CABill ओर NRC क्या है समझ लें, बहुत से मेहरबान इसको समझाने की कोशिश कर रहे हैं

*अब्दुल बासित मलक*

CABill ओर NRC क्या है समझ लें, बहुत से मेहरबान इसको समझाने की कोशिश कर रहे हैं

लेकिन उनके समझाने से तो मेरी समझ में भी कुछ नहीं आया, लेकिन जबआज थोड़ा ग़ौर देकर इस कानून के बारे में सोचना शुरू किया तब जो समझ में आया वो आपके सामने है...!


NRC को सुप्रीम कोर्ट ने असम के छात्रों की मांग पर असम में लागू कर ऐसे लोगों की पहचान करने को कहा जो पड़ौसी मुल्कों से भारत में आये हैं ओर यहां असमी लोगों के रोज़गार या कारोबार पर असर डाल रहे हैं, सरकार ने उस काम को करने का बीड़ा उठाते हुए जब पूरा किया तब जो रिकार्ड सामने आया वो कुछ इस तरहां है...?


असम लिस्ट में 19,06,657 का नाम शामिल नहीं हैं, आख़िरी लिस्ट में कुल 3,11,21,004 लोगों को शामिल किया गया है, असम में नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटिजेंस "एनआरसी" को सबसे पहले 1951 में बनाया गया था ताकि ये तय किया जा सके कि कौन इस राज्य में पैदा हुआ और भारतीय है और कौन पड़ोसी मुस्लिम बाहुल बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान से आया हुआ हो सकता है, 30 जुलाई 2018 को सरकार ने एक फ़ाइनल ड्राफ़्ट प्रकाशित किया था जिसमें तकरीबन 41 लाख लोगों का नाम नहीं थे, जो असम में रह रहे हैं, इसमें बंगाली लोग जिनमें बड़ी संख्या में हिंदू और कम संख्या में मुस्लिम दोनों शामिल थे, 31 अगस्त को जारी अंतिम ड्राफ्ट सूची से 19 लाख लोग बाहर हो गए.


अब ये देख केंद्र की भाजपा सरकार को लगा कि ये तो बाबरी मस्जिद के बाद एक नया मुद्दा हमारी वोट को बढ़ाने के साथ असल मुद्दों से ध्यान हटाने वाला बड़ा मुद्दा बन सकता है, तब जल्दबाज़ी में एनआरसी से हिंदूओं को बचाने के लिए जल्दबाज़ी में सीएबी लाया गया, जो हिंदूओं को तो बिन दस्तावेज़ के नागरिकता देगा मगर मुस्लिमों को ख़ुद हर हाल में साबित करनी ही होगी, यही वो शब्द हैं जिसपर देश में आग लगी और लगना भी थी.


अब आते हैं सरकार के क़दम पर कितना सही कितना ग़लत है ये क़दम अपनी सियासत के लिए देश में आप आग नहीं लगा सकते वो भी तब जब देश में मुस्लिमों से ज़्यादा हिदूं परेशान हो, सरकार की सारी ग़लत नीतियों का नुकसान मुस्लिमों से ज़्यादा हिंदूओं को हुआ है, चाहे वो नोटबंदी से हो, चाहे जीएसटी से हो या फिर महंगाई की मार हो हमसे ज़्यादा लोग बहुसंख्यक ही परेशान हैं.


अब सरकार अगर सीएबी को देश में लाती है तब सबसे बड़ा मुद्दा उनको बसाने के साथ रोज़गार देना होगा, सरकार कह रही है हम हर उस हिंदू को अपने देश की नागरिकता देंगे जो तीनों पड़ोसी मुल्कों में धर्म के आधार पर पीड़ित हैं, बिल्कुल सही क़दम इंसानियत यही कहती है बेशक भाजपा सरकार की निगाह में वो सिर्फ़ हिंदूओं के लिए ही क्यूं ना हो में समर्थन करता हुँ आप इंसानियत पैदा करो बेशक थोड़ी ही हो, मगर इंसानियत का नाटक मत करो, आपकी  पिछले पांच साल की कार गुज़ारी से साबित हो रहा है कि आप सिर्फ़ नाटक और राजनीति कर रहे हो कैसे जानते हैं इसे...?


सरकार में इस बिल को लागू करने वाले नेताओं से मेरा सवाल कि जब आप तीनों पड़ोसी देशों के हिंदुओं को यहां लाकर नागरिकता दोगे तब उनको रहने को घर, काम के लिए रोज़गार व अन्य सुविधाएं भी दोगे, मान लो तीनों मुल्क से सारे ही लोग भारत में आने लगे जिनकी संख्या करीब चार से पांच करोड़ है और इतने ही लगभग भारत में पहले से रह रहे होंगे, तब तुम नो या दस करोड़ लोगों को रोज़गार कहां और कैसे दोगे ये पहला सवाल, दूसरा इतनी बड़ी संख्या को कहां किस राज्य के हवाले करोगे, तीसरा उनकी जिम्मेदारी सुरक्षा की किसकी होंगी या फिर ये कैसे साबित करोगे जो बाहर से आये वो सब देश के वफ़ादार ही होंगे...?


सबसे अलग जिस लिए मैने इस सीएबी और एनआरसी को काला कानून कहा है वो ये कि क्या भारत के सारे (सारों से मुराद है हिंदूओं को) बेरोज़गारों को आप रोज़गार दे चुके हैं, क्या भारत में हर नागरिक को समय पर खाना मिलता है, क्या भारत का हर नागरिक बेशक हिंदू ही सही क्या वो रात को सुकून से सो पाता है, आपका जवाब भी वही होगा जो विरोध करने वालों का है यानि नहीं...!


तब में आपके इस क़दम को ढोंग के सिवा कुछ नहीं कहूंगा, आपसे कहूंगा कि अपनों को छल ना बंद करो, सबका साथ सबका विकास तो एक फ़रेबी जुमला है पहले अपनों के साथ ही रहम कर लो, अपनों को ही रोज़गार घर ओर चैन सुकून से रहने दो, आपकी नोटबंदी में आपके अपने ज़्यादा लगे थे, हमारे पास तो इतना है ही नहीं जो लाइन लगाते और जिसपर है उसने जेब से रकम ख़र्च कर अपना काम बैठे बिठाये करा लिया.


एक कड़वा सच बताऊं आपकी सोच किसी को रोज़गार या घर देने की नहीं बल्कि लोगों को परेशान कर अपनी कमीशन रूपी कमाई करने की ज़्यादा है, क्यूंकि असम के 3.3 करोड़ लोगों के लिए एनआरसी पर ही 1288 करोड़ से अधिक का खर्च हुआ दिखाया गया है वो भी तब जब ना कोई नया विभाग और ना ही कोई नई भर्तियां आपने की हैं, अब पूरे देश में 1 अरब 40 करोड़ पर कितना खर्च होगा ये आप जानते हैं, कड़वा सच ये है कि ये सब कागज़ी आंकड़ों के साथ देश के ख़ज़ाने को ख़ाली करने के साथ अपनों को ही लूटने के सिवा कुछ नहीं...


इसलिए दो टूक ये काला कानून ठगी है अपनों ही के साथ, इसके सिवा कुछ नहीं...!

जय हिंद जय भारत

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