सग़ीर ए ख़ाकसार
दूरदर्शन पर पौराणिक और धार्मिक आस्थागत महत्व के धारवाहिक रामायण और ,महाभारत ,का प्रसारण दूरदर्शन पर फिर से शुरू हो गया है ।रामायण और महाभारत को देश के सबसे पुराने पुराणों में शुमार किया जाता है।करीब तीन दशक पहले रामायण रामानन्द सागर लेकर आये थे ,और महाभारत बी आर चोपड़ा ने बनाया था।अपने समय के बेहद लोकप्रिय धारावाहिकों के प्रसारण ने बीते दिनों की याद एक बार फिर से ताज़ा कर दी है।दोनों धारावाहिकों से जुड़े किरदार एक बार फिर से जिंदा हो गए हैं ,और उनसे जुड़े किस्से एक बार फिर सुर्खियों में हैं।आइये, आप को हम ले चलते हैं फ्लैशबैक में करीब तीन दशक पूर्व।रामायण और महाभारत के पुनः प्रसारण से उस वक़्त प्रसारित होने वाले सभी धारावाहिकों की याद आना स्वाभाविक है।रामायण और महाभारत उस वक्त खासे लोक प्रिय थे।यह वह दौर था जब हर घर में टीवी सेट नहीं होते थे।श्याम श्वेत टीवी सेट का दौर था।इक्का दुक्का रंगीन टेलेविज़न दिखते थे।उस वक़्त पूरे मोहल्ले के लोग किसी एक घर मे एकत्र होकर कार्यकमों का देखने का आनंद उठाते थे।
उस दौर में रामायण और महाभारत जैसे धारावाहिकों का जादू लोगों के सिर चढ़कर बोलता था।हालत यह थी कि इन कार्यक्रमों के प्रसारण के समय करीब 1987 -1988 में तो सड़कों पर सन्नाटा पसर जाता था ।सड़के ऐसे सूनसान होजाती थीं जैसे आज कोरोना के समय में लॉक डाउन की वजह से हो जाती हैं।महाभारत का थीम सांग "अथ महाभारत" का ट्यून आज भी मन मे रचा बसा है।मैं समय हूँ जैसे संवाद कभी न भूलने वाले संवाद थे ।दिलचस्प बात यह है कि महाभारत जैसे कालजयी सीरियल की पटकथा डॉ राही मासूम रज़ा ने लिखी थी।पटकथा के संदर्भ में कहा जाता है कि डॉo राही मासूम रज़ा को फ़िल्म निर्माता व निर्देशक बी०आर० चोपड़ा ने "महाभारत" टी०वी० सीरियल का संवाद जब लिखने को कहा तो ,राही मासूम रज़ा ने समय की किल्लत होने का बहाना बनाकर मना कर दिया।हालांकि बीआर चोपड़ा यह ऐलान एक प्रेस कांफ्रेंस में पहले ही करचुके थे कि महाभारत का संवाद राही मासूम रज़ा लिखेंगें।यह बात तत्कालीन स्वयम्भू हिन्दू संरक्षकों को यह बात बहुत नागवार गुजरी।
बड़ी तादाद में बीआर चोपड़ा को खत लिखकर इस बात का विरोध किया कि कैसे कोई मुसलमान महाभारत जैसे धार्मिक धारावाहिक का संवाद लिख सकता है? क्या सभी हिन्दू मर गए हैं?बड़ी संख्या में लोगों ने खत लिख कर राही मासूम रज़ा से पटकथा लिखवाने का विरोध किया।चोपड़ा ने सारे खत राही मासूम रज़ा के पास भेजवा दिया।जब गंगा यमुनी तहज़ीब के सशक्त पैरोकार राही मासूम रज़ा को यह सब पता चला तो उन्हें बहुत दुख हुआ।उन्होंने 1990 में एक पत्रिका को दिए साक्षात्कार में कहा कि मैं यह सब देख कर बहुत दुखी हूँ।क्या मैं भारतीय नहीं हूं ?मैं महाभारत का संवाद क्यों नही लिख सकता?मैं गंगा किनारे रहने वाला गंगा का पुत्र हूँ।मुझ से ज़्यादा भारतीय संस्कृति, परम्परा की समंझ भला और किसे होगी।मैं ही लिखूंगा संवाद!इस तरह वो महाभारत की पटकथा लिखने को तैयार हो गए।राही मासूम रज़ा ने जब "महाभारत" की पटकथा लिखी तो उनके घर में फिर ख़तों के अंबार लग गए। लोगों ने डॉ० राही मासूम रज़ा की जमकर तारीफ की एवं उन्हें ख़ूब दुआओं से नवाजा।खतों के कई गट्ठर बन गए , लेक़िन एक बहुत छोटा सा गट्ठर उनकी मेज़ के किनारे सब ख़तों से अलग पड़ा था।ये वो खत थे जो बीआर चोपड़ा को लिखे गए था उसे उन्होंने रही मासूम राजा के पास भेजवा दिया
था।जिसमें रही मासूम राजा से संवाद न लिखवाने के विरोध में लिखे गए थे।उनकी मेज़ के किनारे अलग से पड़ी हुई ख़तों की सबसे छोटी गट्ठर के बारे में वज़ह पूछने पर राही मासूम रज़ा साहब ने ज़वाब दिया था कि ये वह ख़त हैं जिनमें मुझे गालियाँ लिखी गयी हैं।कुछ हिंदू इस बात से नाराज़ हैं कि तूम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुसलमान होकर "महाभारत" की पटकथा लिखने की ?कुछ मुसलमान नाराज़ हैं कि तुमने हिंदुओं की क़िताब को क्यूँ लिखा ?राही साहब ने कहा कि ख़तों की यही सबसे छोटी गट्ठर दरअसल मुझे हौसला देती है कि मुल्क में बुरे लोग कितने कम हैं।याद रखने की बात ये है कि
आज़ भी नफ़रत फ़ैलाने वालों की "छोटी गट्ठर" हमारे प्यार -मोहब्बत के "बड़े गट्ठर" से बहुत छोटी है। महाभारत का संवाद लिखने के बाद तो उन्हें आधुनिक भारत का वेदव्यास कहा जाने लगा।
महाभारत का चर्चित संवाद"मैं समय हूँ....का याद आना भी स्वाभविक सी बात है।महाभारत से जुड़ा एक और किस्सा हाल ही में धर्मराज युधिष्ठिर की भूमिका निभाने वाले गजेंद्र चौहान ने साझा किया है।एक अखबार को दिए साक्षात्कार में चौहान ने बताया कि जयपुर में अभिमन्यू के चक्रव्यूह का एक सीन शूट करना था।हम
सभी सुबह से ही तैयार थे।शूटिंग में पास के गांव वालों को भी सैनिक की भूमिका निभानी थी करीब पांच हज़ार लोगों को शूटिंग में हिस्सा लेना था।आधे दिन से ज़्यादा का समय निकल गया।गांव वाले दोपहर बाद आये।इसपर बीआर चोपड़ा बहुत नाराज हुए।देर से आने का जब कारण पूंछ तो गांव वालों ने कहा कि आज तो रविवार है आज हम लोग कैसे आ सकते थे आज तो महभारत आता है हम लोग वही देखने में व्यस्त थे।
नब्बे के दशक में रामानन्द सागर का रामायण भी बहुत लोक प्रिय हुआ था।महाभारत से ज़्यादा चर्चा रामायण की होती थी।आपको जानकर यह ताज्जुब होगा कि रामायण का प्रसारण उस वक्त ब्रिटेन में बीबीसी पर भी किया गया था ।ब्रिटेन में भी रामायण ने सफलता के नए कीर्तिमान स्थापित किये ।बताया जाता है कि ब्रिटेन में रामायण के दर्शोकों कि संख्या का आंकड़ा 50 लाख के पार चला गया था।यही नही दोपहर में प्रसारित होने वाले किसी भो धारवाहिक की यह सबसे बड़ी दर्शक संख्या थी।नब्बे के दशक के सभी धारावाहिक बेजोड़ थे।विक्रम बेताल (1985,)महाकवि सोमदेव की लिखित बेताल पचीसी पर आधारित कहानियां काफी ज्ञान वर्धक और रोमांच पैदा करने वाली थी।"चंद्रकांता" धारवाहिक (1994) में जब नौगढ़ और विजय गढ़ का नाम आता था तब हम नौगढ़ को अपना गृह जनपद सिद्धार्थ नगर जिसका नाम नौगढ़ भो था ,समंझ लेते थे।देवकीनन्दन खत्री के उपन्यास पर आधारित यह धारवाहिक तब खूब पसंद किया गया।"चंद्रकांता की कहानी ये माना है कि
पुरानी, ये पुरानी होकर भी लगती बड़ी है सुहानी"की धुन आज भी कानो में गूंजती है।इस धारवाहिक में कुरुर सिंह का किरदार बहुत ही ज़ोरदार था।इसी तरह "द स्वोर्ड ऑफ टीपू सुल्तान"को भला कैसे भुला जासकता है।अंग्रेज़ी हुकूमत को मात देने वाले शेर ए मैसूर टीपू सुलतान की याद आज भी दिलो दिमाग मे तरो ताज़ा है।टीपू सुल्तान ने कहा था कि "गीदड़ की सौ साल की ज़िंदगी से अच्छा है शेर की एक दिन की ज़िंदगी"।इसके अलावा बच्चो का पहला सुपरमैन "शक्तिमान","हम लोग" "माल गुड़ी डेज" और अप्पू और पप्पू भी खूब पसंद किया गया।जंगल बुक का वह संगीत "जंगल जंगल बात चली है पता चला है,चड्ढी पहन कर फूल खिला है आज भी प्यारा
लगता है और बचपन की याद दिलाता है।इन सब धारावाहिको के बीच डॉ चंद्र प्रकाश दिवेदी के" चाणक्य "की चर्चा न हो तो बात अधूरी रहेगी।डॉ चंद्र प्रकाश द्विवेदी दुआरा निर्मित धारवाहिक चाणक्य का प्रसारण 1991 में शुरी हुआ था ।भारतीय राजनीति और अर्थ नीति के महापंडित चाणक्य की जीवनी को पहली बार टीवी पर लेकर आये थे डॉ चंद्र प्रकाश द्विवेदी ।वो निर्माता भी थे लेखक भी और अभिनेता भी।उन्होंने ने चाणक्य में बहुत ज़ोरदार अभिनय किया था ।डॉ चंद्र प्रकाश की संवाद डिलेवरी काबिले तारीफ थी जिसमें गहरा आक्रोश छुपा होता था और वेदना तो होती ही थी।डॉ द्विवेदी ने उस वक्त जिन नवोदित कलाकरों को पहली बार एक्शन बोला था आज वो वॉलीवुड में अपनी अभिनय और काबलियत के बल पर ऊंचे मुकाम पर है उनमें प्रमुख हैं इरफान खान,दीप राज राणा व संजय मिश्रा आदि इसके अलावा उस दौर में शाहरुह खान का सर्कस,बुनियाद,आदि धारावाहिक तो थे ही।तुम्हें याद हो,के न याद हो।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)
दूरदर्शन पर पौराणिक और धार्मिक आस्थागत महत्व के धारवाहिक रामायण और ,महाभारत ,का प्रसारण दूरदर्शन पर फिर से शुरू हो गया है ।रामायण और महाभारत को देश के सबसे पुराने पुराणों में शुमार किया जाता है।करीब तीन दशक पहले रामायण रामानन्द सागर लेकर आये थे ,और महाभारत बी आर चोपड़ा ने बनाया था।अपने समय के बेहद लोकप्रिय धारावाहिकों के प्रसारण ने बीते दिनों की याद एक बार फिर से ताज़ा कर दी है।दोनों धारावाहिकों से जुड़े किरदार एक बार फिर से जिंदा हो गए हैं ,और उनसे जुड़े किस्से एक बार फिर सुर्खियों में हैं।आइये, आप को हम ले चलते हैं फ्लैशबैक में करीब तीन दशक पूर्व।रामायण और महाभारत के पुनः प्रसारण से उस वक़्त प्रसारित होने वाले सभी धारावाहिकों की याद आना स्वाभाविक है।रामायण और महाभारत उस वक्त खासे लोक प्रिय थे।यह वह दौर था जब हर घर में टीवी सेट नहीं होते थे।श्याम श्वेत टीवी सेट का दौर था।इक्का दुक्का रंगीन टेलेविज़न दिखते थे।उस वक़्त पूरे मोहल्ले के लोग किसी एक घर मे एकत्र होकर कार्यकमों का देखने का आनंद उठाते थे।
उस दौर में रामायण और महाभारत जैसे धारावाहिकों का जादू लोगों के सिर चढ़कर बोलता था।हालत यह थी कि इन कार्यक्रमों के प्रसारण के समय करीब 1987 -1988 में तो सड़कों पर सन्नाटा पसर जाता था ।सड़के ऐसे सूनसान होजाती थीं जैसे आज कोरोना के समय में लॉक डाउन की वजह से हो जाती हैं।महाभारत का थीम सांग "अथ महाभारत" का ट्यून आज भी मन मे रचा बसा है।मैं समय हूँ जैसे संवाद कभी न भूलने वाले संवाद थे ।दिलचस्प बात यह है कि महाभारत जैसे कालजयी सीरियल की पटकथा डॉ राही मासूम रज़ा ने लिखी थी।पटकथा के संदर्भ में कहा जाता है कि डॉo राही मासूम रज़ा को फ़िल्म निर्माता व निर्देशक बी०आर० चोपड़ा ने "महाभारत" टी०वी० सीरियल का संवाद जब लिखने को कहा तो ,राही मासूम रज़ा ने समय की किल्लत होने का बहाना बनाकर मना कर दिया।हालांकि बीआर चोपड़ा यह ऐलान एक प्रेस कांफ्रेंस में पहले ही करचुके थे कि महाभारत का संवाद राही मासूम रज़ा लिखेंगें।यह बात तत्कालीन स्वयम्भू हिन्दू संरक्षकों को यह बात बहुत नागवार गुजरी।
बड़ी तादाद में बीआर चोपड़ा को खत लिखकर इस बात का विरोध किया कि कैसे कोई मुसलमान महाभारत जैसे धार्मिक धारावाहिक का संवाद लिख सकता है? क्या सभी हिन्दू मर गए हैं?बड़ी संख्या में लोगों ने खत लिख कर राही मासूम रज़ा से पटकथा लिखवाने का विरोध किया।चोपड़ा ने सारे खत राही मासूम रज़ा के पास भेजवा दिया।जब गंगा यमुनी तहज़ीब के सशक्त पैरोकार राही मासूम रज़ा को यह सब पता चला तो उन्हें बहुत दुख हुआ।उन्होंने 1990 में एक पत्रिका को दिए साक्षात्कार में कहा कि मैं यह सब देख कर बहुत दुखी हूँ।क्या मैं भारतीय नहीं हूं ?मैं महाभारत का संवाद क्यों नही लिख सकता?मैं गंगा किनारे रहने वाला गंगा का पुत्र हूँ।मुझ से ज़्यादा भारतीय संस्कृति, परम्परा की समंझ भला और किसे होगी।मैं ही लिखूंगा संवाद!इस तरह वो महाभारत की पटकथा लिखने को तैयार हो गए।राही मासूम रज़ा ने जब "महाभारत" की पटकथा लिखी तो उनके घर में फिर ख़तों के अंबार लग गए। लोगों ने डॉ० राही मासूम रज़ा की जमकर तारीफ की एवं उन्हें ख़ूब दुआओं से नवाजा।खतों के कई गट्ठर बन गए , लेक़िन एक बहुत छोटा सा गट्ठर उनकी मेज़ के किनारे सब ख़तों से अलग पड़ा था।ये वो खत थे जो बीआर चोपड़ा को लिखे गए था उसे उन्होंने रही मासूम राजा के पास भेजवा दिया
था।जिसमें रही मासूम राजा से संवाद न लिखवाने के विरोध में लिखे गए थे।उनकी मेज़ के किनारे अलग से पड़ी हुई ख़तों की सबसे छोटी गट्ठर के बारे में वज़ह पूछने पर राही मासूम रज़ा साहब ने ज़वाब दिया था कि ये वह ख़त हैं जिनमें मुझे गालियाँ लिखी गयी हैं।कुछ हिंदू इस बात से नाराज़ हैं कि तूम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुसलमान होकर "महाभारत" की पटकथा लिखने की ?कुछ मुसलमान नाराज़ हैं कि तुमने हिंदुओं की क़िताब को क्यूँ लिखा ?राही साहब ने कहा कि ख़तों की यही सबसे छोटी गट्ठर दरअसल मुझे हौसला देती है कि मुल्क में बुरे लोग कितने कम हैं।याद रखने की बात ये है कि
आज़ भी नफ़रत फ़ैलाने वालों की "छोटी गट्ठर" हमारे प्यार -मोहब्बत के "बड़े गट्ठर" से बहुत छोटी है। महाभारत का संवाद लिखने के बाद तो उन्हें आधुनिक भारत का वेदव्यास कहा जाने लगा।
महाभारत का चर्चित संवाद"मैं समय हूँ....का याद आना भी स्वाभविक सी बात है।महाभारत से जुड़ा एक और किस्सा हाल ही में धर्मराज युधिष्ठिर की भूमिका निभाने वाले गजेंद्र चौहान ने साझा किया है।एक अखबार को दिए साक्षात्कार में चौहान ने बताया कि जयपुर में अभिमन्यू के चक्रव्यूह का एक सीन शूट करना था।हम
सभी सुबह से ही तैयार थे।शूटिंग में पास के गांव वालों को भी सैनिक की भूमिका निभानी थी करीब पांच हज़ार लोगों को शूटिंग में हिस्सा लेना था।आधे दिन से ज़्यादा का समय निकल गया।गांव वाले दोपहर बाद आये।इसपर बीआर चोपड़ा बहुत नाराज हुए।देर से आने का जब कारण पूंछ तो गांव वालों ने कहा कि आज तो रविवार है आज हम लोग कैसे आ सकते थे आज तो महभारत आता है हम लोग वही देखने में व्यस्त थे।
नब्बे के दशक में रामानन्द सागर का रामायण भी बहुत लोक प्रिय हुआ था।महाभारत से ज़्यादा चर्चा रामायण की होती थी।आपको जानकर यह ताज्जुब होगा कि रामायण का प्रसारण उस वक्त ब्रिटेन में बीबीसी पर भी किया गया था ।ब्रिटेन में भी रामायण ने सफलता के नए कीर्तिमान स्थापित किये ।बताया जाता है कि ब्रिटेन में रामायण के दर्शोकों कि संख्या का आंकड़ा 50 लाख के पार चला गया था।यही नही दोपहर में प्रसारित होने वाले किसी भो धारवाहिक की यह सबसे बड़ी दर्शक संख्या थी।नब्बे के दशक के सभी धारावाहिक बेजोड़ थे।विक्रम बेताल (1985,)महाकवि सोमदेव की लिखित बेताल पचीसी पर आधारित कहानियां काफी ज्ञान वर्धक और रोमांच पैदा करने वाली थी।"चंद्रकांता" धारवाहिक (1994) में जब नौगढ़ और विजय गढ़ का नाम आता था तब हम नौगढ़ को अपना गृह जनपद सिद्धार्थ नगर जिसका नाम नौगढ़ भो था ,समंझ लेते थे।देवकीनन्दन खत्री के उपन्यास पर आधारित यह धारवाहिक तब खूब पसंद किया गया।"चंद्रकांता की कहानी ये माना है कि
पुरानी, ये पुरानी होकर भी लगती बड़ी है सुहानी"की धुन आज भी कानो में गूंजती है।इस धारवाहिक में कुरुर सिंह का किरदार बहुत ही ज़ोरदार था।इसी तरह "द स्वोर्ड ऑफ टीपू सुल्तान"को भला कैसे भुला जासकता है।अंग्रेज़ी हुकूमत को मात देने वाले शेर ए मैसूर टीपू सुलतान की याद आज भी दिलो दिमाग मे तरो ताज़ा है।टीपू सुल्तान ने कहा था कि "गीदड़ की सौ साल की ज़िंदगी से अच्छा है शेर की एक दिन की ज़िंदगी"।इसके अलावा बच्चो का पहला सुपरमैन "शक्तिमान","हम लोग" "माल गुड़ी डेज" और अप्पू और पप्पू भी खूब पसंद किया गया।जंगल बुक का वह संगीत "जंगल जंगल बात चली है पता चला है,चड्ढी पहन कर फूल खिला है आज भी प्यारा
लगता है और बचपन की याद दिलाता है।इन सब धारावाहिको के बीच डॉ चंद्र प्रकाश दिवेदी के" चाणक्य "की चर्चा न हो तो बात अधूरी रहेगी।डॉ चंद्र प्रकाश द्विवेदी दुआरा निर्मित धारवाहिक चाणक्य का प्रसारण 1991 में शुरी हुआ था ।भारतीय राजनीति और अर्थ नीति के महापंडित चाणक्य की जीवनी को पहली बार टीवी पर लेकर आये थे डॉ चंद्र प्रकाश द्विवेदी ।वो निर्माता भी थे लेखक भी और अभिनेता भी।उन्होंने ने चाणक्य में बहुत ज़ोरदार अभिनय किया था ।डॉ चंद्र प्रकाश की संवाद डिलेवरी काबिले तारीफ थी जिसमें गहरा आक्रोश छुपा होता था और वेदना तो होती ही थी।डॉ द्विवेदी ने उस वक्त जिन नवोदित कलाकरों को पहली बार एक्शन बोला था आज वो वॉलीवुड में अपनी अभिनय और काबलियत के बल पर ऊंचे मुकाम पर है उनमें प्रमुख हैं इरफान खान,दीप राज राणा व संजय मिश्रा आदि इसके अलावा उस दौर में शाहरुह खान का सर्कस,बुनियाद,आदि धारावाहिक तो थे ही।तुम्हें याद हो,के न याद हो।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)
No comments:
Post a Comment