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जब रजिस्ट्री पूरी हो, कब्जा दे दिया जाए, जमीन की डोलबंदी हो चुकी हो, और फिर भी खेती करने से रोक दिया जाए—तो समझिए यह सिर्फ ज़मीन का नहीं, क़ानून व्यवस्था का भी सवाल है। ऐसा ही मामला सामने आया है जनपद शामली के ग्राम लिलोन में, जहां एक खरीदी हुई भूमि पर कब्जा होने के बावजूद, कुछ दबंग धमकी, गाली-गलौच और फसल न काटने देने जैसे हथकंडे अपनाकर खुल्लमखुल्ला गुंडई पर उतर आए हैं।
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🔍 मामला क्या है?
शामली निवासी धर्मेंद्र पुत्र महावीर ने दिनांक 25 मई 2025 को अपने स्वामित्व वाली ज़मीन (खसरा संख्या 843 व 816 में कुल 1749 वर्ग मीटर) राजीव कुमार पुत्र रामपाल निवासी खेड़ा मस्तान, बुढाना (जिला मुजफ्फरनगर) को रजिस्ट्री के ज़रिए वैध रूप से बेच दी।
धर्मेंद्र ने जमीन का डोलबंदी नक्शा भी बनवाया, जिसका माप 100 मीटर लंबाई व 175 मीटर चौड़ाई है।
धर्मेंद्र के अनुसार, "इस जमीन पर अब राजीव कुमार का वैध कब्जा है और मुझे या मेरे भाइयों को कोई आपत्ति नहीं है।"
इसके बाद राजीव कुमार ने यह ज़मीन संदीप पुत्र सीताराम (ग्राम लिलोन) को ठेके पर फसल बोने के लिए दी, जिस पर संदीप ने ज्वार की फसल बो रखी है।
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🛑 दखल किसका? और क्यों?
यहां से मामला बिगड़ता है।
जब भी संदीप फसल काटने खेत में जाता है, गीता पत्नी सुकेनद, मुकेश पत्नी प्रभात, निशांत पुत्र प्रभात आदि लोग वहां पहुंचकर:
गाली-गलौच करते हैं
झगड़ा व हाथापाई की कोशिश करते हैं
और संदीप को फसल काटने नहीं देते
यह सिलसिला अब तक कई बार दोहराया जा चुका है, विशेषकर 14 जुलाई 2025 को इन लोगों ने एक बार फिर खेत में जाकर विवाद किया, गाली दी और फसल काटने से रोका।
इन दबंगों ने झूठी शिकायतें करने के लिए 112 नंबर डायल कर पुलिस को बुला लिया, लेकिन जब पुलिस ने इनसे ज़मीन के कागज़ मांगे तो ये लोग कोई वैध दस्तावेज़ पेश नहीं कर सके।
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📜 असलियत क्या कहती है?
सुकेनद पुत्र महावीर के नाम पर केवल 1650 वर्ग मीटर (2.5 बीघा) जमीन दर्ज है, जो खसरा संख्या 816 में आती है।
खसरा संख्या 843/1, जहां फसल बोई गई है, उसमें गीता या सुकेनद का कोई नाम दर्ज नहीं है।
इसके बावजूद ये लोग इस ज़मीन को अपनी बताकर 5 बीघा जमीन का झूठा दावा कर रहे हैं।
बात यहीं नहीं थमती।
गीता पत्नी सुकेनद ने दिनांक 11 जुलाई 2025 को न्यायालय में एक झूठा प्रार्थना पत्र भी दाखिल किया जिसमें गलत रूप से 5 बीघा भूमि दिखाई गई, जबकि राजस्व अभिलेखों में उनके नाम केवल 2.5 बीघा जमीन है।
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⚖️ प्रशासन से न्याय की गुहार
प्रार्थी संदीप ने इस उत्पीड़न से परेशान होकर:
तहसीलदार को प्रार्थना पत्र दिया है
ज़मीन का सत्यापन कर दोषियों पर सख़्त कार्यवाही की मांग की है
और अपने व अपने परिवार की सुरक्षा की भी गुहार लगाई है
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📢 "समझो भारत" का सवाल:
1. जब जमीन रजिस्ट्री हो चुकी है, तो खेती करने से रोकना किस अधिकार से?
2. क्या फर्जी दावों के ज़रिए कानून को गुमराह करना अपराध नहीं?
3. क्या दबंगई के ऐसे मामलों में पुलिस व राजस्व विभाग को त्वरित जांच नहीं करनी चाहिए?
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✅ निष्कर्ष:
> “जहां काग़ज़ साफ हों, वहां जमीन पर कब्ज़ा विवाद क्यों? अगर कानून की पकड़ ढीली है, तो दबंगई का हौसला मजबूत होता है।”
यह मामला सिर्फ एक व्यक्ति की ज़मीन पर कब्ज़े का नहीं, बल्कि गांवों में फैलते झूठे दावे, दबंगई और प्रशासनिक लापरवाही की झलक भी है।
प्रशासन को चाहिए कि वह इस प्रकरण में तत्काल संज्ञान ले और दबंगों के खिलाफ कठोर कार्यवाही करे। वरना न्याय और काग़ज़—दोनों का कोई मतलब नहीं रह जाएगा।
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