजवानों ने शिरकत कर इस इजलास को ऐतिहासिक बना दिया।
कुरआन की तिलावत और नात-ए-पाक से हुआ आगाज़
कार्यक्रम का आगाज़ कुरआन पाक की तिलावत और नात-ए-पाक से किया गया। नात की आवाज़ गूंजते ही मस्जिद का माहौल रूहानी कैफियत से भर उठा। चारों तरफ बैठे अकीदतमंद झूम उठे और देर रात तक कुरआनी कलाम व नबी-ए-पाक ﷺ की सीरत से जुड़ी तकरीरों को तवज्जो से सुनते रहे।
मुफ़्ती मोहम्मद साबिर: “नबी-ए-पाक ﷺ की जिंदगी इंसानियत का पैग़ाम”
जलसे में अपनी तफ़सीली तकरीर पेश करते हुए मुफ़्ती मोहम्मद साबिर ने कहा कि नबी-ए-पाक ﷺ की जिंदगी इंसानियत, हक और सच्चाई का पैग़ाम है। उन्होंने कहा कि नबी ने उम्मत को यह हिदायत दी कि अपनी जिंदगी को अल्लाह के हुक्म और इस्लामी तालीमात की रोशनी में गुजारा जाए।
उन्होंने कहा कि दुनिया और आखिरत में कामयाबी उन्हीं को हासिल होगी जो नबी की बताई सुन्नतों पर अमल करेंगे। “अगर मुसलमान अपनी औलाद को दीनी तालीम देंगे और खुद सुन्नत के मुताबिक जिंदगी गुजारेंगे तो उनके लिए जन्नत का सफर आसान हो जाएगा।”
मौलाना अनीस अहमद: “दीनी तालीम से दूरी हमें नुकसान पहुंचा रही है”
इस मौके पर मौलाना अनीस अहमद ने भी अहम तकरीर पेश की। उन्होंने कहा कि आज मुसलमान दीनी तालीम से दूर होकर दुनियावी शोहरत और चमक-दमक में गुम होता जा रहा है। उन्होंने ब्याज, झूठ, धोखा और हक-खोरी जैसी बुराइयों की तरफ इशारा करते हुए कहा कि यह आदते हमें बर्बादी की ओर ले जा रही हैं।
मौलाना ने कहा कि उम्मत का सुधार तभी संभव है जब हम अपने बच्चों को दीनी और दुनियावी दोनों तालीम देंगे। उन्होंने कहा कि नमाज, रोजा, जकात और कुरान की तालीम मुसलमानों की असल पहचान है और इन पर पाबंदी इंसान को कामयाबी की तरफ ले जाती है।
तौबा और इस्लाह की नसीहत
मौलाना ने इस बात पर जोर दिया कि हर मुसलमान को चाहिए कि अपने गुनाहों से सच्ची तौबा करे। उन्होंने कहा, “अल्लाह तआला गफूर-रहीम है, वह अपने बंदों के गुनाह माफ करने वाला है। अगर हम नबी-ए-पाक ﷺ की सुन्नतों पर अमल करेंगे तो हमारी दुनिया भी आसान होगी और आखिरत भी कामयाब होगी।”
सवाल-जवाब का दिलचस्प सिलसिला
इजलास के दौरान कैराना जमा मस्जिद के शाही इमाम मौलाना मोहम्मद ताहिर हसन ने मजमा को मुखातिब करते हुए 15 सवाल पेश किए।
सवालात का सिलसिला शुरू होते ही मजमा में बैठे बच्चों और नौजवानों में जोश देखने को मिला। सही जवाब देने वालों को इनामात से नवाजा गया। इस मौके पर मस्जिद का माहौल जश्न और इल्मी महफिल दोनों की झलक पेश करता रहा।
अन्य उलमा की तकरीरें
कारी गय्यूर, कारी इमरान, हाफिज मुबारिक समेत कई उलमा-ए-किराम ने भी अपनी तकरीरों में लोगों को नेक अमल और भाईचारे की दावत दी। सभी ने इस बात पर जोर दिया कि उम्मत को चाहिए कि वह नबी-ए-पाक ﷺ की सीरत से सबक ले और अपनी जिंदगी को कुरान और सुन्नत के मुताबिक बनाए।
रातभर रौशनियां और मेहमाननवाज़ी
इजलास का समापन दुआ और नात-ए-पाक से हुआ। मस्जिद के बाहर और आसपास का माहौल पूरी रात रौशनियों से जगमगाता रहा। दूर-दराज़ से आए मेहमानों की खिदमत के लिए स्थानीय लोगों ने भरपूर इंतजाम किए। खाने-पीने और बैठने की सुविधाओं में कहीं कोई कमी नहीं रही।
देर रात तक लोगों की आवाजाही जारी रही और हर तरफ भाईचारे, मोहब्बत और इत्तेहाद का पैग़ाम गूंजता रहा।
भाईचारे का आलमी पैग़ाम
इस जलसे ने यह साबित कर दिया कि मुसलमान जब अपनी तालीम, तहज़ीब और सुन्नत के साथ जुड़ते हैं तो समाज में अमन, मोहब्बत और भाईचारा मजबूत होता है।
सिरतुल नबी ﷺ का यह इजलास हर लिहाज से कामयाब और यादगार रहा, जिसने अकीदतमंदों के दिलों में नया जोश और ईमान की ताज़गी पैदा की। "समझो भारत" राष्ट्रीय समाचार पत्रिका के लिए कैराना, शामली, उत्तर प्रदेश से पत्रकार ज़मीर आलम की खास रिपोर्ट
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