निज़ामुद्दीन में लोग "छिपे" होते हैं, लेकिन, बाकी जगह लोग "फँसे" होते हैं

शब्दों के बारीक हेर फेर से न्यूज़ में नफ़रत की खेती होती है।

तबलीगी जमात को हम मुसलमान दशकों से *अल्लाह मियाँ की

गाय* कहते आए हैं। मुसलमानों का एक बड़ा वर्ग, वो भी इतना सीधा सादा की पूछिए मत। एकदम से गैरराजनीतिक, सिर्फ मस्जिद

में रहना। अल्लाह-अल्लाह करना और घरों को चले जाना। आपस में

ही इस्लाम की बातें करना, सबको अपना मानना, पैजामे टखनों से

ऊपर, लंबी दाढ़ी, सर पर टोपी, ईमानदारी ऐसी की गैरमुस्लिम भी उनकी मिसाल दें।

अब आपको गाय से भी दिक्कत हो गई। आपदाएं जब आती हैं तो फासीवाद को मजबूत करके जाती हैं। कल से TV पर देख रहा हूं।

किसी ने भी सच्चाई नहीं दिखाई। दिल्ली के निज़ामउद्दीन इलाके में बंगले वाली मस्जिद को तबलीगी जमात को वैश्विक मुख्यालय कहते

हैं। सबसे पहले तो हमें गर्व करना चाहिए कि हमारे देश में इस्लाम धर्म के एक प्रमुख वैचारिक धड़े का मुख्यालय है, जहां हर साल

लाखों की तादाद में दुनिया के हर देश से मुसलमान आते हैं और मुस्लिम बाहुल्य इलाकों की मस्जिदों में जाकर इस्लाम-कुरान और

हजरत मोहम्मद साहब की बातें बताते हैं। इसी को तबलीग कहते हैं।

हमारे देश में जब COVID-19 को लेकर किसी भी प्रकार की हेल्थ एडवाइज़री नहीं जारी की गई थी, और इंटरनेशल फ्लाइट्स आदि पर

रोक नहीं लगी थी, तभी मरकज़ निज़ामउद्दीन पर विभिन्न देशों तथा भारत के कई राज्यों से तबलीगी जुटे थे। यह जुटान 10 से15 मार्च

के दौरान था, इस दौरान सरकारी कारिंदे मीडिया में कहते रहे कि पैनिक होने की ज़रूरत नहीं है, हमारे यहां ऐसा कोई मामला नहीं

हुआ है। उधर दुनिया भर में कोविड से निपटने के लिए वहां की सरकारें हर संभव प्रयास कर रही थीं। डर का माहौल सब ओर था,

लेकिन अपने ही नागरिकों को कोई दुश्मन की तरह नहीं ट्रीट कर रहा था और भारत से फ्लाइट आने जाने में किसी भी देश को कोई

परेशानी नहीं हो रही थी। तबलीगी जमात के मुख्यालय पर इस दौरान हजारों लोग थे। वहां आमतौर पर भी एकाध हजार लोग हमेशा रहते हैं।

ख़ैर, 22 मार्च को प्रधानमंत्री ने जनता कर्फ्यू का एलान किया। इस दौरान लोग सड़क पे निकले, नाच गाना किया, तो सरकार ने दिल्ली

में 144 लगा दिया। मरक़ज ने अपने नज़दीकी थाने तथा हल्के के SDM को पत्र लिख कर कहा कि उनके यहां करीब 1500 लोग हैं।

कृप्या उन सभी को उनके घरों तक पहुंचाने के लिए हमने गाड़ियों का इंतज़ाम किया है, उन गाड़ियों का पास मुहैया करा दें, ताकि वे अपने

घरों को चले जाएं। यह पत्र 25 मार्च को लिखा जाता है। 22 को जनता कर्फ्यू लागू रहता है, जिस कारण से बहुत से लोग वहां से नहीं

निकल पाते लेकिन 23 को करीब एक हजार लोग मरक़ज से निकल कर अपने घरों को चले जाते हैं। फिर 23 को ही प्रधानमंत्री ने आधी

रात से *जो जहां है वहीं रहे* कह कर पूरे देश को लॉकडाउन कर दिया।

इन परिस्थितियों में मरकज़ निज़ामउद्दीन में करीब करीब 1500 लोग फंस गए, ग़ौर करें। दंगाई मीडिया इन लोगों को *छुपे* होने का कह

रही है। जबकि ये सबके सब लॉकडाउन की वजह से मरकज़ में फंस गए होते हैं। मरकज़ की तरफ से इसके बावजूद 25 मार्च को

निज़ामउद्दीन थाने के SHO से (7)सात चारपहिया गाड़ियों के लिए

पास बनवाने हेतु निवेदन किया जाता है, जिसकी कॉपी SDM को भी भेजी जाती है, लेकिन परमीशन नहीं मिलती।

इसके बाद 29 मार्च को फिर से मरकज़ की तरफ से लेटर लिखा जाता है, असिस्टेंट कमिश्नर ऑफ पुलिस (दिल्ली) अतुल कुमार जी

को। यह लेटर दिल्ली पुलिस के नोटिस लेटर संख्या 717/SO-ACP/Lajpat Nagar के जवाब में लिखा जाता है।


नोटिस मिलने के बाद मरकज़ ने सारी परिस्थितियों से अवगत कराया एवं कहा कि जितने भी लोग मरकज़ में बचे हैं उनमें अधिकतर

विदेशी नागरिक तथा दूर राज्यों के भारतीय हैं, जिन्हें आईसोलेट किया जा चुका है। सारे ज़रूरी कदम एहतियातन उठाए जा चुके हैं।

फिर तेलंगाना से एक ख़बर आती है, कि निज़ामउद्दीन मरकज़ से लौटे छह लोगों की मौत कोरोना वॉयरस की वजह से हो गई है।

 उसके बाद तो ज़ी मीडिया, रिपब्लिक, टीवी9 भारतवर्ष समेत हिंदी भाषा के सारे दंगाई चैनल में मरकज़ को देशद्रोहियों का अड्डा बताने

की होड़ लग गई, हेल्थ डिपॉर्टमेंट की गाड़ियां मरकज़ पहुंचने लगीं, पुलिस लगा दी गई, मरकज़ को बदनाम करने में कौन कितना आगे

निकलेगा इसकी बाज़ी लग गई, देश भर के मुसलमानों को इसके बहाने घेरा जाने लगा। यह सब जानते हैं कि कोरोना देसी बिमारी नहीं

बल्कि विदेशी है। और यह भी सभी जानते हैं कि दिसंबर में पहला मामला सामने आया था, उसके बाद जनवरी, फरवरी एवं आधा मार्च

आते आते इसका खतरा पूरी दुनिया पर आ गया। फिर भी हमारे देश के ज़िम्मेदारान सोते रहे, विदेश से हर दिन हजारों लोग बिना किसी

जाँच पड़ताल के आते रहे, अमेरिका से लेकर फ्रांस, इज़राइल, यूरोप, अरब तक से लाखों लोग भारत में आए। किसी की भी जांच नहीं हुई।

 लापरवाही का ऐसा मंज़र शायद ही किसी देश ने देखा हो, गलती हमारी व्यवस्था करे और भुगते हम? यह कहां का न्याय है।

मरकज़ में विदेशी आए क्योंकि भारत सरकार ने उन्हें वीज़ा दिया, एयरपोर्ट पर उनकी जांच नहीं हुई तो गलती तबलीगियों की है?

अगर ईमानदार हैं तो जवाब खोज कर खुद को दीजिएगा। मुझे मत बताइएगा।

मरकज़ में साल के बारहों महीने हजारों लोग रहते हैं। प्रधानमंत्री ने एक दिन का जनता कर्फ्यू लगाया और फिर अगले ही दिन रात से

लॉकडाउन कर दिया। लोग वहां फंसे रह गए। जैसे पूरा देश फंस गया अपने अपने घरों में। जो जहां था वहीं फंस गया। तो फिर ये हिंदी

भाषा के दंगाई चैनल और नरपिशाच एंकर मरकज़ में फंसे तबलीगियों को *छुपा* होने क्यों कह रहे हैं। क्या हमने यूपी-दिल्ली

सीमा पर फंसे लाखों लोगों को कहा था क्या कि ये सब कहां छुपे थे। हां, कहा गया था। यही सारे चैनल और एंकर इन मज़दूरों को भी

*कोरोना बम* से तुलना कर रहे थे। हम सबको पता था कि मज़दूरों की इस भीड़ में 80% हिंदू हैं। फिर भी सरकार के तलवे चाटने वाले

ये खूनी एंकर उन गरीब-बेसहारा मज़दूरों और हिंदी राज्यों के बाशिंदों को *कोरोना बम* कह रहे थे।

असल में यह केंद्र में बैठी निकम्मी सरकार के पालतू पिट्ठू हैं। वे जैसा कहती है वैसा ही ये करते हैं। इनके लिए क्या हिंदू क्या मुसलमान।

सब कुछ पैसा और पॉवर ही होता है। इंसानियत का क़त्ल करने वाले ये, वे गंवार हैं जिनको पता है कि वे क्या कर रहे हैं।

ऐसा पहली बार हो रहा है कि जो बिमार हैं, उनके प्रति टीवी वाले नफरत भर रहे हैं, यही तो फासीवाद की पहचान है, फासीवाद को

किसी की मौत से फर्क़ नहीं पड़ता, जब तक कि उसका अपना कोई न मर जाए। बिमार की सेवा के बजाए उसे मरने के लिए छोड़ने की

बातें हो रही हैं, लोग तो गोली मारने को कह रहे हैं, मने हम बचे रहे, बाक़ि सब मर जाएं, हम यहां आ पहुंचे हैं। नफरत ने यहां ला खड़ा किया है हम सबको।

केजरीवाल की सारी राजनीति मीडिया और ट्विटर के ट्रेंड से चलती है, कल मरकज़ को लेकर मीडिया सक्रिय हुई, ट्विटर पर ट्रेंड चला

तो केजरीवाल ने केस दर्ज करने का आवेदन दिल्ली पुलिस में कर दिया। यही केजरीवाल है जो दिल्ली दंगा भड़काने वालों के खिलाफ

केस दर्ज कराने का आर्डर नही देते है, केजरीवाल को मालूम है कि मुसलमान उसे कुछ नहीं कहेगा, वोट भी देगा। यह केजरीवाल की

उस राजनीति का हिस्सा है, जहां वह मुसलमानों पर बात ही नहीं करना चाहता। भाजपा उसे मुसलमान कह कर छूती है तो वह खुद

पर केमिकल का छिड़काव करने लग जाता है ताकि सब कुछ साफ हो जाए।

*ख़ैर जो भी है। मैं ईश्वर से यही प्रार्थना करूंगा कि निज़ामउद्दीन मरकज़ में फंसे विदेशी तथा भारतीय नागरिकों की हिफाज़त करे।

हिंदू-मुसलमान के बीच नफरत फैलाने वालों को दिलों में प्यार भर दे। उन्हें अच्छी समझ और बेहतर सोच वाला बनाए।*

मोहम्मद अनस

जिसे अधिकारियों को दिए गए लैटर देखना होगा वो देख सकता है।

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