बुर्का न पहनने की सनक ने छीनी तीन जिंदगियां: शामली का दिल दहला देने वाला ट्रिपल मर्डर


उत्तर प्रदेश के जनपद शामली से सामने आई यह घटना न सिर्फ एक अपराध है, बल्कि समाज के भीतर पनप रही खतरनाक मानसिकता का भयावह उदाहरण भी है। थाना कांधला क्षेत्र के गांव गढ़ी दौलत में एक पति ने कथित “इज्जत” और “पर्दे” की सनक में अपनी पत्नी और दो मासूम बेटियों की बेरहमी से हत्या कर दी।

कैसे खुला राज़

गांव निवासी फारुख, जो शादी-विवाह में खाना बनाने का काम करता था, अपनी पत्नी ताहिरा (32) और पांच बच्चों के साथ अलग मकान में रहता था। बीते छह दिनों से उसकी पत्नी ताहिरा और दो बेटियां — आफरीन (14) और सहरीन (7) — अचानक लापता थीं। फारुख ने अपने पिता दाउद को बताया कि उसने पत्नी और बेटियों को शामली में किराये के मकान में रखा है, लेकिन वह किसी भी तरह का ठोस पता या जानकारी नहीं दे सका।

संदेह गहराने पर फारुख के पिता दाउद ने मंगलवार शाम पुलिस को सूचना दी और अपने ही बेटे पर गंभीर शक जताया।

पुलिस पूछताछ में हुआ खौफनाक खुलासा

पुलिस ने फारुख को हिरासत में लेकर सख्ती से पूछताछ की तो सच्चाई सामने आ गई। आरोपी ने कबूल किया कि 10 दिसंबर की रात करीब 12 बजे उसने पहले रसोई में अपनी पत्नी ताहिरा की गोली मारकर हत्या कर दी। गोली की आवाज सुनकर बड़ी बेटी आफरीन वहां पहुंची, तो उसे भी गोली मार दी गई। छोटी बेटी सहरीन के पहुंचने पर उसका गला दबाकर हत्या कर दी गई।

इसके बाद फारुख ने तीनों शवों को घर के आंगन में शौचालय के लिए खोदे गए करीब 9 फीट गहरे गड्ढे में दबा दिया और ऊपर से मिट्टी डालकर ईंटों का फर्श बिछा दिया, ताकि किसी को शक न हो।

खोदाई में निकले तीन शव

फारुख की निशानदेही पर पुलिस ने आंगन की खुदाई कराई, जहां से पत्नी और दोनों बेटियों के शव बरामद हुए। मौके पर एसपी एनपी सिंह, सीओ कैराना और भारी पुलिस बल मौजूद रहा। पूरे गांव में सन्नाटा और दहशत फैल गई।

‘इज्जत’ के नाम पर वहशीपन

पुलिस के अनुसार, फारुख ने पूछताछ में बताया कि उसकी पत्नी बिना बुर्का पहने अपने मायके चली गई थी, जिससे उसकी “इज्जत खराब” हो गई। इसी बात से वह मानसिक रूप से इतना बौखला गया कि उसने यह खौफनाक कदम उठा लिया। आरोपी ने यह भी स्वीकार किया कि शादी के बाद से वह पत्नी को सख्त पर्दे में रखता था।

बच्चों की जुबानी शक की कहानी

आरोपी की मां असगरी ने बताया कि बच्चों ने उन्हें बताया था कि एक रात सभी साथ सोए थे, लेकिन सुबह अम्मी और दोनों बहनें गायब थीं। इसके अलावा, तीन दिन पहले फारुख द्वारा पत्नी के कपड़े जलाने की बात भी सामने आई थी, जिसने शक को और मजबूत किया।

सवाल समाज से

यह घटना सिर्फ एक आपराधिक मामला नहीं है, बल्कि समाज के लिए एक गंभीर चेतावनी है।

  • क्या धर्म या परंपरा के नाम पर हिंसा जायज़ हो सकती है?
  • क्या ‘इज्जत’ का मतलब किसी की जान ले लेना है?
  • और सबसे बड़ा सवाल — क्या मासूम बच्चियां भी ऐसी सोच की बलि चढ़ेंगी?

इस्लाम हो या कोई भी धर्म, निर्दोष की हत्या को सबसे बड़ा गुनाह माना गया है। पर्दा आस्था हो सकता है, लेकिन ज़बरदस्ती और हत्या किसी भी सूरत में धर्म नहीं हो सकती।

निष्कर्ष

शामली की यह घटना हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि कट्टरता, शक और पुरुषवादी मानसिकता किस हद तक इंसान को हैवान बना सकती है। कानून अपना काम करेगा, लेकिन समाज को भी आत्ममंथन करना होगा — ताकि भविष्य में कोई ताहिरा, आफरीन या सहरीन ऐसी सनक की शिकार न बने।


“समझो भारत” राष्ट्रीय समाचार पत्रिका के लिए
कांधला, जिला शामली (उ.प्र.) से
पत्रकार शौकीन सिद्दीकी की खास रिपोर्ट

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