छागल
इस पीढ़ी में बहुत कम लोग होंगे जो इस मोटे कपड़े की थैली से परिचित होंगे मगर हमने इसका उपयोग किया है इसे छागल कहा जाता है
ये नाम सुनकर कई लोग चौंक पड़ेंगे कि पानी कपड़े की थैली में ???
ये उन दिनों की बात है जब न बाजार में बोतल बंद पानी मिलता था ना पानी का व्यापार होता था न कोई कैम्प थे न Milton की बोतलें थी
गर्मी में पानी पिलाना धर्म और खुद का पानी घर से लेकर निकलना अच्छा कर्म माना जाता था,
गर्मी के दिनो मे उपयोग आने वाली ये छागल एक मोटे कपड़े (कैनवास) का थैला होता था,जिसका सिरा एक और बोतल के मुंह जैसा होता था
और वह एक लकड़ी के गुट्टे से बंद होता था
आप में से किसने इसका उपयोग किया है ???
छागल में पानी भरकर लोग,यात्रा पर जब जाते थे,कई लोग ट्रेन के बाहर खिड़की पर उसे टांग देते थे,बाहर की हवा उस कपड़े के थैले के छिद्र से अंदर जाकर पानी को ठंडा करती थी वो प्राकृतिक ठंडक बेमिसाल थी
गर्मी में जीप में अंदर अफसर बैठे है उनकी छाग़ल बाहर जीप पर लटकी रहती थी
किसान बैलगाड़ी के खल्ले पर छागल लटकाए मंडी की तरफ जाते देखे गए।
ये हमारे पूर्वज की पानी व्यवस्था थी
और सबसे बड़ी बात रास्ते में किसी राहगीर ने अगर छागल का ठंडा पानी देखकर उसे मांग लिया तो कोई मना भी नहीं करता था
क्यों कि ये ईश्वर की आज्ञा थी बैशाख की चटकी दुपहरिया में किसी प्यासे को पानी पिलाना
क्योंकि पानी खरीदा जा सकता है
या बेचा जा सकता है ....ये कल्पना भी नही थी
अब 20 रूपये का एक लीटर पानी खरीदने वाली पीढ़ी ना छागल जानती थी
ना उसके पानी का स्वाद...
@Samjho Bhsrat
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