कैराना (शामली) में एक बुजुर्ग की जमीन को लेकर फैलाई गई अफवाहें और आरोप आखिरकार जांच के बाद झूठे साबित हुए हैं। जमीन से जुड़े इस पूरे विवाद की तह में जाने पर जो सच्चाई सामने आई है, उसने एक सच्चे, जिम्मेदार और सेवा भाव से भरे इंसान को न्याय दिलाने का मार्ग प्रशस्त किया है।
डॉ. अज़ीम अनवर एक ऐसे भतीजे हैं, जिन्होंने अपने चाचा मजाहिर हसन की वर्षों तक निःस्वार्थ सेवा की। उन्होंने अपने चाचा के इलाज, जिंदगी के हर पहलू में उनकी देखभाल की और उनकी हर जरूरत को पूरा किया। इसके बावजूद, उन पर दुर्भावनावश धोखाधड़ी का आरोप लगाया गया था।
जांच में साफ तौर पर यह सामने आया कि मजाहिर हसन पूरी तरह से मानसिक रूप से स्वस्थ थे और उन्होंने स्वयं अपने अधिवक्ता के माध्यम से बैनामा की प्रक्रिया को पूरा कराया। बैनामा की प्रक्रिया में न केवल बुजुर्ग ने कानूनी सलाह ली, बल्कि नोटरी नीरज कुमार की उपस्थिति में गवाहों और पहचान प्रमाण के साथ दस्तावेजों पर हस्ताक्षर भी किए।
मजाहिर हसन ने अपनी 166 वर्गमीटर जमीन, जो खसरा संख्या 1604 में स्थित है, को 24 लाख रुपये में इंतजार पुत्र मकसूद, निवासी गन्नौर (हरियाणा) को बेचा। यह सौदा 26 फरवरी 2024 को विधिवत रूप से रजिस्ट्री कार्यालय में दर्ज किया गया। इस बैनामे के लिए न केवल बुजुर्ग ने कानूनी सलाह ली, बल्कि वीडियो रिकॉर्डिंग के माध्यम से भी यह स्पष्ट किया गया कि मजाहिर हसन पूर्ण होश में और अपनी इच्छा से जमीन बेच रहे थे।
जांच के दौरान उन सभी गवाहों ने भी शपथपूर्वक बयान दिए, जो बैनामा प्रक्रिया में मौजूद थे। इरशाद, महमूद अहमद, फरमान, इरफान और अन्य लोगों ने स्पष्ट रूप से कहा कि बैनामा पूरी जानकारी और सहमति से हुआ था, और मजाहिर हसन की मानसिक स्थिति एकदम सामान्य थी।
विपक्ष द्वारा बार-बार बहाने बनाए गए, ताकि प्रक्रिया पर सवाल उठाया जा सके। मगर तमाम दस्तावेजी प्रमाण, गवाहों के बयान, बैंक की RTGS स्लिप और वीडियो रिकॉर्डिंग ने पूरे सौदे को वैध और पारदर्शी सिद्ध कर दिया।
अब जब जांच में सच्चाई सामने आ गई है, तो स्पष्ट हो गया है कि यह पूरा प्रकरण पारिवारिक राजनीति, लालच और संपत्ति विवाद से प्रेरित था। लेकिन झूठ के पैर ज़्यादा देर नहीं टिकते — और इसी का प्रमाण यह है कि डॉ. अज़ीम अनवर न केवल कानूनी रूप से सही सिद्ध हुए, बल्कि समाज का विश्वास भी और अधिक मजबूत होकर उनके साथ खड़ा हुआ है।
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