✍️ रिपोर्ट: ज़मीर आलम | समझो भारत राष्ट्रीय समाचार पत्रिका | मेरठ
"आंखें बंद करो बेबी…"
"सोने का लॉकेट लाया हूं…"
"अपने हाथ से पहनाऊंगा…"
यह संवाद किसी रोमांटिक फिल्म का नहीं, बल्कि एक दिल दहला देने वाले कत्ल का पर्दा है। मेरठ के अम्हेड़ा गांव में जो हुआ, वो केवल एक हत्या नहीं, विश्वास, प्रेम, और मातृत्व की निर्मम हत्या थी।
❖ पांच महीने की गर्भवती पत्नी की गला काटकर हत्या
जनवरी महीने में 'रविशंकर' और 'सपना' की शादी हुई थी। नए रिश्ते की शुरुआत, नए सपनों की उड़ान, और अब पांच महीने बाद पेट में पल रही एक नई ज़िंदगी।
लेकिन इन सबके बीच पनप रहा था — शक का ज़हर।
रविशंकर को शक था कि उसकी पत्नी का किसी और से संबंध है। वह यह बात न खुद समझ सका, न किसी को समझा सका — और अपने ही हाथों उस स्त्री की गर्दन काट डाली, जो उसकी पत्नी थी, और एक आने वाले जीवन की जननी।
❖ “लॉकेट” नहीं, धोखे की छुरी
हत्या से ठीक पहले रविशंकर ने सपना से कहा —
"आंखें बंद करो बेबी, लॉकेट पहनाता हूं…"
लेकिन यह लॉकेट नहीं था। यह था एक खूनी खेल का आखिरी सीन, जिसमें गहने की जगह मौत पहनाई गई।
इस एक क्रूर क्षण ने न केवल एक पत्नी को, बल्कि एक मां और एक अजन्मे बच्चे को भी मार डाला।
❖ एक सवाल जो रह गया…
क्या शक का कोई इलाज नहीं?
क्या रिश्ते सिर्फ शरीर के भरोसे टिके हैं?
क्या पति का स्वामित्व इतना अंधा हो चुका है कि वह पत्नी के मन को पढ़ने के बजाय गला काटने का फैसला कर ले?
कानून, पुलिस, पंचायतें — सब आएंगे बाद में। पर जो नहीं लौटेगा, वो सपना है। वो अजन्मा बच्चा है। वो भरोसा है।
❖ पड़ोसियों की चीख और मां की चीत्कार
गांव में इस वारदात के बाद मातम पसरा है। पड़ोसियों ने चीखते हुए कहा —
"हमने कभी नहीं सोचा था रविशंकर ऐसा करेगा। वह तो हर जगह सपना को लेकर बेहद खुश दिखता था।"
सपना की मां की चीखें अब भी हवाओं में तैर रही हैं —
"बेटी ब्याहकर भेजी थी, अर्थी बनकर लौटी।"
❖ निष्कर्ष
यह केवल एक ‘क्राइम रिपोर्ट’ नहीं है।
यह उस समाज की तस्वीर है जहां शक को शांति से बात कर सुलझाने के बजाय खून से मिटाने की आदत बन चुकी है।
जब तक संवाद, समझ और संवेदना की जगह संदेह, स्वामित्व और सनक लेते रहेंगे —
हर सपना, सपना ही रह जाएगा… और अंत “लॉकेट पहनाने” के बहाने होगा।
📍स्थान: अम्हेड़ा गांव, मेरठ (उत्तर प्रदेश)
✍️ रिपोर्ट: ज़मीर आलम
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