मोहर्रम इस्लामी वर्ष का पहला महीना है, जो शहादत, सब्र और अकीदत का पैगाम देता है। इसी माह-ए-ग़म की 6वीं तारीख को बिड़ौली सादात गांव एक बार फिर इमाम हुसैन और उनके कारवां की याद में सराबोर नजर आया।
बुधवार की मध्यरात्रि को बिडौली सादात में सय्यद इकबाल हैदर के आवास पर एक खास मजलिस का आयोजन किया गया। मजलिस में शहीद-ए-कर्बला और उनके जानिसार साथियों को खिराज-ए-अकीदत पेश की गई। मजलिस के बाद ताजिया अलम का जुलूस अकीदत और गम के माहौल में उठाया गया, जिसमें हर चेहरा ग़मगीन और हर दिल मातमज़दा नजर आया।
यह जुलूस सय्यद इकबाल हैदर के आवास से शुरू होकर गांव के इमाम बारगाह तक पहुँचा, जहां इसका पुरअसर समापन हुआ। जुलूस के दौरान अकीदतमंदों ने ताजिया पर फातेहा पढ़कर अपनी नेक दुआओं के लिए हाथ उठाए। हर दिल से एक ही सदा बुलंद हो रही थी – "या हुसैन!"जुलूस के दौरान शौकीन हुसैन, हाशिम शाह, सय्यद वसी हैदर जैसे मशहूर नोहेख्वानों ने दर्द भरे लहजे में नौहे पढ़े, जिनसे फिजा में करबला की यादें ताज़ा हो गईं। इनकी आवाज़ ने जुलूस में मौजूद सैकड़ों अकीदतमंदों के दिलों को झंकझोर दिया।
इस मातमी जुलूस में गांव के नामी अकीदतमंद शामिल हुए जिनमें फजल अली उर्फ अच्छू मिया, मोहम्मद अब्बास, आग़ाज़, सलीम शाह, नियाज हैदर, गुड्डू मिया, जिया मेहदी आदि प्रमुख रूप से शामिल थे। हर शख्स ने अपने तरीके से इमाम हुसैन की शहादत को याद किया और उनके बताए रास्ते पर चलने का इरादा जताया।बिडौली सादात का यह जुलूस सिर्फ एक रस्म नहीं, बल्कि एक जिंदा पैगाम है – ज़ुल्म के खिलाफ आवाज़ उठाने का, इंसाफ और हक के लिए डट जाने का। मोहर्रम के ये जुलूस हमें करबला से यह सबक देते हैं कि सच्चाई और इंसानियत की राह में चाहे कैसी भी कुर्बानी क्यों न देनी पड़े, पीछे नहीं हटना चाहिए।
समझो भारत इस पाक और पुरअसर माहौल की रिपोर्टिंग करते हुए तमाम अकीदतमंदों की अकीदत को सलाम पेश करता है।
🕋 या हुसैन!
📍स्थान: बिडौली सादात
🗓️ तारीख: मोहर्रम 6, 1447 हिजरी
📷 रिपोर्ट: शाकिर अली | समझो भारत
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