📅 तारीख: गुरु पूर्णिमा विशेषांक - जुलाई 2025
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🙏 गुरु — वो शक्ति जो अंधकार में प्रकाश की मशाल है
भारतीय संस्कृति में गुरु को देवों से भी ऊँचा स्थान प्राप्त है। गुरु ही वह शक्ति हैं जो शिष्य के जीवन को केवल विद्या से नहीं, बल्कि सद्गुण, संस्कार और सत्य से परिपूर्ण करते हैं। गुरु शिष्य को केवल पढ़ाते नहीं, उसका पुनर्जन्म करते हैं — आत्मिक, नैतिक और सामाजिक रूप से।
इसी भावनात्मक दर्शन का उदाहरण बनी हैं क्रांतिकारी शालू सैनी।
🕯️ माता-पिता: पहले गुरु, जो अब स्मृतियों में जीवित हैं
रुड़की की चर्चित सामाजिक कार्यकर्ता और ‘लावारिसों की वारिस’ के नाम से पहचान बना चुकी शालू सैनी ने गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर भावुक होते हुए कहा:
"मेरे पहले गुरु मेरे माता-पिता थे। वे आज इस दुनिया में नहीं हैं, पर जिस लोक में भी उनकी आत्मा है, उन्हें मेरा कोटि-कोटि प्रणाम।"
यह श्रद्धा केवल शब्द नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति की आत्मा है — जहाँ माता-पिता को प्रथम गुरु माना गया है।
🚩 धर्म और राष्ट्र सेवा के दो स्तंभ: यति नरसिंहानंद गिरी व मनोज सैनी
शालू सैनी डासना धाम देवी मंदिर पहुँचीं और महामंडलेश्वर यति नरसिंहानंद गिरी जी महाराज का आशीर्वाद प्राप्त किया। उन्होंने कहा:
"मुझे धर्म के मार्ग पर चलने का जो ज्ञान मिला, वह मेरे धर्मगुरु यति नरसिंहानंद जी की कृपा है। और सामाजिक व राजनीतिक जीवन में मेरे प्रेरणास्रोत, मेरे मार्गदर्शक मनोज सैनी गुरुजी हैं।"
शालू सैनी ने आगे जोड़ा:
"दुनिया में सब आपके खिलाफ हो सकते हैं, लेकिन एक गुरु ही होता है जो कहता है — 'तू चल मेरे साथ।' यही विश्वास ही शिष्य की सबसे बड़ी शक्ति होता है।"
🌸 गुरु पूर्णिमा पर विशेष संकल्प: श्रद्धा और संकल्प की मिलनबिंदु
गुरु पूर्णिमा पर शालू सैनी ने नमन करते हुए डासना धाम देवी मंदिर में पहुंचे सभी संतों और गुरुओं के चरणों में श्रद्धा सुमन अर्पित किए। उनका संदेश स्पष्ट था:
"गुरु सिर्फ ज्ञान का स्रोत नहीं है, बल्कि वह उस प्रकाश स्तंभ की तरह है, जो अज्ञान रूपी अंधकार से बाहर निकालकर जीवन को दिशा और उद्देश्य प्रदान करता है।"
📢 राष्ट्र निर्माण के लिए गुरुजनों के मार्गदर्शन की आवश्यकता
गुरु पूर्णिमा पर शालू सैनी का यह आह्वान केवल श्रद्धा नहीं, बल्कि कर्तव्य का संकल्प भी है। आज जब समाज भटकाव और विघटन की ओर बढ़ रहा है, तब गुरुजन ही वह ध्रुवतारा हैं जो हमें हमारी पहचान और दिशा दोनों दे सकते हैं।
✍️ निष्कर्ष:
गुरु न हों तो जीवन एक दिशाहीन नाव की भांति होता है।
गुरु का होना ही जीवन का सौभाग्य है।
शालू सैनी की भावनाएँ हर उस भारतीय के हृदय की आवाज़ हैं, जो अपने गुरु के लिए सम्मान, प्रेम और समर्पण का भाव रखता है।
इस गुरु पूर्णिमा पर आइए, हम भी अपने जीवन के सभी गुरुओं को नमन करें और उनके दिखाए मार्ग पर चलने का संकल्प लें।
✒️ रिपोर्टर: ज़मीर आलम
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