अपने नाम से किसानों को जुटाने में नाकाम -------
राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मैनपाल चौहान, राष्ट्रीय महासचिव चौधरी युद्धवीर सिंह, मीडिया प्रभारी धर्मेंद्र मलिक, प्रदेश प्रवक्ता कुलदीप पवार,
इन नेताओं में सबसे ऊपर नाम आता है किसान यूनियन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मैनपाल चौहान निवासी जनपद शामली जब किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष चौधरी नरेश टिकेत द्वारा जब मेनपाल चौहान को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मनोनीत किया गया था तब इसको मास्टर स्टॉक बताते हुए गुर्जर समाज में भारतीय किसान यूनियन का वजूद बढ़ने की बात जोरों शोरों से रही थी लेकिन नतीजा एक बार फिर वही हुआ ढाक के तीन पात चौथा लगे ना पांचवे की आस या यूं कहिए कि गुर्जर समाज में पैड बनाने में नाकाम रहे राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मैनपाल चौहान अपनी योजना में फेल हुए भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष किसान आंदोलन में गुज्जर समाज तो दूर की बात अपने गांव के किसानों को भी जुटाने में कामयाब नहीं हो पाए राष्ट्रीय उपाध्यक्ष लेकिन आज बने हुए हैं यही हाल है राष्ट्रीय महासचिव युद्धवीर सिंह का आप लोग लोगों ने रोज टीवी चैनलों पर तो डिबेट में युद्धवीर सिंह को किसान हित की बातें करता देखता होगा लेकिन कभी किसानों की लड़ाई को जिले स्तर पर नहीं लड़ते देखा होगा और ना ही उनके नाम पर किसी आंदोलन में भीड़ को देखा होगा मैं ही उनके गांव से उनके क्षेत्र से उनके नाम पर भारतीय किसान यूनियन में काफी भीड़ गई लेकिन फिर भी राष्ट्रीय महासचिव बरकरार है
बात करें मीडिया प्रभारी धर्मेंद्र मलिक की जिसको किसान यूनियन के कोटे से कृषक समृद्धि आयोग उत्तर प्रदेश में भी सदस्य मनोनीत किया गया था और टीवी चैनलों पर भी अनेकों बार वार्ता में आप लोगों ने बैठा देखा होगा मलिक जी जनपद मुजफ्फरनगर की गांव खरड़ निवासी है और किसान आंदोलन में गांव खरड़ की भूमिका किसी से छिपी नहीं है यदि आज की भी हम बात करें तो गाजीपुर बॉर्डर पर गांव खरड़ के कितने किसान हैं इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि मलिक साहब की क्षेत्र प्रदेश या देश की पकड़ तो छोड़ दीजिए अपने गांव में ही कितनी पकड़ है
जब बात चल रही हो ऐसे किसान नेताओं की जो नेता तो बड़े हैं लेकिन उनके साथ किसान नहीं है यह समय समय पर साबित होता रहा है और ऐसे में भारतीय किसान यूनियन के प्रदेश प्रवक्ता कुलदीप कुमार निवासी नाला जनपद शामली का नाम ना आए तो यह तो उचित नहीं होगा यह भी एक ऐसे नेता हैं जो कभी भी अपने गांव से अपने क्षेत्र से अपने नाम पर किसान आंदोलन में कभी भीड़ नहीं उठा लेकिन केंद्रीय नेतृत्व से अपनी नजदीकियों के चलते आज तक अपने पद पर बने हुए हैं और इतना ही नहीं किसान बड़ा दखल रखते हैं उक्त चारों नेताओं के विषय में लगभग क्षेत्र में हर जगह चर्चाएं होती हैं केंद्रीय नेटवर्क की बात जाती है लेकिन कार्यकर्ताओं द्वारा समय-समय पर उठाए जाने वाले सवालों को दबा दिया जाता है इसका क्या कारण है कि केंद्रीय नेतृत्व जाने लेकिन जानकारों
का मानना है कि किसान यूनियन कार्यकर्ता वजूद ऐसे ही नेताओं की देन है या यूं कहिए कि सच्चे कार्यकर्ताओं की अनदेखी और चापलूसी की ताजपोशी ही भारतीय किसान यूनियन के घटते वजूद क्या कारण है अब देखना यह होगा कि क्या भारतीय किसान यूनियन का केंद्रीय नेतृत्व समय रहते ऐसे कांची नेताओं पर कर पाता है कोई कार्रवाई अपने सच्चे कार्यकर्ताओं की खलनायक ताजपोशी या फिर चाप लोगों को फिर मिलेगी प्राथमिकता यह तो आने वाला समय ही बताएगा लेकिन इतना तय है कि यदि कार्यकर्ताओं की अनदेखी की गई तो इसका खामियाजा किसानआंदोलन को निश्चित असर पड़ेगा लेकिन यदि जानकार सूत्रों की मानें तो यह तो मात्र एक झांकी है ऐसे ऐसे नेताओं की तो पूरी फिल्म बाकी है राष्ट्रीय कार्यकारिणी से लेकर प्रदेश तक प्रदेश से लेकर मंडल तक और मंडल से लेकर जिला तहसील ब्लाक वह ग्राम स्तर तक यही हालात है इसका जीता जागता उदाहरण है आपने किसान यूनियन समय-समय पर अनेकों विंग के पदाधिकारियों को देखा होगा उनसे संबंधित खबरों को पढ़ा होगा लेकिन कभी भी उन विंग के राष्ट्रीय अध्यक्षों के विषय में नहीं पढ़ा होगा और ना ही कभी उनको इसी कार्यक्रम में देखा होगा इससे प्रतीत होता है कि संगठन चंद लोगों की हाथ की कठपुतली बनकर रह गया है यानी जो उनके इर्द-गिर्द सुबह-शाम परिक्रमा करेगा वही संगठन में पद प्राप्त करेगा संगठन के किसी भी पदाधिकारी के पास इस बात का कोई जवाब नहीं है कि आज तक भारतीय किसान यूनियन की किसी भी पोस्टर पर किसी भी दिन के राष्ट्रीय अध्यक्ष का फोटो क्यों नहीं है केवल केंद्रीय नेतृत्व ज्ञानी टिकट बंधुओं के अलावा किसी अन्य का फोटो किसी विशेष अवसर को छोड़कर नजर नहीं आता यह भी एक प्रमुख कारण है किसान यूनियन से अन्य समाज और जाति के लोगों के जुड़ने का समय रहते केंद्रीय नेतृत्व को ओक समस्या के निदान की
योजना बनाते हुए किसान यूनियन को मजबूत करना होगा तभी मजबूत होगा किसान आंदोलन और किसानों के विरुद्ध केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए इन तीन काले कानूनों की वापसी तभी संभव केवल खबर छपवा नया फोटो खिंचवाने से कानून वापसी नहीं होगी इसके लिए संगठन में मजबूती लानी होगी और संगठन में मजबूती तभी आ सकती है जब चापलूसओ को बाहर का रास्ता दिखाया जाए और कर्मठ कार्यकर्ताओं को उनकी अक्षमता के अनुसार जिम्मेदारी सौंपी जाए अब यह तो आने वाला समय ही बताएगा क्योंकि वर्तमान में उत्तर प्रदेश की सभी कार्यकारिणी भंग है कि एक बार फिर से चापलूसी प्राथमिकता मिलेगी या कर्मठ कार्यकर्ताओं को लेकिन यह बात सोलह आने सच है कि यदि इस बार भी कार्यकर्ताओं की अनदेखी की गई तो इसका असर निश्चित रूप से किसान आंदोलन पर दिखाई देगा!!
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