"जनप्रतिनिधि का अपमान: जब एडीएम ने तोड़ी शिष्टाचार की मर्यादा"

📍स्थान: शामली, उत्तर प्रदेश

🖋️ रिपोर्ट: शौकीन सिद्दीकी, जिला ब्यूरो-चीफ | कैमरा: रामकुमार चौहान
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लोकतंत्र की आत्मा तब आहत होती है जब चुने हुए जनप्रतिनिधियों के साथ नौकरशाही का व्यवहार अनुशासन और शिष्टाचार की सीमाएं लांघता है। ऐसा ही एक मामला उत्तर प्रदेश के शामली जिले से सामने आया है, जहां कैराना की लोकप्रिय सांसद इकरा हसन और छुटमलपुर नगर पंचायत की अध्यक्षा शमा परवीन के साथ जिला प्रशासन के एक वरिष्ठ अधिकारी द्वारा की गई अभद्रता ने प्रशासनिक गरिमा पर सवाल खड़े कर दिए हैं।

🔹क्या है पूरा मामला?

दिनांक 1 जुलाई 2025 को कैराना लोकसभा क्षेत्र की सांसद इकरा हसन, नगर पंचायत अध्यक्ष शमा परवीन के साथ छुटमलपुर क्षेत्र की जनसमस्याओं को लेकर शामली स्थित एडीएम (प्रशासन) संतोष बहादुर सिंह से मिलने पहुंचीं।

शुरुआत में दोपहर एक बजे एडीएम से संपर्क करने पर बताया गया कि वे लंच पर हैं और समस्या को पत्र के माध्यम से भेजें। लंच के बाद सांसद व नगर अध्यक्षा तीन बजे दोबारा कार्यालय पहुंचीं।

आरोप है कि इस मुलाकात के दौरान एडीएम का रवैया न केवल असहयोगात्मक था, बल्कि उन्होंने नगर पंचायत अध्यक्षा को झिड़का और सांसद इकरा हसन से भी अभद्र व अपमानजनक भाषा का प्रयोग किया। यहां तक कहा गया कि –
"यह कार्यालय मेरा है, जो मन में आएगा वही करूंगा, आप बाहर जाइए!"

🔹मामले ने पकड़ा तूल

एक जनप्रतिनिधि और एक नगर पंचायत अध्यक्ष के साथ ऐसा व्यवहार न सिर्फ प्रशासनिक आचरण के खिलाफ है, बल्कि लोकतंत्र की मूल भावना के भी प्रतिकूल है। सांसद इकरा हसन ने इस विषय पर कड़ा रुख अपनाते हुए मंडलायुक्त और प्रमुख सचिव, नियुक्ति विभाग (उत्तर प्रदेश सरकार) को लिखित शिकायत भेजी है।

शिकायत को गंभीरता से लेते हुए मंडलायुक्त ने तत्काल जिलाधिकारी को जांच के आदेश जारी किए हैं। अब देखना यह होगा कि क्या इस मामले में जवाबदेही तय होती है या फिर यह मामला भी नौकरशाही की परंपरागत "जांच की भूलभुलैया" में खो जाएगा।


🔹प्रशासन की सीमाएं और जनप्रतिनिधि का सम्मान

यह घटना सिर्फ एक व्यक्ति की अभद्रता नहीं है, बल्कि यह सत्ता और सेवा के बीच की सीमाओं को पुनः रेखांकित करती है। लोकतंत्र में अधिकारी जनता की सेवा के लिए होते हैं, न कि सत्ता के प्रदर्शन के लिए। किसी भी अधिकारी को यह अधिकार नहीं कि वह चुने हुए प्रतिनिधि को अपमानित करे – चाहे वह किसी भी दल या विचारधारा से संबंधित क्यों न हो।

🔹क्या यह सत्ता का दुरुपयोग है?

जब अधिकारी अपने पद की गरिमा को भूलकर जनप्रतिनिधियों से ‘गेट आउट’ जैसी भाषा में बात करते हैं, तो यह संकेत देता है कि कहीं न कहीं सत्ता का दुरुपयोग हो रहा है। यह स्थिति जनसेवक बनाम जनप्रतिनिधि के टकराव का रूप ले सकती है, जो व्यवस्था के लिए खतरे की घंटी है।


✍️ निष्कर्ष:

यह प्रकरण सिर्फ सांसद इकरा हसन या अध्यक्ष शमा परवीन का नहीं है, यह मामला हर उस जनप्रतिनिधि की गरिमा से जुड़ा है, जो जनता के विश्वास से चुनकर आया है। यदि अफसरशाही इसी प्रकार निर्वाचित प्रतिनिधियों का अपमान करेगी, तो लोकतंत्र का सबसे मजबूत स्तंभ – जनता की आवाज़ – कमजोर हो जाएगी।

समय की मांग है कि इस मामले की निष्पक्ष जांच हो, दोषियों पर सख्त कार्रवाई हो और भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश तय किए जाएं।

जनता देख रही है… लोकतंत्र को जवाब चाहिए।


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