शामली। सनातन संस्कृति के रक्षार्थ समर्पित सेनानियों कभी विचार मंथन कीजिए ध्यान से देखिए- सोचिए .. मेरे लिए मेरा भारत कोई देश नहीं, यह एक साधना स्थल है, मेरा राष्ट्र सीमाओं में नहीं, भावनाओं से बनता है, आप सभी के लिए भारत एक विशाल परिवार है,यहाँ 140 करोड़ लोग एक छत के नीचे रहते हैं,कोई मंदिर जाता है, कोई मस्ज़िद कोई गुरुद्वारा तो कोई चर्च,कोई तेलुगू में बोलता है, कोई मैथिली में, कोई कन्नड़ तो कोई पंजाबी में। कोई बंगाल की माछ खाता है, कोई पंजाब के पराठे, किसी को बड़ौत की गोंद की बर्फी अच्छी लगती है।और हाँ, यहां परिवारों में झगड़े भी होते हैं, आपस में लड़ते हैं आरक्षण पर, धर्म पर, भाषा पर, जात पर,कभी संसद में, कभी सोशल मीडिया पर, कभी चाय की टपरी पर.. पर यही भारत है! यहाँ बहस होती है, बिखराव नहीं, यहाँ सवाल पूछे जाते हैं, पर एकता की नींव नहीं हिलती..और यह बात दुनियां को तब समझ में आई, जब ऑपरेशन सिंदूर के बाद दो वर्दीधारी महिलाएँ एक हिंदू, एक मुस्लिम—साथ खड़ी हुईं..ना नारा लगाया, ना घूंसा ताना,बस ठहराव, गरिमा और विश्वास के साथ प्रेस को संबोधित किया--इस पल ने बंदूक से ज़्यादा असर डाला,यह एक सैन्य जवाब नहीं था,यह एक सांस्कृतिक संदेश था कि भारत को आप भीतर से नहीं तोड़ सकते,हम लड़ते हैं, पर अपने ही घर के भीतर और जब कोई बाहर से हमला करता है,तो हम सब एक साथ उठते हैं भाई बनकर, बहन बनकर, भारत बनकर,,इन दो अफसरों का सामने आना सिर्फ सेना का बयान नहीं था,ये सरकार और फौज का वह मास्टरस्ट्रोक था ( हाँ.. पहली बार मैं मानता हूँ यह है जिसे कहा जाए मास्टरस्ट्रोक जिसका भी आइडिया था उसे सलाम ),जिसने सिर्फ दुश्मन के बंकर नहीं तोड़े बल्कि दुनिया भर के दिलों और दिमागों की सोच बदल दी,किसी ने मिसाइलें देखीं, किसी ने लाशें गिनी,पर हमने देखा एक तस्वीर दो औरतें, दो वर्दियाँ, एक देश,इस तस्वीर ने बताया कि हमारे पास शक्ति भी है, और संतुलन भी,हमारे पास शौर्य भी है, और समझ भी,हमारे पास रॉकेट भी हैं, और रिश्ते भीऔर याद रखना -भारत को हराना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है इसलिए नहीं कि हमारे पास हथियार हैं,बल्कि इसलिए कि हमारे पास दिल हैं जो अपनों के लिए भी धड़कते हैं,और दिमाग हैं जो दुश्मनों को भी चौंका देते हैं,हम कोई मशीन नहीं, हम मनुष्य हैं,हमें दर्द होता है, पर अब हम पहले की तरह रोते नहीं जवाब देते हैं,यह है भारत,बिखरा हुआ नहीं, बोलता बहुत है, पर एक स्वर में,लड़ता बहुत है, पर अपनों से,और जब कोई बाहर से आता है, तो हम सब एक हो जाते हैं..घर के लिए, अपनों के लिए, भारत के लिए..और एक और संदेश... उन पाकिस्तान समर्थक को ,हर उस नफरती के लिए जिन्हें नहीं पता कि राष्ट्र भी इष्ट होता है, होते हैं कुछ राजनीतिक कट्टरपंथी विचारधारा के मुसलमान जिनकी मूर्खता की वजह सेआज भारत के मुसलमानों की वफ़ादारी पर शक होने लगता हैं: लेकिन "मोहम्मद ज़ुबैर"..एक नाम, एक पत्रकार, एक भारतीय,आज जब पाकिस्तान से फर्जी आईडीज़ और अफवाहों की बाढ़ आई,तो पूरा आईटी सेल कुछ नहीं कर पाया,पर मोहम्मद ज़ुबैर ने अकेले उस झूठ की चीर-फाड़ कर दी,उसने देशभक्ति अपने काम से की,अपने हौसले से की,असल देशभक्त शोर नहीं करते,वो जो भी करते हैं बस करते हैं दिल से, ज़मीर से, बिना प्रसिद्धि के... मैंने बहुत से चित्र देखे हैं जब पाकिस्तान की जहाज गिर रहे थे तो भारत के मुसलमान मिठाई बांट रहे थे,, इस युद्ध के दौरान मैंने कौमी एकता का अद्भुत नजारा देखा,, अब भारत के मुसलमानों को कुछ नाम याद रखने चाहिए..नाम याद रखिएगा..मोहम्मद ज़ुबैर... सोफिया कुरैशी, अशफाक उल्ला खां, महामहिम डॉ एपीजे कलाम....!! या फिर कुछ तारिक जंग जैसे मेरे दोस्तों के नाम जिनसे मेरे 48 साल से ज्यों के त्यों संबंध है? बचना होगा उन मौलवियों से-- जो कहते हैं काफिरों का कत्ल कर दो, रात दिन नफरत के बीज होते हैं,, प्रत्येक हिंदू और मुसलमान को सोचना होगा, समझना होगा कि--हमें यह अमूल्य जीवन अपनी मानवीय चेतना के उत्थान के लिए मिला है, न कि घृणा फैलाने के लिए... अगर प्रेम... हमारे धर्म का आधार नहीं है तो फिर वह धर्म हो ही नहीं सकता.. हो सकता है इस युद्ध के दौरान राजनीतिज्ञों के कारण भारत में खड़ी हो रही हिंदू-मुस्लिम के बीच की यह दीवार ढह जाए ...मेरी भगवान से यही प्रार्थना है कि धर्म और जाति के नाम पर विद्वेष फैलाने वालों का विनाश हो,, प्रेम और सहयोग जीवन का आधार हो... महामंडलेश्वर आचार्य कृष्ण विश्रुतपाणि।ज़िला ब्यूरो शौकीन सिद्दिकी शामली /कैमरामैन रामकुमार चौहान शामली
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