अफ़सर की कलम से.... कविता


मैं गोधूलि बेला सी

जहाँ रात-दिन मिल जाते हैं

कुछ खोने की आहट है

तो कुछ पाने की ख्वाहिश है

पूनम सी शीतल शान्त कभी

कभी सूर्य किरण सी प्रखर हो

जाती हूँ!!


कभी क्षितिज के पार सी

जहाँ धरा व्योम मिल जाते हैं

सच में ना सही आभासी ही

पर प्रेम के फूल खिल जाते हैँ!!


हाँ मैं हूँ श्वेत और श्यामल सी

जहाँ फूलों का रंग भी फीका है

दुनिया की कहानी सुनती हूँ

कभी खुद रहस्य बन जाती हूँ!!


मैं हूँ ज़िन्दगी मौत सी

जहाँ हर पल कुछ खोती हूँ

तो कुछ पाकर खुश हो लेती हूँ

धीरे धीरे करके प्रतिदिन

जीवन थोड़ा जी लेती हूँ!!


मैं विष अमृत बन जाती हूँ

किसी की कहानी की नायिका

तो किसी की खलनायिका हो जाती हूँ!!


मैं गोधूलि बेला सी

मेल विरह के खेल में

आगे बढ़ती जाती हूँ

नदी के जैसे बहकर के 

हर दिन बदलती जाती हूँ 

पूनम सी शीतल शान्त कभी

कभी सूर्य किरण सी प्रखर

हो जाती हूँ!!


पूनम भास्कर "पाखी"

डिप्टी कलेक्टर यूपी

@Samjho Bharat News

8010884848

7599250450

No comments:

Post a Comment