नई दिल्ली। सच्चाई की कलम जब सत्ता या प्रभावशाली लोगों की पोल खोलती है, तो जवाब में अक्सर झूठे मुकदमों और धमकियों की चालें चली जाती हैं। ऐसा ही एक मामला शामली जनपद के कैराना क्षेत्र से सामने आया है, जहां निर्भीक पत्रकार गुलवेज़ आलम पर बेबुनियाद आरोप लगाकर पुलिस को गुमराह करने की कोशिश की गई है।
इस घटनाक्रम के खिलाफ भारतीय स्वतंत्र पत्रकार एसोसिएशन (रजि.) के राष्ट्रीय अध्यक्ष ज़मीर आलम ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि यह हमला सिर्फ एक पत्रकार पर नहीं, बल्कि पूरे लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर है।
पत्रकार गुलवेज़ आलम बीते कुछ समय से एक पीड़ित व्यक्ति मजाहिर हसन के मामले में न्याय की आवाज़ उठाते हुए स्थानीय डॉक्टर अजीम अनवर के खिलाफ बेबाक रिपोर्टिंग कर रहे थे। लेकिन सच्चाई सामने लाना शायद डॉक्टर साहब को रास नहीं आया और उन्होंने रंगदारी जैसे गंभीर आरोपों के साथ गुलवेज़ के खिलाफ कैराना कोतवाली में झूठी तहरीर दे दी।
> “अगर पत्रकार के खिलाफ कोई ठोस प्रमाण नहीं पाया गया, तो झूठी तहरीर देने वाले के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए। हम पत्रकारों को डराने-धमकाने की ये रणनीति अब नहीं चलने देंगे।”
उन्होंने साफ किया कि एसोसिएशन किसी भी कीमत पर पत्रकारों की गरिमा और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से समझौता नहीं करेगी। ज़मीर आलम ने पुलिस प्रशासन को चेताते हुए कहा कि अगर मामले की निष्पक्ष जांच नहीं होती, तो संगठन राज्यव्यापी आंदोलन के लिए तैयार है।
उत्तर प्रदेश के सभी जिलों में डीजीपी को संबोधित ज्ञापन जिला अधिकारियों को सौंपा जाएगा, जिसमें पत्रकार की सुरक्षा और निष्पक्ष जांच की मांग की जाएगी।
क्या सच बोलना अब गुनाह है?
यह सवाल अब हर उस पत्रकार के मन में है, जो निडर होकर ज़मीन से जुड़ी सच्चाइयों को सामने लाने की हिम्मत करता है। क्या रिपोर्टिंग करना अब रंगदारी कहलाएगा? क्या सच को दिखाना साज़िश माना जाएगा?
भारतीय स्वतंत्र पत्रकार एसोसिएशन का स्पष्ट संदेश है –
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