आज की कहानी : विकारो के पांच गधे


 एक महात्मा कहीं जा रहे थे। रास्ते में वो आराम करने के लिये रुके। एक पेड के नीचे लेट कर सो गये नींद में उन्होंने एक स्वप्न देखा कि. “वे रास्ते में जा रहे हैं ,और उन्हें एक व्यापारी मिला, जो पांच गधों पर बड़ी- बड़ी गठरियां लादे हुए जा रहा था। गठरियां बहुत भारी थीं, जिसे गधे बड़ी मुश्किल से ढो पा रहे थे। साधु ने व्यापारी से प्रश्न किया- “इन गठरियों में तुमने ऐसी कौन-सी चीजें रखी हैं, जिन्हें ये बेचारे गधे ढो नहीं पा रहे हैं?”व्यापारी ने जवाब दिया- “इनमें इंसान के इस्तेमाल की चीजें भरी हैं।

उन्हें बेचने मैं बाजार जा रहा हूं।  साधु ने पूछा- “अच्छा! कौन-कौन सी चीजें हैं, जरा मैं भी तो जानूं! व्यापारी ने कहा- “यह जो पहला गधा आप देख रहे हैं इस पर अत्याचार की गठरी लदी है। साधु ने पूछा- “भला अत्याचार कौन खरीदेगा?”व्यापारी ने कहा- “इसके खरीदार हैं राजा- महाराजा और सत्ताधारी लोग। काफी ऊंची दर पर बिक्री होती है इसकी।साधु ने पूछा-“इस दूसरी गठरी में क्या है? व्यापारी बोला- “यह गठरी अहंकार से लबालब भरी है और इसके खरीदार हैं पंडित और विद्वान।

तीसरे गधे पर ईर्ष्या की गठरी लदी है और इसके ग्राहक हैं वे धनवान लोग, जो एक दूसरे की प्रगति को बर्दाश्त नहीं कर पाते। इसे खरीदने के लिए तो लोगों का तांता लगा रहता है। साधु ने पूछा- “अच्छा! चौथी गठरी में क्या है भाई?”व्यापारी ने कहा- “इसमें बेईमानी भरी है और इसके ग्राहक हैं वे कारोबारी, जो बाजार में धोखे से की गई बिक्री से काफी फायदा उठाते हैं। इसलिए बाजार में इसके भी खरीदार तैयार खड़े हैं। साधु ने पूछा- “अंतिम गधे पर क्या लदा है?”व्यापारी ने जवाब दिया- “इस गधे पर छल-कपट से भरी गठरी रखी है

और इसकी मांग उन औरतों में बहुत ज्यादा है जिनके पास घर में कोई काम-धंधा नहीं हैं और जो छल-कपट का सहारा लेकर दूसरों की लकीर छोटी कर अपनी लकीर बड़ी करने की कोशिश करती रहती हैं। वे ही इसकी खरीदार हैं। तभी महात्मा की नींद खुल गई। इस सपने में उनके कई प्रश्नों का उत्तर उन्हें मिल गया। सही अर्थों में कहें तो वह व्यापारी स्वयं शैतान था, जो संसार में बुराइयाँ फैला रहा था। और उसके शिकार कमजोर मानसिकता के स्वार्थी लोग बनते हैं। शैतान का शिकार बनने से बचने का एक ही उपाय है कि...ईश्वर पर सच्ची आस्था रखते हुवे अपने मन को ईश्वर का मंदिर बनाने का प्रयत्न किया जाय। ईश्वर को इससे मतलब नहीं कि कौन मंदिर गया, या किसने कितने वक्त तक पूजा की, पर उन्हें इससे अवश्य मतलब होगा कि किसने अपने किन अवगुणों का त्याग कर किन गुणों का अपने जीवन में समावेश किया ,और उसके रचे संसार को कितना सजाया-संवारा..!!

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*सदैव प्रसन्न रहिये।*

*जो प्राप्त है, पर्याप्त है।।

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