आरजू : एक कविता ,

 


तुम चाँद तो मैं चकोर बन जाऊँगी

तुम्हारी खातिर किस्मत से लड़ जाऊँगी 

जब होगे तुम समन्दर से गहरे

तो नदी बन तुम्हारे पास इठलाऊँगी

तुम कलम बनना कभी तो मैं स्याही बन जाऊँगी

और बनना अगर किताब कभी

तो मैं हर एक लफ्ज़  में नजर आऊँगी 

तुम कृष्ण बनना तो मैं तुम्हारी मुरली बन जाऊँगी

तुम पाक अजान बनना, तो मैं तुम्हारी आयत हो जाऊँगी

तुम शम्भु बनना मेरे, मैं बेल पत्र बन समर्पित हो जाऊँगी

तुम वीणा के तार बन आलाप सुनाना 

मैं सरगम बन झंकृत कर जाऊँगी 

स्वर्ण ना बन सकी तो क्या हुआ

माटी बन जाऊँगी,

बादल से तुम बरसना

दुनिया को सोंधेपन से महकाऊँगी 

पूनम भास्कर "पाखी"

पीसीएस अधिकारी

डिप्टी कलेक्टर यूपी

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