सरस साहित्य समिति शामली द्वारा गुरू तेगबहादुर की जयन्ती के अवसर पर आयोजित काव्य गोष्ठी का आयोजन

शामली। धर्म और मानवता के लिए अपने प्राण न्योछावर  करने वाले सिक्खों के नौवें गुरू तेगबहादुर की जयन्ती के उपलक्ष्य में स्थानीय साहित्यिक संस्था "सरस साहित्य समिति शामली " ने एक काव्य गोष्ठी का आयोजन जनपद के सुप्रसिद्ध हास्य कवि अनिल कुमार धीमान पोपट कामचोर के आवास पर किया ।कार्यक्रम की अध्यक्षता संस्था के संस्थापक अध्यक्ष प्रीतम सिंह प्रीतम ने की। मुख्य अतिथि मुजफ्फरनगर से पधारे  सुप्रसिद्ध शायर एवम् कवि डा0मुकेश दर्पण रहे।
काव्य गोष्ठी का शुभारंभ अनिल कुमार धीमान पोपट कामचोर जी द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वन्दना से हुआ। मुख्य अतिथि डा0मुकेश दर्पण ने एक के बाद एक कईं रचनायें फर्माइशों पर  सुनाई और खूब दाद बटोरी।उनकी एक बानगी-

" भ्रम को तोड़कर तू चल तो दिया,

 लौटकर आयेगा तू,इसलिए मैं जिन्दा हूँ। 

तूने हर मोड पर चुन-चुन के दिये धोखे मुझे,

   तुझपर विश्वास किया,इस बात 

पर शर्मिन्दा हूँ। ।"

राष्ट्रीय चेतनायुक्त ओजस्वी कवि प्रीतम सिंह प्रीतम ने गुरू तेगबहादुर को सम्मान देते हुए अपनी रचनायें सुनाते हुए कहा-

"कष्ट रहे,संकल्प ना छोडे,ऐसा इस धरती का लाल ।

सफलताओं के सोपानों पर चलता है,बन भूचाल। ।"

हास्य रस के सौम्य गीतकार सुनील अरोरा टम्मी ने

पढा-

"सम्बन्धों को यार निभाना सीख गया ।

हां मैं भी अब आँख चुराना सीख गया।।"

साहित्य के उत्कृष्ट कवि सुधीर जगधर ने अपनी

श्रृंगारिक कुण्डलिया और माहियों की झडी लगाकर रंग जमा दिया-

"तुझसे जु उतरती है, 

 धूप वह जाके , सूरज में भरती है ।।"

जनपद के हास्य व्यंग्य के बेजोड कवि अनिल कुमार धीमान पोपट ने कुछ यूँ सुनाया-

 रिपोर्टर, शौकीन सिद्दीकी, तल्हा मिर्ज़ा शामली

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" फकत एक जरिया है, खूं को रफ्तार देने का,

समझदार से लोग इसको दिल कहते हैं ।

धडकता है एक लोथडा मेरे सीने में, मैं समझता रहा सनम मेरे दिल में रहते हैं।" इनके अतिरिक्त ब्रजेश चितेरा,शिवम सम्राट और अंकुश ने भी अपनी मोहक रचनायें सुनाकर खूब वाहवाही लूटी । सुनील अरोरा टम्मी के मनोरंजक संचालन ने सबको बांधे रखा।

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