✍🏻 रिपोर्ट: शौकीन सिद्दीकी
जिला ब्यूरो-चीफ | "समझो भारत" राष्ट्रीय समाचार पत्रिका
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"जब सड़क पर इंसान की पहचान उसका पेशा या जाति बन जाए, तो समझिए समाज बीमार है..."
📍स्थान: शामली, उत्तर प्रदेश
एक ऐसी घटना जिसने एक बार फिर हमारे सामाजिक ताने-बाने और संविधान में निहित समानता के मूल अधिकार को कठघरे में खड़ा कर दिया है। मांगेराम, एक गरीब दलित रिक्शा चालक, जो अपनी मेहनत से परिवार का भरण-पोषण कर रहा था, उसे केवल उसकी जाति और मजबूरी के आधार पर ना केवल शारीरिक रूप से पीटा गया, बल्कि खुलेआम अपमानित किया गया।
🧑🦯 घटना का विवरण
12 जुलाई 2025 को लगभग सुबह 10 बजे की बात है, जब मोहल्ला नंदू प्रसाद निवासी मांगेराम पुत्र स्व. लालूराम को दो लोगों ने घर के पास आकर धमकाया, जातिसूचक शब्दों का प्रयोग करते हुए गालियाँ दीं और मारपीट की। आरोपियों के बयान थे – "तुझे रिक्शा चलाना हम सिखाएँगे" — और इसके बाद धमकी देते हुए फरार हो गए।
मांगेराम ने जब उनकी पहचान की, तो उन्हें विशाल बर्तन वाला और उसका भाई बताया।
इस हमले की पृष्ठभूमि में 7 जुलाई की एक मामूली घटना है, जब एक महिला ग्राहक रिक्शे में बैठकर शौर्य पैलेस तक गई थी। रास्ते की खराब हालत के कारण थोड़ी असुविधा हुई, लेकिन मामला वहीं शांत हो गया। परंतु पाँच दिन बाद जिस तरह से उस घटना को जातीय आक्रोश का रूप देकर हिंसा की गई, वह अक्षम्य है।🚨 पुलिस कार्रवाई और न्याय की गुहार
मांगेराम ने सबसे पहले कोतवाली शामली में लिखित शिकायत दी, लेकिन वहां से कोई प्रभावी कार्यवाही नहीं हुई। जब न्याय की उम्मीद धुंधली दिखने लगी, तो मजबूरन उन्होंने पुलिस अधीक्षक शामली को एक और शिकायत पत्र देकर सख्त कार्यवाही और परिवार की सुरक्षा की गुहार लगाई है।अब देखने की बात यह है कि क्या प्रशासन इस उत्पीड़न के खिलाफ ठोस कदम उठाएगा या यह मामला भी फाइलों के ढेर में दबकर रह जाएगा?
🤔 क्या वाकई बदल रहा है समाज?
ये कोई पहली घटना नहीं है। देशभर में दलित समाज के साथ इस तरह की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं —
- कहीं दूल्हे को घोड़ी से उतार कर पीटा जा रहा है,
- कहीं दलित महिला के साथ अपमानजनक व्यवहार,
- तो कहीं बच्चों को स्कूलों में अलग बिठाया जा रहा है।
ऋषियों, मुनियों, पीरों और पैगंबरों के देश में, क्या यही वो भारत है जिसका सपना संविधान निर्माता डॉ. आंबेडकर ने देखा था?
🧭 सोचिए... कहाँ जा रहे हैं हम?
जातिवाद के नाम पर किसी भी नागरिक के साथ अपमानजनक व्यवहार, शारीरिक हिंसा या भेदभाव सिर्फ एक व्यक्ति पर हमला नहीं है, बल्कि यह भारत की आत्मा पर चोट है। यह घटना न केवल कानून व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह है, बल्कि सामाजिक चेतना पर भी एक करारा तमाचा है।"समझो भारत" राष्ट्रीय समाचार पत्रिका की ओर से मांगेराम को पूरा न्याय दिलाने की मांग की जाती है और प्रशासन से अपील की जाती है कि दोषियों पर तत्काल सख्त कार्रवाई की जाए, ताकि समाज में बराबरी, सम्मान और कानून का डर दोबारा स्थापित हो सके।
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