कैराना । नगर के कांधला रोड पर सोमवार को की गई छापेमारी ने एक बार फिर यह उजागर कर दिया कि पुलिस विभाग के भीतर ही कोई ‘सिस्टम’ है जो ईमानदार अफसरों की मेहनत को बर्बाद कर रहा है।
पुलिस अधीक्षक रामसेवक गौतम और प्रभारी निरीक्षक धर्मेंद्र सिंह की छवि एक कड़क और भ्रष्टाचार-विरोधी अधिकारी के रूप में बनी हुई है। इन दोनों अधिकारियों ने अपने-अपने कार्यक्षेत्र में निष्पक्ष और सख्त कार्रवाईयों के लिए एक अलग पहचान बनाई है।
लेकिन कांधला रोड पर चली अवैध पशु पैठ पर कार्रवाई को जिस तरह से जानबूझकर विफल किया गया—वह यह बताने के लिए काफी है कि विभाग के अंदर ही कोई ऐसा वर्ग सक्रिय है जो या तो इन अफसरों की नीति के खिलाफ काम कर रहा है या फिर अवैध व्यापारियों के साथ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ा हुआ है।
---
—विफल छापेमारी और ढर्रे पर चलती लीपापोती
सूचना मिलने के बावजूद छापेमारी बिना किसी विशेष तैयारी के की गई। न पर्याप्त फोर्स, न घेराबंदी, और न ही कोई कड़े सुरागों पर काम। परिणाम वही हुआ जो बार-बार होता है—संचालक फरार, पशु व्यापारी गायब, और पुलिस सिर्फ चालान काटकर लौट आई।
यह सब देखकर यही प्रतीत होता है कि कहीं न कहीं सूचना पहले ही लीक कर दी गई। और अगर यह सही है, तो यह पुलिस विभाग के भीतर मौजूद "सूत्रधारों" की ओर इशारा करता है—जो अपनी ही वर्दी को कलंकित कर रहे हैं।
---
ईमानदार नेतृत्व के खिलाफ ‘भीतरघात’?
रामसेवक गौतम व धर्मेंद्र सिंह जैसे अधिकारियों के नेतृत्व में बार-बार ऐसी घटनाएं विभाग के भीतर साजिशन विफलता का संकेत देती हैं। ये वे अफसर हैं जो भ्रष्टाचार, अवैध धंधों और तस्करी के खिलाफ ज़ीरो टॉलरेंस नीति के लिए जाने जाते हैं।
ऐसे में हर बार कार्रवाई का एक जैसा विफल रहना यह संदेह मजबूत करता है कि कुछ पुलिसकर्मी या तो जानबूझकर आदेशों का पालन नहीं करते या फिर कार्ययोजना को समय से पहले लीक कर देते हैं। यह स्थिति न केवल वरिष्ठ अधिकारियों के प्रति विश्वासघात है, बल्कि विभागीय अनुशासन और संवैधानिक जिम्मेदारी की हत्या भी है।
---
अवैध मंडी का नेटवर्क—सड़क किनारे गोरखधंधा, सत्तनुमा चुप्पी
नगर की प्रमुख सड़कों के किनारे बिना रोकटोक के मंडी लगना यह साबित करता है कि यह पूरा कारोबार एक व्यवस्थित नेटवर्क के अंतर्गत चलता है। पशु तस्कर, स्थानीय असामाजिक तत्व और विभाग के कुछ कमजोर या भ्रष्ट पुलिसकर्मी—यह त्रिकोणीय गठजोड़ वर्षों से पनप रहा है।
और हर बार जब कोई सख्त अधिकारी इसे तोड़ने की कोशिश करता है, तब यह नेटवर्क अपने भीतर से ही तोड़ने में जुट जाता है।
---
अब जरूरी है विभागीय ‘सर्जरी’—वरना सब कुछ ढह जाएगा
अगर इस पूरे मामले की निष्पक्ष व स्वतंत्र जांच नहीं हुई, तो यह केवल एक विफल छापेमारी नहीं, बल्कि पुलिस विभाग के भीतर बैठे षड्यंत्रकारियों की जीत होगी। यह मामला अब केवल पशु पैठ का नहीं, बल्कि "पुलिस सिस्टम में मौजूद सड़ांध" को उजागर करने का है।
पुलिस अधीक्षक रामसेवक गौतम और कोतवाली निरीक्षक धर्मेंद्र सिंह जैसे अफसरों को चाहिए कि वे विभागीय जांच बैठाकर यह साफ करें कि आखिर किसने और कैसे इस कार्रवाई को जानबूझकर नाकाम बनाया।
---
अंतिम पंक्तियां—
कानून का शासन तब तक संभव नहीं जब तक कानून की रक्षा करने वाला तंत्र भीतर से सुरक्षित न हो। और यदि वर्दी में ही कुछ चेहरे धंधेबाजों के दलाल बन चुके हों, तो फिर अपराध मिटाने के सारे प्रयास सिर्फ खोखले भाषण बनकर रह जाएंगे।
रिपोर्ट - गुलवेज आलम कैराना
No comments:
Post a Comment