आजाद जी को कोटि कोटि नमन/जयंती पर हार्दिक शुभकामनाएं साथियो 23 जुलाई सन्, 1906, आजादी के महान योद्धा क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद जी का जन्म आदिवासी ग्राम भावरा में एक गरीब ब्राह्मण परिवार मैं हुआ था बचपन से ही आजाद जी को पहलवानी कसरत और निशानेबाजी आदि का शौक था , 1922 में जब गांधी जी ने असहयोग आंदोलन छेड़ा था उस समय आंदोलन जोरों पर था देश की आजादी के लिए अपने बलिदान देने को बेताब था मात्र 14 वर्ष की आयु में बाल्य अवस्था में आंदोलन से प्रभावित होकर भाग लिया , बालक आजाद को गिरफ्तार कर लिया गया तो मजिस्ट्रेट ने चंद्रशेखर आजाद से उनका नाम पूछा तो बड़ी निडरता के साथ अपना नाम आजाद बताया पिता का नाम स्वतंत्रता अपना घर जेल खाना बताएं , उनका यह जवाब सुनकर मजिस्ट्रेट दंग रह गया और उन्हें ना बालिग होने के कारण 15 कोणों की सजा का हुकुम दिया गया , हर कोड़े की मार पर वह वंदे मातरम कहते रहे चंद्रशेखर सीताराम तिवारी को चंद्रशेखर आजाद के नाम से जाना जाने लगा , आजाद अपने उसूलों के इतने पक्के थे गरीबी में भी कोई भी उन्हें बड़े से बड़ा लालच डुला ना सका , जब काकोरी कांड में अंग्रेजों का खजाना लूटा तो कहा जाता है , खजाने को लूटने की खबर इनकी माता जगरानी देवी जी को मालूम हुई तो किसी के माध्यम से आजाद जी को संदेश भिजवाया घर में बहुत गरीबी है कुछ पैसे आजाद घर के लिए भिजवा दें यह बात सुनकर आजाद वह उत्तर दिया शायद दुनिया में कोई अपने मां बाप को ना दे सुना है उन्होंने कहा दौलत तो नहीं है मेरे पास मगर मेरी पिस्तौल में दो गोलियां जरूर है उनको देने के लिए
साथियों कितनी बड़ी बात कही , गरीब बनकर स्वाभिमान के साथ रहना मंजूर था ,मगर गुलामी और लूटी दौलत उन्हें मंजूर नहीं थी , काकोरी ट्रेन डकैती और सांडर्स की हत्या में इनका नाम सम्मिलित था , आजाद जी ने प्रण किया था कभी जीते जी अंग्रेज पुलिस के जीवित हाथ नहीं आऊंगा ,उस वक्त कहा था , किसकी मजाल जो छेड़े इस दिलेर को गर्दिश में घेर लेते हैं कुत्ते शेर को ,
फरवरी 1931 मैं जब चंद्र शेखर आजाद ,श्री गणेश शंकर विद्यार्थी जी से मिलने सीतापुर जेल गए थे तो विद्यार्थी जी ने सरदार भगत सिंह राजगुरु और सुखदेव के चल रहे केस के सिलसिले में इलाहाबाद जाकर नेहरू से मिलने के लिए कहा था आजाद नेहरू से मिलने आनंद भवन गए तो उन्होंने आजाद जी की बात सुनने से मना कर दिया गुस्से में वहां से आजाद अपने साथी सुखदेव राजगुरु के साथ अल्फ्रेड पार्क चले गए वह सुखदेव के साथ आगामी योजना के विषय पर विचार विमर्श कर रहे थे उसी वक्त चारों ओर से आजाद जी और सुखदेव राजगुरु को अंग्रेज पुलिस ने चारों ओर से घेर लिया , आजाद जी ने अपनी पिस्तौल से गोलियां दागना शुरू कर दी अपने दोनों साथियों को वहां से बचा कर निकाल दिया और अकेले मुकाबला करते रहे आखिरी गोली बचने पर अपने किए प्रण को निभाते हुए 27 फरवरी 1931 को आखरी गोली खुद को मार कर वीरगति पाकर भारत मां की गोद में हमेशा के लिए सो कर , अमर हो गए
आज दुःख होता है ए सब सुनकर कि देश की आजादी की खातिर अपना जीवन अर्पण करने वाले वीर क्रांतिकारियों को आज तक आजाद सरकारों ने शहीद का दर्जा नहीं दिया , इतने बड़े बड़े क्रांतिकारियों की जयंतियां व बलिदान दिवस का पता नहीं चलता चुपके से निकल जाती है , ,और वही जयंतियां अंग्रेजो के चाटुकारों और नेताओं की बड़े खर्चे के साथ शोर शराबा जोश के साथ मनाई जाती हैं
यह देश का दुर्भाग्य है
ऐसे फरेब करने वाले लोगों को शहीदों की रूह माफ नहीं करेगी ,जिस देश के क्रांति व वीरों का इतिहास नष्ट कर दिया जाता है समझो वह देश गुलामी की ओर चला जाता है क्योंकि उस देश में फिर कोई वीर योद्धा नहीं होगा , वीरों का इतिहास योद्धाओं को जन्म देता है , और जिस देश के क्रांति इतिहास को जीवित रखा जाता है उस देश को कोई गुलाम नहीं बना सकता ,
साथियो अपने वीरों के विचारों को जन जन तक पहुंचाने और शहीद का दर्जा आदि की मुहिम देश में
क्रांतिकारी संगठन आप और हम राष्ट्रीय भ्रष्टाचार अपराध मुक्ति संगठन इनके सम्मान की लड़ाई लड़ रहा है
आप सभी के साथ की जरूरत है इस मुहिम में
सभी सामाजिक संगठन एक बैनर तले होकर आवाज उठाओ क्रांतिकारियों को शहीद का दर्जा दो और भारत रत्न , मांग का समर्थन शहीद का देश हित में दिए बलिदान को देख कर करें , ना कि जाति धर्म देख कर , यही सच्ची राष्ट्र के प्रति सच्ची श्रद्धा होगी
चंद्रशेखर आजाद जी की जयंती पर अमर शहीद को कोटि कोटि नमन करते हुए
देश वासियों को हार्दिक शुभकामनाएं , हम जिएंगे और मरेंगे ए वतन तेरे लिए , ए वतन तेरे लिए
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