"जनप्रतिनिधित्व या जनप्रदर्शन? एडीएम कार्यालय विवाद में गरिमा बनाम ग़लत रवैये की गूंज"

🖋️ विशेष रिपोर्ट: गुलवेज़ आलम, स्वतंत्र पत्रकार | सह संपादन: हफीजुर्रहमान

प्रकाशन: विधायक दर्पण राष्ट्रीय समाचार पत्रिका, सहारनपुर
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📍स्थान: छुटमलपुर / सहारनपुर / कैराना

राजनीति और प्रशासन के टकराव की कहानी नई नहीं है, लेकिन जब यह टकराव शिष्टाचार की सीमाओं से बाहर निकलने लगे, तो सवाल उठते हैं – क्या हम मर्यादा में संवाद करना भूल चुके हैं?

हाल ही में एडीएम (प्रशासन) कार्यालय, शामली में घटित घटना ने कुछ ऐसे ही सवाल खड़े कर दिए हैं, जहां सांसद इकरा हसन और छुटमलपुर की नगर पंचायत अध्यक्ष शमा परवीन के साथ हुए कथित बर्ताव को लेकर एक पक्ष ने प्रशासन पर हमला बोला, तो वहीं दूसरे पक्ष ने इसे ‘राजनीतिक नाटक’ करार दिया।


🔍 क्या है मामला?

1 जुलाई 2025 को, नगर पंचायत अध्यक्ष शमा परवीन अपनी कुछ स्थानीय समस्याओं को लेकर सांसद इकरा हसन को साथ लेकर एडीएम कार्यालय पहुँचीं।
कार्यालय सूत्रों के मुताबिक, एडीएम संतोष बहादुर सिंह उस समय लंच पर थे, और अधिकारियों ने शिष्टाचारपूर्वक सांसद पक्ष से समस्या पत्र के माध्यम से देने का अनुरोध किया।

परंतु, दोपहर बाद जब सांसद और अध्यक्षा दोबारा एडीएम कार्यालय पहुँचीं, वहां का माहौल तनावपूर्ण हो गया।
प्रत्यक्षदर्शियों की मानें तो शमा परवीन का रवैया शुरुआत से ही आक्रामक था, और उन्होंने एडीएम से तीखी नोंकझोंक की, जिसकी वजह से स्थिति बिगड़ गई।


⚠️ सांसद की गरिमा पर बेमतलब की चोट?

जहां शमा परवीन की आक्रामकता प्रशासन के लिए चुनौती बनी, वहीं इस बहस के बीच जब सांसद इकरा हसन ने हस्तक्षेप किया, तो विवाद ने दूसरा मोड़ ले लिया।
सूत्र बताते हैं कि एडीएम ने सांसद को शांत रहने और “अनावश्यक दबाव न बनाने” की सलाह दी, जिसके बाद मामला और गरमा गया।

कुछ मीडिया रिपोर्टों और राजनीतिक समर्थकों द्वारा इसे सांसद के अपमान के रूप में प्रचारित किया गया, लेकिन यह कहना गलत न होगा कि इस विवाद की चिंगारी पहले से मौजूद थी — और वह चिंगारी थी शमा परवीन का पुराना रवैया


🔁 क्या यह जानबूझकर रचा गया विवाद था?

शमा परवीन पहले भी कई बार विवादों में रही हैं।

  • उन्होंने सार्वजनिक मंचों पर अपने ही परिवार पर गंभीर आरोप लगाए,
  • प्रशासनिक कार्यप्रणाली पर खुलेआम प्रश्न उठाए,
  • और अक्सर राजनीतिक लाभ हेतु उत्तेजक बयानबाजी करती देखी गई हैं।

इस बार भी, एक सामान्य प्रशासनिक प्रक्रिया को लेकर उन्होंने सांसद को साथ लेकर ऐसा प्रकरण खड़ा कर दिया, जिसमें न केवल प्रशासन की गरिमा पर प्रहार हुआ, बल्कि एक निर्वाचित सांसद की निष्कलंक छवि भी दांव पर लग गई।


📝 जांच और बयानबाज़ी

सांसद इकरा हसन द्वारा की गई शिकायत पर मंडलायुक्त ने तत्काल जांच के आदेश दिए हैं, और जिलाधिकारी ने मामले की तह तक जाने का आश्वासन दिया है।
एडीएम संतोष बहादुर सिंह ने आरोपों को निराधार व राजनीतिक प्रोपेगेंडा बताया है।

डीएम मनीष बंसल का भी स्पष्ट वक्तव्य है कि—

“जनप्रतिनिधियों से अधिकारी शिष्टाचारपूर्ण व्यवहार करें, लेकिन कोई भी व्यक्ति कानून से ऊपर नहीं है।”


💬 जनता क्या कहती है?

स्थानीय नागरिकों में इस प्रकरण को लेकर मिश्रित प्रतिक्रियाएं हैं:

  • कुछ लोग सांसद के साथ हुए व्यवहार को अनुचित मानते हैं,
  • तो कई लोग इसे शमा परवीन की पुरानी रणनीति का हिस्सा मानते हैं।
    एक शिक्षक का कहना था,

“अगर हर समस्या को यूं कैमरा लेकर हल करना होता, तो फाइलें क्यों चलतीं?”


✍️ निष्कर्ष: जिम्मेदारी किसकी?

इस पूरे घटनाक्रम ने दो बातें उजागर की हैं:

  1. जनप्रतिनिधि की गरिमा बनाए रखना प्रशासन की जिम्मेदारी है, लेकिन
  2. जनप्रतिनिधियों को भी प्रशासनिक अनुशासन और संवाद की मर्यादाओं का पालन करना होगा।

यह मामला अब सिर्फ जांच का विषय नहीं है, यह एक सवाल बन गया है कि जनता के भरोसे पर कौन खरा उतरता है — पद या व्यवहार?


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"सवाल अब यह नहीं कि कौन सही था – सवाल यह है कि क्या दोनों ही अपने कर्तव्य की मर्यादा में थे?"

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