नगर के मशहूर शायर मरहूम मुज़फ़्फ़र रज़मी कैरानावी को नोवीं बरसी पर किया गया याद। देश-विदेश में अपनी शायरी का डंका बजाने एवं हिंदुस्तान का नाम रोशन करने वाले कैराना के मशहूर शायर मुजफ्फर रज़मी का परिवार मुफलिसी की जिंदगी जीने को मजबूर हैं। मुजफ्फर रज़मी की 9 वीं बरसी पर उनके परिवार ने उनको याद किया तथा परिवार सरकार से मदद की उम्मीद लगाएं बैठा हैं। कैराना नगर पालिका में लिपिक की नौकरी करने वाले कैराना नगर के मोहल्ला बेगमपुरा निवासी मुजफ्फर रज़मी को शायरी का ऐसा शौक लगा कि उन्होंने देश विदेशों में अपने शायरी का डंका बजा कर हिंदुस्तान का नाम बुलंदियों पर पहुंचाने का काम कर दिया। मुजफ्फर रज्मी का मशहूर शेर 'यें जब्र भी देखा हैं तारीख की नजरों ने, लम्हों ने खता की थी, सदियों ने सजा पाई' देश की संसद में भी गूंजता रहता हैं। कैराना में 5 जून 1935 में जन्मे मशहूर शायर का 19 सितंबर 2012 में इंतकाल हो गया था। उनके इंतकाल के बाद उनके तीन बेटे व दो बेटियां परिवार में रह गई थी। परिवार नगरपालिका के एक मकान में किराए पर रहता हैं।
उनके जीते जी हर कोई उनकी शायरी का कायल था। वैसे तो पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह सहित सामाजिक संगठनों द्वारा मशहूर शायर को बुलाकर उनकी तारीफ की जा चुकी हैं, लेकिन किसी भी सरकार ने आज तक उनकी मदद नहीं की। पिछले साल उनके बेटे नवेद ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी के साथ उनकी शायरी की किताबें भेजी थी तथा किराए के मकान की समस्या के हल कराने की मांग की थी। उनके बेटे नवेद ने बताया कि वह दिल्ली स्थित भाजपा कार्यालय पर गए थे।
जहां पर उनके द्वारा स्थानीय सांसद से लेटर पैड पर लिखवा कर लाने की बात कहीं थी। वें जल्द ही कैराना सांसद प्रदीप चौधरी से मिलकर मदद की गुहार लगायेंगे। सरकारों द्वारा मशहूर शायर व उनके परिवार की उपेक्षा करने के कारण परिवार आर्थिक स्थिति से गुजर रहा हैं। रविवार को उनके आवास पर उनके तीनों बेटो जावेद इकबाल, प्रवेज जमाल व नवेद कमाल ने उनकी 9वीं बरसी पर कुरान ख्वानी कराई तथा मशहूर शायर की मग़फिरत के लिए दुआएं की।
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