अब 'नीला ड्रम' श्रद्धा की पहचान बनेगा – शिवभक्त शिवम की अनोखी कांवड़ यात्रा
✍️ रिपोर्टर: ज़मीर आलम, "समझो भारत" राष्ट्रीय समाचार पत्रिका
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कुछ समय पहले तक जिस नीले ड्रम को एक कुख्यात नाम से जोड़ा जा रहा था, अब वही ड्रम श्रद्धा, भक्ति और संकल्प का प्रतीक बन गया है। मेरठ की एक घटना ने नीले ड्रम को बदनामी का चेहरा बना दिया था। लेकिन अब गाजियाबाद के एक शिवभक्त शिवम ने उस बदनामी को आस्था में बदलने का बीड़ा उठाया है।
🔱 एक ड्रम, दो कहानियाँ
जहाँ एक ओर 'नीला ड्रम' समाज के लिए शर्मनाक याद बन गया था, वहीं अब शिवम ने उसी ड्रम को भोलेनाथ की भक्ति से जोड़कर उसका कायाकल्प कर दिया है। उन्होंने नीले ड्रम से एक अनोखी कांवड़ बनाई है, जो पूरे रास्ते श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र बनी हुई है।
🚩 101 लीटर गंगाजल और हरिद्वार से शुरू हुआ पावन सफर
शिवम ने हर की पौड़ी, हरिद्वार से 101 लीटर गंगाजल भरकर अपने इस विशेष ड्रम में रखा और कांवड़ यात्रा के लिए रवाना हुए। यह केवल जल की यात्रा नहीं, बल्कि एक विचार की यात्रा है — कि कोई भी प्रतीक, चाहे वह बदनाम ही क्यों न हो गया हो, आस्था और विश्वास से फिर से पवित्र बन सकता है।
🛤️ आस्था का रास्ता और समाज को संदेश
शिवम की इस पहल का उद्देश्य स्पष्ट है — समाज को यह बताना कि “बदनामी स्थायी नहीं होती, यदि भावना सच्ची हो तो बदलाव संभव है।” नीला ड्रम अब नकारात्मकता का नहीं, बल्कि शिव भक्ति का संदेश देगा।
🕉️ "कातिल मुस्कान नहीं, अब शिव की महिमा बोलेगी!"
यह वाक्य आज उस यात्रा की आत्मा बन गया है। शिवम का यह कृत्य न केवल एक बदनाम प्रतीक को पुनः प्रतिष्ठा दिला रहा है, बल्कि यह भी सिखा रहा है कि प्रतीकों को नकारने की बजाय उन्हें सकारात्मक बदलाव का माध्यम बनाना चाहिए।
🙏 निष्कर्ष: आस्था का कोई रंग नहीं होता, लेकिन उसका असर सब पर होता है
शिवभक्त शिवम की यह यात्रा आने वाली पीढ़ियों को यह सिखाएगी कि कोई भी वस्तु, चाहे वह कैसी भी क्यों न हो, अगर उसमें श्रद्धा और सेवा का भाव हो, तो वह पवित्र बन जाती है। नीला ड्रम अब हमारे समाज की पुनर्विचार और पुनर्निर्माण की भावना का प्रतीक बन चुका है।
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ज़मीर आलम
"समझो भारत" राष्ट्रीय समाचार पत्रिका
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