GST का डर, कैश की वापसी और डिजिटल इंडिया को झटका: छोटे व्यापारियों की उलझनें

लेखक: ज़मीर आलम

विशेष संवाददाता — समझो भारत राष्ट्रीय समाचार पत्रिका
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भूमिका: जब भरोसे की जगह डर ले ले, तो तरक्की ठहर जाती है

सरकारें डिजिटल इंडिया के सपने बुन रही हैं, लेकिन ज़मीन पर व्यापारी डर के साये में जी रहे हैं। कर्नाटक में GST नोटिसों की बौछार के बाद, छोटे दुकानदारों में अफरा-तफरी का माहौल बन गया है। नतीजा ये हुआ कि जिन हाथों ने QR कोड से लेन-देन की आदत डाल ली थी, वो अब फिर से जेब में रद्दी नोट तलाश रहे हैं।


UPI से भरोसा उठा, GST से डर बढ़ा

विजडम हैच के संस्थापक और प्रख्यात फिनफ्लुएंसर अक्षत श्रीवास्तव ने हाल ही में चेताया कि यह रुझान देश के डिजिटल इंडिया मिशन के लिए गंभीर झटका साबित हो सकता है। छोटे दुकानदारों का कहना है कि GST के नियम इतने पेचीदा हैं कि थोड़ी-सी चूक भी भारी टैक्स और नोटिस की शक्ल में सामने आ सकती है। नतीजा—UPI छोड़कर फिर कैश की ओर वापसी।


"भीख मांग लेंगे, लेकिन GST की झंझट नहीं पालेंगे"

यह शब्द एक आम दुकानदार के नहीं, बल्कि आज के उस डर के हैं जो देशभर के व्यापारियों के दिल में गूंज रहा है। GST का डर केवल कानून का डर नहीं, यह एक सिस्टम पर अविश्वास की झलक है। व्यापारियों को डर है कि—

  • उनका हर UPI लेन-देन 'आय' मान लिया जाएगा
  • व्यक्तिगत और पारिवारिक खातों में आए पैसे पर भी टैक्स लगेगा
  • स्पष्टीकरण देने की प्रक्रिया लंबी और अपमानजनक हो सकती है

ग़ाज़ियाबाद के कपड़ा व्यापारी मोहम्मद शमीम ने खुलकर कहा, “अब ₹2,000 से ऊपर की खरीद पर ग्राहक को खुद कह देते हैं कि कैश दें। अब हर ट्रांजैक्शन के लिए सफाई कौन देता फिरे?”


व्यापारियों की दुविधा: कागज़ी प्रक्रिया बनाम रोज़मर्रा की जद्दोजहद

छोटे दुकानदार आम तौर पर चार्टर्ड अकाउंटेंट नहीं रखते, न ही उनके पास फुल-टाइम अकाउंटिंग टीम होती है। व्यापार में आने-जाने वाले पैसे—कभी बेटे के खाते में, कभी पत्नी के पेटीएम पर—अक्सर निजी और व्यावसायिक लेन-देन का अंतर स्पष्ट नहीं होता।
अब यही सामान्य व्यवहार उनके लिए कर अपराध का रूप ले रहा है।


विभाग की सफाई, लेकिन व्यापारी संतुष्ट नहीं

कर्नाटक में करीब 6,000 व्यापारियों को UPI आधारित GST नोटिस भेजे गए। विभाग की संयुक्त आयुक्त मीरा सुरेश पंडित ने स्पष्ट किया कि ये नोटिस सिर्फ स्पष्टीकरण के लिए हैं, कोई अंतिम टैक्स डिमांड नहीं। लेकिन असली सवाल यह है—क्या डर का असर केवल दस्तावेज़ों से मिटाया जा सकता है?

व्यापारी संगठन कह रहे हैं कि —
"स्पष्टीकरण की प्रक्रिया से पहले स्पष्टीकरण की मंशा ज़रूरी होती है।"


कैश की वापसी: एक सुरक्षा कवच या पीछे की ओर कदम?

UPI, डिजिटल पेमेंट और QR कोड जैसी तकनीकों ने दुकानदारों को आधुनिकता से जोड़ा था। लेकिन अब कैश की वापसी का मतलब सिर्फ पुराने सिस्टम में लौटना नहीं, बल्कि भरोसे की हार है। अक्षत श्रीवास्तव कहते हैं—
"यह सिर्फ टैक्स नीति की असफलता नहीं, यह देश के कारोबारी वर्ग द्वारा सिस्टम पर से उठते भरोसे का प्रमाण है।"


क्या यह सिर्फ कर्नाटक की कहानी है? नहीं—पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक असर

शामली, मुज़फ्फरनगर, मेरठ, ग़ाज़ियाबाद जैसे शहरों के खुदरा व्यापारी अब खुलेआम कह रहे हैं—

  • “QR कोड उतार दिया है”
  • “UPI ऑफ कर दी है”
  • “नकद से काम चलाओ, सिरदर्द नहीं चाहिए”

एक पश्चिमी यूपी के मिठाई दुकानदार ने बताया, “कई बार ग्राहक के पास UPI ही होता है, लेकिन अब उन्हें भी मना कर देते हैं। अपनी दूकान को दफ्तर नहीं बनाना चाहते।”


निष्कर्ष: क्या डिजिटल इंडिया सिर्फ नारा रह जाएगा?

डिजिटल पेमेंट का सपना तभी टिक सकता है जब व्यापारी और सरकार के बीच विश्वास बना रहे। अभी की स्थिति में वह विश्वास डगमगा चुका है। जरूरत है—

  • सरलीकृत टैक्स प्रक्रिया
  • व्यापारियों की डिजिटल ट्रेनिंग
  • UPI लेनदेन पर स्पष्ट नीति और संरक्षण

यदि ये कदम नहीं उठाए गए, तो डिजिटल इंडिया सिर्फ ऐप डाउनलोड और विज्ञापनों में सिमट कर रह जाएगा।


अंतिम पंक्ति:

"देश तब बदलता है जब व्यापारी डर कर नहीं, भरोसे से टेक्नोलॉजी अपनाता है।"
यदि नीयत विकास की है, तो नीति को सरल बनाना ही असली सुधार होगा।


📢 रिपोर्ट: ज़मीर आलम
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