मैले-कुचैले आंचल में बुंदेलखण्ड का अस्तित्व संजोए पवित्र मंदाकिनी


( लेखक/स्तंभकार प्रवीण पाण्डेय  राष्ट्रीय अध्यक्ष बुन्देलखण्ड राष्ट्र समिति )

- तपोबल से उत्पन्न मां  मंदाकिनी को बचाने के लिए कौन करेगा तप

- अपनों ने ही उजाड़ डाली पवित्र नदी की कोख

- अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही पवित्र नदी  

- भगवान राम की तपोस्थली, चित्रकूट की जीवन रेखा है मंदाकिनी नदी 

- बुंदेलखण्ड की आस्था का केंद्र बिंदु मंदाकिनी 

मंदाकिनी नदी को मानव सभ्यता की सबसे प्राचीनतम नदी माना जाता है। भगवान राम, सीता व लक्ष्मण ने वनवास काल का अधिकांश समय मंदाकिनी के किनारे ही व्यतीत किया था। पवित्र नदी का उद्गम स्थल चित्रकूट में सती अनसुइया माता का मंदिर है। यह मंदिर पहाड़ों और जंगलों के मध्य स्थित है। ऐसी मान्यता है कि अत्रि ऋषि की पत्नी माता अनसुइया के तपोबल के द्वारा ही मंदाकिनी नदी का उद्गम हुआ था। प्राचीन धार्मिक मान्यताओ के साथ ही बुंदेलखंड के बड़े हिस्से की प्यास बुझाने वाली मंदाकिनी अब सूखने की कगार पर पहुंच चुकी है। मंदाकिनी के पावन तट पर चित्रकूट रचा-बसा है।


चित्रकूट में अनेको धार्मिक स्थल मौजूद है। जिनका उल्लेख वेद-पुराण में मिलता है। मंदाकिनी को चित्रकूट की गंगा नदी कहा जाता है। रास्ते में पड़ने वाले जानकी कुंड का अपना प्राचीन इतिहास है। माता सीता यहां पर स्नान किया करती थीं। माता सीता के पिता जी का नाम जनक था। इसलिए माता सीता को जानकी के नाम से जाना जाता था और इस जगह को जानकीकुंड कहा गया है। रामघाट की आरती-पूजा का विशेष महत्व है। प्रतिदिन आरती के समय पर यहां हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। मौजूदा समय में पवित्र नदी का आंचल इस कदर मैला हो चुका है कि जिसे देखने के बाद आस्था रखने वाले भी बिचलित हो जाते हैं।

कई जगहों पर तो इस सदानीरा के अवशेष ही देखने को मिल रहे हैं। इन्हें देखकर स्पष्ट होता है कि अमुक जगह से कभी पवित्र मंदाकिनी नदी गुजरती थी। सवाल पैदा होता है कि आखिर किसकी नजर लग गई इस पुण्य सलिला को जो स्वयं का वजूद बचाने के लिए कराह रही है। कहीं अपनों ने ही तो नहीं बंजर कर दी अपनी मां की कोख? श्रीराम की मंदाकिनी आज नष्ट होने के मुहाने पर कराह रही है। मंदाकिनी किस गुनाह की सजा पा रही है इसका जवाब भी उन्हीं इंसानों के पास है जिन्होंने इसे मां की संज्ञा दी है। भगवान राम की तपोस्थली चित्रकूट के लिए यदि जीवन रेखा है तो बुंदेलखण्ड के लिए मंदाकिनी अस्तित्व का प्रतीक भी है। प्रत्येक महीने की अमावस्या पर हजारों श्रद्धालु पुण्य लाभ की कामना लेकर इसकी गोद में अठखेलियां करने उमड़ते हैं।

ऐसा माना जा रहा है कि यह सब कुछ वर्षों तक ही हो पाएगा, क्योंकि पवित्र मंदाकिनी धीरे-धीरे अपने अंत की ओर बढ़ रही है।  मंदाकिनी नदी ही बुंदेलखंड की विश्वव्यापी पहचान है। इसका सूखना इस इलाके का धूमिल होना है। राम के भगवान बनने तक की कहानी इसी नदी के आंचल से शुरू होती है। वह कहते हैं, वर्तमान समय में भौतिकता वादी समाज, अनियंत्रित जनसंख्या घनत्व, शहरीकरण, जलवायु परिवर्तन, रसायन युक्त खेती, पर्यावरण प्रदूषण, वनों का कटाव, पहाड़ों का विनाश और विकृत आस्था के चलते मां मंदाकिनी नदी का अस्तित्व संकट में है। यदि समय रहते हुए मंदाकिनी की अविरलता, निर्मलता के लिए हमारा समाज, संत, श्रद्धालु और राज्य सरकार मिलकर पहल नहीं करेंगे तो मंदाकिनी सिर्फ इतिहास के पन्नों में ही नजर आएगी। मंदाकिनी नदी को प्रदूषण मुक्त रखने व अविरल जल धारा को लेकर चलाई जा रही मुहिम के साथ अब जिले के तमाम समाजसेवी संगठन जुड़ गए हैं।

दैनिक जागरण द्वरा 'मंदाकिनी मांगे जीवन' मुहिम, एजुकेशन सोसाइटी, मंदाकिनी बचाओ समिति, सनातन धर्म राम-जानकी मंदिर सुंदर घाट कर्वी, भारतीय साहित्यिक संस्थान, सर्वोदय सेवा आश्रम और परहित सेवा संस्थान , बुंदेलखंड राष्ट्र समिति के सामाजिक कार्यकर्ता स्वयंसेवक लोगों को मंदाकिनी का महत्व बताने के साथ उन्हें स्वच्छता के प्रति सजग कर रहे हैं। बिडम्बना है कि प्रशासनिक जिम्मेदारों तक नदी के प्रदूषण की जानकारी दी गई, लेकिन कोई आगे नहीं आ रहा। नदी को साफ किया जाना चाहिए, क्योंकि यह हमारी जीवन रेखा है। वर्ष 2007 से नदी की स्थिति ज्यादा बिगड़ी है। मंदाकिनी नदी में शहर सहित ग्रामीण क्षेत्रों में कई स्थानों पर नाले का गंदा पानी डाला जा रहा है। इसके साथ ही नदी की जलधारा में कई स्थानों पर अवरोध उत्पन्न कर देने से जलधारा की गति मंद पड़ गई है। इससे नदी में प्रदूषण हो रहा है। 90 के दशक में हिन्दू जागरण मंच की प्रदेश महामंत्री अर्चना र्मिश्रा ने सर्वप्रथम मां मंदाकिनी को जीवंत करने की पहल की थी। किंतु मातृत्त भाव की धनी महिला नेत्री ने बांदा से चित्रकूट की ओर रुख किया। सर्वप्रथम इन्होंने ही मंदाकिनी के दमींदोज होते स्रोत और बढती गंदगी को लेकर चिंता की थी।

नब्बे के दशक में ही आपने महसूस कर लिया था कि धर्मनगरी की मां मंदाकिनी को अगर जीवंत नही रखा गया तो यहां की जनता और आने वाले श्रद्धालु  त्राहि-त्राहि तो करेगें ही साथ ही धर्म नगरी का वैभव भी छिन जायेगा। हमारी खास बातचीत में उन्होंने ने कहा कि बचपन से देश और समाज के प्रति हृदय में प्रबल भाव रहे हैं। एक बार चित्रकूट दर्शन के लिए जब गई थी। उसी वक्त मां मंदाकिनी की बचाओ-बचाओ की चीत्कार मुझे महसूस हुई थी। पवित्र नदी को गंदगी से बचाने के लिए उन्हाेंने लोगों से साबुन-शैम्पू का प्रयोग बंद करने व हवन सामग्री को नदी जल में विसर्जित न करने की अपील की।

अर्चना मिश्रा बताती हैं कि राजनीतिक महत्वाकांक्षा के चलते अभियान में सम्मिलित कुछ लोग स्वलाभ के स्वार्थ में अलग-थलग हो गए। किंतु उनके प्रयास से तत्कालीन यूपी और एमपी की सरकार ने मंदाकिनी की स्वच्छता व स्रोत को जीवंत करने के लिए बजट आवंटित किया था। पवित्र नदी के साथ जुड़ा दुर्भाग्य यहां भी आगे रहा। आवंटित धन, भ्रष्टाचार की भेंट चढ गया और आज भी नदी बचाने के नाम पर सामाजिक और सरकारी धन की लूटखसोट की परंपररा का निर्वाहन कुछ तथाकथित समाजसेवी कर रहे हैं।

बुन्देलखंड राष्ट्र समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रवीण पाण्डेय द्वारा बुंदेलखंड की बेटी भारत सरकार में केन्द्रीय मंत्री साध्वी निरजन ज्योति से मंदिकिनी सुरक्षा की मांग की गयी है। जल्द ही इस बिषय पर सार्थक रास्ता निकलेगा ऐसा हमें विश्वास है। बुंदेलखंड का इलाका, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की चक्की में पिस रहा है। इसी का नतीजा है कि कोई भी प्रदेश सरकार मंदाकिनी को बचाने के लिए ठोस कदम नहीं उठा रही है। (लेखक प्रवीण पाण्डेय बुंदेलखंड राष्ट्र समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष, बुंदेलखंड राज्य आंदोलन, पर्यावरण जल जंगल जमीन के संरक्षण के अभियान से जुड़े  है l)

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