मानवीय जीवन का उद्देश्य क्या है,, हमारा जीवन में लक्ष्य क्या होना चाहिए,,,?? बहुत सारे प्रश्न है,, जिस प्रकार एक पक्षी के दो पंख होते हैं एक पथ कमजोर हो जाए या टूट जाए तो उसकी उड़ान संभव नहीं,, इस प्रकार मानव जीवन के भी दो पक्ष होते हैं भौतिक एवं आध्यात्मिक पक्ष।
अगर दोनों में से कोई भी एक पक्ष कमजोर रह जाता है तो जीवन की सार्थकता खत्म हो जाती है,, भौतिक पक्ष आध्यात्मिक पक्ष का वाहक है, अतः वर्तमान कालखंड में मनुष्य को जीवन की इन दोनों पक्षों में संतुलन बनाकर चलना होगा।
अब जो प्रश्न सबसे ज्यादा उठाते हैं-- क्या आत्म-साक्षात्कार ईश्वरानुभूति केवल प्रभु कृपा से ही हो सकती है ? अध्यात्म जगत में मुझसे बहुत से प्रश्न पूछे जाते हैं कि "क्या ईश्वरानुभूति उसकी अनुकंपा से ही होती है और ये प्रश्न बड़ा महत्वपूर्ण है कि - "क्या ध्यान /आत्म-साक्षात्कार प्रभु की कृपा से ही उपलब्ध होता है ?
आज मैं अपनी बात से ही कुछ कहना शुरू करता हूं,मै हार्टफुलनेस मेडिटेशन का अभ्यासी हूं,,ध्यान से पहले की प्रार्थना इस प्रकार है--
हे नाथ! तू ही मानव जीवन का वास्तविक ध्येय है,, हम अपनी इच्छाओं के गुलाम हैं जो हमारी उन्नति में बाधक है,,तू ही एकमात्र ईश्वर एवं शक्ति है जो हमें उस लक्ष्य तक चल सकता है! इस प्रार्थना को थोड़ा समझना होगा -तभी यह उपयोगी है। इस बात को समझने में बहुत भूल भी हुई है-न मालूम कितने लोग यह सोचकर बैठ गए हैं कि प्रभु की कृपा से उपलब्ध होगा तो हमें कुछ भी नहीं करना है यदि प्रभु-कृपा का ऐसा अर्थ लेते हैं कि आपको कुछ भी नहीं करना है, तो आप बड़ी भ्रांति में हैं। दूसरी ओर भी इसमें भ्रांति है कि प्रभु की कृपा सबके ऊपर समान नहीं है लेकिन प्रभु-कृपा किसी पर कम ओर ज्यादा नहीं हो सकती। प्रभु के चहेते, विशिष्ट कोई भी नहीं हैं। और अगर प्रभु के भी चहेते हों तो फिर इस जगत में न्याय का कोई उपाय न रह जाएगा। मेरे गुरुदेव की एक पंक्ति बहुत मुझे लगती है कि अगर प्रभु के यहां भी शर्ते होंगी तो फिर तो वह भी दो कौड़ी का इंसान है। जहां पूजा पाठ, साधना में शर्तें हो-- if there is any kind of condition / division... there is no God 🙏 प्रभु की कृपा का तो यह अर्थ हुआ कि किसी पर कृपा करता है और किसी पर अकृपा भी रखता है...ऐसा अर्थ लिया हो तो वैसा अर्थ गलत है लेकिन किसी ओर अर्थ में सही है। प्रभु की कृपा से उपलब्ध होता है, यह उनका कथन नहीं है जिन्हें अभी नहीं मिला, यह उनका कथन है,,जिन्हें मिल गया है,, यह बिल्कुल सही बात है कि मिलेगा तो प्रभु की कृपा से ही और उनका कथन इसलिए है कि जब वह मिलता है, तो अपने किए गए प्रयास बिलकुल ही असंगत मालूम पड़ते हैं। जब वह मिलता है, तो जो हमने किया था वह इतना क्षुद्र और जो मिलता है- वह इतना विराट कि हम कैसे कहें कि जो हमने किया था उसके कारण यह मिला है? जब मिलता है तब ऐसा लगता है -हमसे कैसे मिलेगा? हमने किया ही क्या था? हमने दिया ही क्या था? हमने सौदे में दांव क्या लगाया था ? हमारे पास था भी क्या जो हम करते? था भी क्या जो हम देते ? जब उसकी अनंत-अनंत आनंद की वर्षा होती है तो उस वर्षा के क्षण में ऐसा ही लगता है कि तेरी कृपा से ही, तेरे प्रसाद से ही, तेरी अनुकंपा से ही उपलब्ध हुआ। हमारी क्या सामर्थ्य, हमारा क्या वश,, हमारी क्या औकात !
लेकिन यह बात उनकी है जिनको मिला। यह बात अगर उन्होंने पकड़ ली जिनको नहीं मिला, तो वे सदा के लिए भटक जाएंगे। प्रयास करना ही होगा... निश्चित ही,,, प्रयास करने पर मिलने की जो घटना घटती है ,वह ऐसी है, जैसे किसी का द्वार बंद है, सूरज निकला है और घर में अंधेरा है.. वे द्वार खोलकर प्रतीक्षा करें,,, सूरज भीतर आ जाएगा। सूरज को गठरियों में बांधकर भीतर नहीं लाया जा सकता, वह अपनी ही कृपा से भीतर आता है। यह मजे की बात है, सूरज को हम भीतर नहीं ला सकते अपने प्रयास से, लेकिन अपने प्रयास से भीतर आने से रोक जरूर सकते हैं। द्वार बंद करके, आंख बंद करके बैठ सकते हैं तो सूरज की महिमा भी हमारी बंद आंखों को पार न कर पाएगी। सूरज की किरणों को हम द्वार के बाहर रोक सकते हैं। रोक सकने में समर्थ हैं, ला सकने में समर्थ नहीं।द्वार खुल जाए, सूरज भीतर आ जाता है।
सूरज जब भीतर आ जाए तो हम यह नहीं कह सकते कि हम लाए; हम इतना ही कह सकते हैं,उसकी कृपा, वह आया और हम इतना ही कह सकते हैं कि हमारी अपने ऊपर कृपा ...कि हमने द्वार बंद न किए। आदमी सिर्फ एक शुरुआत बन सकता है- उसके आगमन के लिए। हमारे प्रयास सिर्फ द्वार खोलते हैं, आना तो उसकी कृपा से ही होता है लेकिन उसकी कृपा हर द्वार पर प्रकट होती है लेकिन कुछ द्वार बंद हैं, वह क्या करे?
बहुत द्वारों पर ईश्वर खटखटाता है और लौट जाता है; वे द्वार बंद हैं ...मजबूती से हमने बंद किए हैं और जब वह खटखटाता है, तब हम न मालूम कितनी व्याख्याएं करके अपने को समझा लेते हैं।
प्रसंगवश फिर एक कहानी जो मुझे बेहद पसंद / प्रीतिकर है ---एक बड़ा मंदिर, उस बड़े मंदिर में सौ पुजारी, बड़े पुजारी ने एक रात स्वप्न देखा है कि प्रभु ने खबर की हैस्वप्न में --कि "कल मैं आ रहा हूं".... विश्वास तो न हुआ पुजारी को,,,,क्योंकि पुजारियों से ज्यादा अविश्वासी आदमी खोजना सदा ही कठिन है।विश्वास इसलिए भी न हुआ कि जो दुकान करते हैं धर्म की, उन्हें धर्म पर कभी विश्वास नहीं होता। धर्म से वे शोषण करते हैं, धर्म उनकी श्रद्धा नहीं है और जिसने श्रद्धा को शोषण बनाया, उससे ज्यादा अश्रद्धालु कोई भी नहीं होता। पुजारी को भरोसा तो न आया कि भगवान आएगा, कभी नहीं आया। वर्षों से पुजारी है, वर्षों से पूजा की है, भगवान कभी नहीं आया। भगवान को भोग भी लगाया है, वह भी अपने को ही लग गया है। भगवान के लिए प्रार्थनाएं भी की हैं, वे भी खाली आकाश में-जानते हुए कि कोई नहीं सुनता- तो भी की हैं। सपना मालूम होता है.… समझाया अपने मन को कि सपने कहीं सच होते हैं लेकिन फिर डरा भी,,,,भयभीत भी हुआ कि कहीं सच ही न हो जाए। कभी-कभी सपने भी सच हो जाते हैं; कभी-कभी जिसे हम सच कहते हैं, वह भी सपना हो जाता है, कभी-कभी जिसे हम सपना कहते हैं, वह सच हो जाता है तो अपने निकट के पुजारियों को उसने कहा कि सुनो, बड़ी मजाक मालूम पड़ती है, लेकिन बता दूं...रात सपना देखा कि भगवान कहते हैं कि कल आता हूं। दूसरे पुजारी भी हंसे; उन्होंने कहा,पागल हो गए! सपने की बात किसी और से मत कहना, नहीं तो लोग पागल समझेंगे।
पर उस बड़े पुजारी ने कहा कि कहीं अगर वह आ ही गया! तो कम से कम हम तैयारी तो कर लें! नहीं आया तो कोई हर्ज नहीं, आया तो हम तैयार तो मिलेंगे।
तो मंदिर धोया गया, पोंछा गया, साफ किया गया, फूल लगाए गए, दीये जलाए गए; सुगंध छिडकी गई, धूप—दीप सब; भोग बना, भोजन बने। दिन भर में पुजारी थक गए; कई बार देखा सड़क की तरफ, तो कोई आता हुआ दिखाई न पड़ा और हर बार जब देखा तब लौटकर कहा, सपना सपना है, कौन आता है! नाहक हम पागल बने। अच्छा हुआ, गांव में खबर न की, अन्यथा लोग हंसते।सांझ हो गई। फिर उन्होंने कहा, अब भोग हम अपने को लगा लें.. जैसे सदा भगवान के लिए लगा भोग हमको मिला, यह भी हम ही को लेना पड़ेगा। कभी कोई आता है! सपने के चक्कर में पड़े हम, पागल बने हम-जानते हुए पागल बने। दूसरे पागल बनते हैं न जानते हुए, हम.......हम जो जानते हैं भलीभांति कभी कोई भगवान नहीं आता.. भगवान है कहां? बस यह मंदिर की मूर्ति है, ये हम पुजारी हैं, यह हमारी पूजा है, यह व्यवसाय है। फिर सांझ उन्होंने भोग लगा लिया, दिन भर के थके हुए वे जल्दी ही सो गए।
आधी रात गए कोई रथ मंदिर के द्वार पर रुका। रथ के पहियों की आवाज सुनाई पड़ी। किसी पुजारी को नींद में लगा कि मालूम होता है उसका रथ आ गया। उसने जोर से कहा, सुनते हो, जागो! मालूम होता है जिसकी हमने दिन भर प्रतीक्षा की, वह आ गया! रथ के पहियों की जोर-जोर की आवाज सुनाई पड़ती है! दूसरे पुजारियों ने कहा, पागल, अब चुप भी रहो; दिन भर पागल बनाया, अब रात ठीक से सो लेने दो। यह पहियों की आवाज नहीं, बादलों की गड़गड़ाहट है और वे सो गए, उन्होंने व्याख्या कर ली। फिर कोई मंदिर की सीढ़ियों पर चढ़ा, रथ द्वार पर रुका, फिर किसी ने द्वार खटखटाया, फिर किसी पुजारी की नींद खुली, फिर उसने कहा कि मालूम होता है- वह आ गया मेहमान ,,जिसकी हमने प्रतीक्षा की! कोई द्वार खटखटाता है लेकिन दूसरों ने कहा कि कैसे पागल हो, रात भर सोने दोगे या नहीं? हवा के थपेडे हैं, कोई द्वार नहीं थपथपाता है।उन्होंने फिर व्याख्या कर ली, फिर वे सो गए।
फिर सुबह वे उठे, फिर वे द्वार पर गए। किसी के पद-चिह्न थे, कोई सीढ़ियां चढ़ा था, और ऐसे पद-चिह्न थे जो बिलकुल अशात थे और किसी ने द्वार जरूर खटखटाया था और राह तक कोई रथ भी आया था। रथ के चाको के चिह्न थे। वे छाती पीटकर रोने लगे। वे द्वार पर गिरने लगे। गांव की भीड़ इकट्ठी हो गई। वह उनसे पूछने लगी, क्या हो गया है तुम्हें? वे पुजारी कहने लगे, मत पूछो। हमने व्याख्या कर ली और हम मर गए। उसने द्वार खटखटाया, हमने समझा -हवा के थपेडे हैं। उसका रथ आया- हमने समझा बादलों की गड़गड़ाहट है और सच यह है कि हम कुछ भी न समझे थे, हम केवल सोना चाहते थे और इसलिए हम व्याख्या कर लेते थे।
वह तो सभी के द्वार खटखटाता है..उसकी कृपा तो सब द्वारों पर आती है लेकिन हमारे द्वार हैं बंद। और कभी हमारे द्वार पर दस्तक भी दे तो हम कोई व्याख्या कर लेते हैं।पुराने दिनों के लोग कहते थे, अतिथि देवता है। थोड़ा गलत कहते थे...देवता अतिथि है देवता रोज ही अतिथि की तरह खड़ा है। लेकिन द्वार तो खुला हो! उसकी कृपा सब पर है इसलिए ऐसा मत पूछें कि उसकी कृपा से मिलता है लेकिन मिलता उसकी कृपा से ही है, हमारे प्रयास सिर्फ द्वार खोल पाते हैं, सिर्फ मार्ग की बाधाएं अलग कर पाते हैं, जब वह आता है, अपने से आता है,,,, यकीन मानिए इस विराट महायज्ञ मे परमात्मा भी आया था ,,मैं... मैं तो चूक गया संसार को खुश करने में,,,लोग भी चूक गए - खोये हुए थे दूसरे चक्करों में,, और यही माया है.समझो भारत न्यूज से जिला ब्यूरो-चीफ शौकीन सिद्दीकी के साथ कैमरामैन रामकुमार चौहान की रिपोर्ट
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