समझो भारत राष्ट्रीय समाचार पत्रिका से शाकिर अली की रिपोर्ट
बिडोली सादात, झिंझाना।
मोहर्रम की पांचवीं तारीख को मंगलवार के रोज़ बिडोली सादात गांव में हज़रत अली अकबर (अलैहिस्सलाम) की शहादत की याद में एक पुरअंजुम मातमी जुलूस बरामद किया गया। यह जुलूस नवास-ए-रसूल हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) के जांनिसार और बहादुर बेटे अली अकबर (अ.स.) की याद में निकाला गया, जिसमें अज़ादारों ने ग़म-ए-हुसैन मनाते हुए सीना ज़नी की और नौहे पढ़े।
ग्राम प्रधान कपिल कुमार की सरपरस्ती में जुलूस की राहों की सफाई और निगरानी के लिए सीसीटीवी कैमरे भी लगाए गए। वहीं पुलिस प्रशासन भी पूरी तरह मुस्तैद रहा और अमन व अमान को यक़ीनी बनाया गया।
जुलूस में नौहा ख्वानी करते हुए वसी हैदर, गुड्डू मियां, अली रज़ा, शौकीन हुसैन, हाशिम शाह, मोहम्मद ज़ैदी आदि ने पुरजोश अंदाज़ में दर्द-ए-कर्बला को बयान किया।
पूर्व प्रधान फ़ज़ल अली उर्फ अच्छू मियां ने बताया कि मोहर्रम का महीना ग़म और सब्र का महीना है, जिसमें कर्बला के शहीदों की कुर्बानी को याद किया जाता है। उन्होंने कहा कि हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) और उनके अहल-ए-बैत ने इस्लाम की हिफाज़त के लिए कर्बला के तपते हुए मैदान में शहादत दी। यही वजह है कि आज भी यह ग़म ताज़ा है और हर साल यह मातमी जुलूस उसी याद को ताज़ा करता है।
जुलूस में शामिल होने वालों में सय्यद वसी हैदर, शौकीन हुसैन, हाशिम शाह, नफीस शाह, डॉ. बाक़र ज़ैदी, हुसैन अली, हसन रज़ा, सज्जाद मेहदी, मंसूर शाह, क़ादिर अली, मन्नन मियां, अल्लन मियां, जावेद अली, मोहसिन अली, कमर रज़ा ज़ैदी, ज़िंदा शाह, हामिद शाह, ज़िया मेहदी, गुलाम अली, आफ़ताब मेहदी, फ़रास मेहदी, तस्लीम शाह, खालिद शाह, डॉ. रज़ी बाक़र ज़ैदी, ओवेस अली, और दीगर अज़ादारों के नाम काबिल-ए-ज़िक्र हैं।
इस पुरअसर और पुरग़म माहौल में जुलूस का इख़्तेताम हुआ और दुआओं के साथ यह पैग़ाम दिया गया कि कर्बला की कुर्बानी को कभी भुलाया नहीं जा सकता, यह इंसाफ़, हक़ और इंसानियत की अलामत है।
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