प्राकृतिक सुंदरता में जो बात है वह मेकअप में नहीं भारतीय संस्कृति में महिलाओं का एक बहुत बड़ा समूह मेकअप के गड्ढे में है है सुंदर दिखने के चक्कर में प्राकृतिक सुंदरता को ईश्वर की दी हुई सुंदरता को खाई में गिराया जा रहा है अश्लीलता गहना बन रहा है और सादगी बलि चढ़ रही है प्राकृतिक सुंदरता को छिपाने के लिए नए महंगे ऐसे संसाधन है जिसे बहुत बड़ा ब्यूटी प्रोडक्ट्स का कालाबाजारी का व्यापार भी फल फूल रहा है


अधनंगे कपड़ों के फैशन ने मॉडलिंग और फिल्मी दुनिया को बढ़ावा दिया है हमारे समाज में इस तरह के फैशन शो करवा कर

अर्धनग्न प्रदर्शन की भरमार चल रही है कम से कम हमारे गांव की संस्कृति अभी भी जिंदा है

और इसे जिंदा रखने का कार्य निरंतर चलते रहना चाहिए क्योंकि हमारा भारत ग्रामीण संस्कृति का देश है

हम सभी गांव के ही हैं जरूरत व संसाधनों की मजबूरी और लालच ने शहर की ओर धकेल दिया है

जहां महिलाओं ने अपनी लज्जा वस्त्र को उतार कर फेंक  ही दिया है इससे सिर्फ उनके चरित्र का ही हनन और

बलात्कार नहीं बल्कि परिवार कुल खानदान ,राज्य देश और समाज के चरित्र और गौरव का हनन और बलात्कार प्रतिदिन  हो रहा है।

कभी भी अपने आसपास अर्धनग्न और बदन को दिखाने वाली आधे अधूरे कपड़े में अगर कोई भी महिला किसी भी रूप में खड़ी होती है तो महिला होकर स्वयं लज्जित होना पड़ता है

नजर एक बार जरूर उठती हैं और फिर झुक जाती हैं वहीं इस पुरुष प्रधान समाज में जब उनकी नजरे उठती हैं तो उन्हें दोषी बना दिया

जाता है आखिरी अर्धनग्न फैशन से कौन सी विरासत मिलती है यह बात आज तक मुझे समझ में नहीं आई

दूसरी तरफ  नाना तरह की पाउडर क्रीम के लीपापोती से बनी क्षणिक सुंदरता से दुनिया भी प्रभावित होती है

सुंदरता की तारीफ होती है एक बार नजर उठाकर अपने ग्रामीण संस्कृति की महिलाओं को देखिए जिनके कर्म और स्वभाव के साथ-साथ उनका चरित्र भी सुंदर होता है

उनके लिए गांव की मिट्टी ही उनके पूरे चरित्र को दर्शाने वाले शरीर की खूबसूरती है जिसका कहीं कोई व्यापार नहीं कोई बाजार नहीं

मुख्य प्रबंधन निर्देशिका 

जाग मानव जाग परिवार 

 सामाजिक आध्यात्मिक प्रेरक वक्ता 

विजय लक्ष्मी पांडेय

095631 30497 

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