मोहब्बत और भाईचारे का पैग़ाम: नफ़रत को मात देने वाला हिंदुस्तान

हिंदुस्तान के सभी बाशिंदों को यौमे-आज़ादी की दिली मुबारकबाद। इस पावन मौके पर मैं, अपने सभी हिंदू और मुस्लिम भाइयों से एक गुज़ारिश करता हूं—आइए, हम सब मिलकर उन ताकतों को नाकाम कर दें जो नफ़रत फैलाकर हमें बांटने की कोशिश करती हैं। मोहब्बत और भाईचारे से यह साबित कर दें कि हम एक थे, हैं, और हमेशा एक रहेंगे।

याद रखिए, असल पहचान इंसानियत है। मैंने खुद एक ऐसी घटना देखी जिसने मेरे इस यक़ीन को और मजबूत कर दिया। एक गांव का शख्स अपने बच्चे को साइकिल पर बैठाकर बाज़ार की तरफ जा रहा था कि अचानक गड्ढे में पहिया फंस गया। बच्चे का पैर साइकिल के पहिए में फंसकर बुरी तरह जख़्मी हो गया। इत्तेफ़ाक से मैं वहां मौजूद था। देखते ही देखते चारों तरफ से दुकानदार दौड़कर आए और सबने मिलजुल कर उस बच्चे को छुड़ा लिया।

वो बच्चा और उसका बाप, दुकानदारों के मज़हब से अलग थे, लेकिन उस पल मुझे सिर्फ़ परिवार की चिंता दिखाई दी—कोई हिंदू, कोई मुसलमान नहीं, सिर्फ़ इंसान। यही है मेरा हिंदुस्तान, जिसमें दिल मिलकर धड़कते हैं।

हाँ, मैंने यहां वो काली परछाइयां भी देखी हैं जो नफ़रत फैलाने की कोशिश करती हैं, जिनके कारण लोग आपस में दुश्मनी तक पर उतर आते हैं। लेकिन मैं यहां उस दर्द को सिर्फ़ एक ग़ज़ल में बयां करना चाहता हूं, ताकि यह पैग़ाम दिल तक पहुंच सके—चाहे वो हिंदू हो या मुसलमान।


ग़ज़ल ✍️ गुलज़ार अहमद
आज़ाद हो चुके हों तमाशा ये क्या है अब
इंसान बट चुका है वतन रह गया है अब

फ़िर जा रही है शायद किसी बे जुबा की जां
सय्याद के लबों पे तबस्सुम नया है अब

शायद कहीं पे पांव अमन का चिराग़ में
उम्मीद मर चुकी है अंधेरा बचा है अब

कर देंगे ख़ून मेरा मेरे चाहने वाले
अल्लाह! क्या ये दौर-ए-तअस्सुप चला है अब

गुलज़ार जा रहे हो किसी की तलाश में
बर्बादियों के बाद भी क्या कुछ बचा है अब


📌 रिपोर्ट: गुलज़ार अहमद, नगीना, जिला बिजनौर, उत्तर प्रदेश
📜 समझो भारत राष्ट्रीय समाचार पत्रिका
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