📅 गुरु पूर्णिमा विशेष रिपोर्ट | 11 जुलाई 2025
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🌼 गुरु पूर्णिमा पर सत्संग: अध्यात्म का सजीव प्रवाह
बिड़ौली/झिंझाना।
गीता सत्संग भवन में गुरु पूर्णिमा की पावन संध्या पर आयोजित दिव्य सत्संग में आध्यात्मिक ऊर्जा से ओतप्रोत वातावरण बना। इस अवसर पर धार्मिक भक्त समाज के संस्थापक संत स्वरूपानंद गिरी ने अपने उद्बोधन में गुरु, भक्ति और मनुष्य जीवन के उद्देश्य पर अत्यंत मार्मिक विचार रखे।
🕊️ "हमें ईश्वर ने दी है सर्वश्रेष्ठ मनुष्य योनि"
संत स्वरूपानंद गिरी जी ने कहा:
"हमें भगवान ने जो योनि प्रदान की है, वह सर्वश्रेष्ठ है — 'मनुष्य योनि'। इस जीवन का उद्देश्य केवल सांसारिक सफलता नहीं, बल्कि ईश्वर की प्राप्ति भी है।"
उन्होंने बताया कि शिष्य को सदैव अपने लक्ष्य के प्रति सचेत रहना चाहिए। लक्ष्य से भटकना ही पतन का कारण होता है।
🙏 सद्गुरु: शिष्य का सच्चा कुम्हार
प्रवचन में उन्होंने सद्गुरु और शिष्य के संबंध को "कुम्हार और मिट्टी" से तुलना करते हुए कहा:
"सद्गुरु अपने शिष्यों को आचरण शुद्धि, त्याग और समर्पण की शिक्षा देकर उन्हें जीवन के योग्य आकार देते हैं।"
उन्होंने कहा कि जिस तरह एक मां अपने बच्चे का हर क्षण ध्यान रखती है, उसी तरह गुरु भी समर्पित शिष्य की रक्षा करते हैं।
🏹 गुरु-द्रोणाचार्य और अर्जुन का दृष्टांत
संत जी ने महाभारत का उदाहरण देते हुए कहा:
"जैसे अर्जुन ने सदैव अपने लक्ष्य (मछली की आंख) पर ध्यान रखा, वैसे ही हमें भी सांसारिक कार्यों के बीच ईश्वर प्राप्ति को नहीं भूलना चाहिए।"
🧭 "कंपास की तरह अडिग रहें": सही दिशा का मंत्र
उन्होंने कंपास का दृष्टांत देते हुए बताया:
"हवाई जहाज किसी भी दिशा में जाए, लेकिन कंपास की सुई हमेशा उत्तर दिशा दिखाती है। उसी प्रकार हमें भी जीवन के हर उतार-चढ़ाव में अपने आध्यात्मिक लक्ष्य से नहीं भटकना चाहिए।"
🧘 निर्मलता ही पात्रता है
संत ने कहा:
"निर्मल मन सो मोहि पावा, मोहि कपट छल नहीं भावा।"
अर्थात परमात्मा व सद्गुरु को वही पाते हैं जिनका मन पवित्र हो, कपट और छल से रहित हो। उन्होंने गृहस्थ जीवन में संयम व ब्रह्मचर्य पालन का भी संदेश दिया।
🌟 वीतराग संत दयानंद गिरी का स्मरण
संत स्वरूपानंद जी ने 21 वर्ष पूर्व ब्रह्मलीन हुए संत दयानंद गिरी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उन्हें आदर्श सद्गुरु बताया:
"बाल्यकाल से ही उन्होंने दीक्षा लेकर एक कुटिया में जीवन व्यतीत किया और शिष्यों को आध्यात्मिक मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी।"
📿 समर्पण ही साधना है
संत जी के अनुसार, सच्चा शिष्य वही है जो अपने गुरु के प्रति पूर्ण समर्पित हो। भजन, कीर्तन, सुमिरन, जप-तप – ये सभी क्रियाएं ईश्वर प्राप्ति की ओर एक साधन हैं, परंतु गुरु कृपा ही असली कुंजी है।
📌 निष्कर्ष:
गुरु पूर्णिमा पर संत स्वरूपानंद गिरी जी का यह मार्गदर्शक प्रवचन न केवल भक्तों के लिए एक प्रेरणा बना, बल्कि यह याद दिलाता है कि मनुष्य जीवन केवल भोग के लिए नहीं, योग के लिए है।
हमें चाहिए कि हम भी कंपास की सुई की भांति अपने जीवन के आध्यात्मिक लक्ष्य की ओर दृढ़ता से अग्रसर रहें।
✒️ रिपोर्टर: शाकिर अली
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