कहते हैं कानून अंधा होता है, मगर हम कहते हैं मुस्लिमों के लिए ज़रूर...?



"अधिवक्ता अब्दुल बासित मलक"

देश के सबसे बड़े प्रदेश के मुखिया सीएम योगी आदित्यनाथ जी ने सीएए और एनआरसी के विरोध प्रदर्शन पर कड़े शब्दों
में कहा कि सार्वजनिक और सरकारी संपत्ति का नुकसान करने वाले दंगाइयों की संपत्ति जब्त की जाएगी, हम उनसे संपत्ति के नुकसान का बदला लेंगे और उनसे नुकसान हुई संपत्ति की कीमत वसूल करेंगे, दंगाइयो से निपटने के लिए योगी सरकार ने कड़ी कार्रवाई की बात कही है, सवाल है कि अक्सर विरोध प्रदर्शनों में सार्वजनिक और सरकारी संपत्ति का नुकसान होता है, क्या सरकार नुकसान की भरपाई के लिए उपद्रव करने वालों से इसकी कीमत वसूल कर सकती है, क्या कानून हिंदू मुस्लिम में भेद करता है, कुछ उदाहरणों के साथ इस बारे में कानून क्या कहता है यही जानते हैं...?


क्या दंगाइयों से वसूली जा सकती है नुकसान की कीमत...?

इस बारे में सार्वजनिक संपत्ति नुकसान रोकथाम अधिनियम 1984 है, इसके प्रावधानों के मुताबिक अगर कोई व्यक्ति सरकारी या सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने का दोषी साबित होता है तो उसे 5 साल की सजा हो सकती है, इसमें जुर्माने का भी प्रावधान है, ऐसे मामलों में दोषी पाए जाने पर सजा और जुर्माना दोनों हो सकता है.


कानून के मुताबिक सार्वजनिक और सरकारी संपत्ति का नुकसान पहुंचाने के दोषी को तब तक जमानत नहीं मिल सकती, जब तक कि वो नुकसान की 100 फीसदी भरपाई नहीं कर देता है.


सार्वजनिक संपत्ति नुकसान रोकथाम अधिनियम 1984 केंद्रीय कानून है. इसके अलावा अलग-अलग राज्यों ने इस बारे में अपने-अपने कानून बना रखे हैं. केंद्रीय कानून के अलावा राज्यों के कानून के मुताबिक ऐसे मामलों में दोषियों को सजा सुनाई जाती है.


ऐसे मामलों में दोषी को तब तक जमानत नहीं मिलने का प्रावधान है, जब तक कि वो नुकसान हुई संपत्ति का 100 फीसदी भरपाई नहीं कर देता. जबकि केंद्रीय कानून में ये प्रावधान है कि जमानत के लिए कम से कम नुकसान हुई संपत्ति का 50 फीसदी की भरपाई करनी होगी.


इस बारे में इंडियन पीनल कोड के सेक्शन 425 में प्रावधान है. सार्वजनिक और सरकारी संपत्ति के नुकसान पर सेक्शन 425 में विस्तार से बताया गया है.


वहीं सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने भी गाइडलाइंस जारी की है, 2007 में सार्वजनिक संपत्ति के भीषण नुकसान की खबरों पर सुप्रीम कोर्ट ने ख़ुद ही संज्ञान लिया था, उस वक्त हिंसक विरोध प्रदर्शन, बंद और हड़ताल में सरकारी संपत्ति का भी खूब नुकसान हुआ था.


तब सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून में बदलाव के लिए दो कमेटी बनाई थी, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज केटी थॉमस और सीनियर वकील फली नरीमन को कमेटियों का प्रमुख बनाया गया था, 2009 में इन दोनों कमेटियों की सलाह पर सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी और सार्वजनिक संपत्ति को लेकर कुछ गाइडलाइंस भी जारी किए थे.


गाइडलाइंस में सुप्रीम कोर्ट ने सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान होने की स्थिति में सारी जिम्मेदारी नुकसान के आरोपी पर डाली है, गाइडलाइंस के मुताबिक अगर सार्वजनिक संपत्ति का नुकसान होता है तो कोर्ट ये मानकर चलती है कि नुकसान का आरोपी इसका जिम्मेदार है, तब आरोपी को खुद को निर्दोष साबित करना होता है, निर्दोष साबित होने तक कोर्ट उसे जिम्मेदार मानकर चलती है, नरीमन कमेटी ने कहा था कि ऐसे मामलों में दंगाइयों से सार्वजिनक संपत्ति के नुकसान की वसूली की जाए.


हालांकि विरोध प्रदर्शनों में सरकारी संपत्ति को हुए नुकसान को वसूल पाना बहुत ही मुश्किल होता है, जैसे 2015 में गुजरात में हुए पाटीदार आंदोलन में सार्वजनिक संपत्ति का बहुत नुकसान हुआ, हार्टिक पटेल को सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान का आरोपी बनाया गया था, लेकिन पटेल के वकील ने सुप्रीम कोर्ट में जिरह के दौरान बताया कि ऐसा कोई सबूत नहीं है, जिससे पता चले कि हार्दिक पटेल के कहने पर हिंसा फैली, तब हार्दिक पटेल से कोई वसूली नहीं हुई.


ऐसे ही 2007 मैं गुर्जर नेताओं द्वारा अपने समुदाय को एसटी का दर्जा देने की मांग करने के बाद, कई राज्यों में हिंसा भड़क गयी थी जिसके बाद इस कानून में बदलाव का सुझाव देने के लिए सर्वोच्च न्यायालय ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश के. टी. थॉमस और वरिष्ठ वकील फली नरीमन के नेतृत्व में 2 समितियों का गठन भी किया था।


ताज़ा मामलों मैं जामिया मिलिया इस्लामिया और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में छात्रों पर कथित पुलिस ज्यादती की याचिकाओं पर सुनवाई के लिए सहमत होते हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एस. ए. बोबडे की अध्यक्षता वाली सर्वोच्च न्यायालय की बेंच ने दंगों और सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट करने पर नाराजगी व्यक्त की थी.


उन्होंने कहा था, हम जानते हैं कि दंगे कैसे होते हैं, इसे पहले बंद कर दें, हमारे लिए सिर्फ यह तय नहीं कर सकते क्योंकि पथराव किया जा रहा है, हमने काफी दंगे देखे हैं, यह तब तय करना होगा जब चीजें शांत हों, हम कुछ भी तय कर सकते हैं, दंगे रुकने दो, सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट किया जा रहा है, कोर्ट अभी कुछ नहीं कर सकता है, दंगों को रोकें, अगर विरोध प्रदर्शन ऐसे ही चले और सार्वजनिक संपत्तियों को नष्ट किया गया तो हम कुछ नहीं करेंगे.


ऐसे ही बुलंदशहर स्याना हिंसा, जहां प्रभारी निरीक्षक सुबोध कुमार सिंह को गोली मार दी गई थी और उनकी लाइसेंसी पिस्तौल, तीन मोबाइल फ़ोन छीनकर ले गए, इसके बाद वो लगातार फ़ायरिंग करते रहे और वायरलेस सेट तोड़ दिए, साथ ही चौकी की निजी-सरकारी संपत्ति को भी नुकसान पहुंचाया गया, मगर हुआ क्या...?


ख़बरों के मुताबिक बुलंदशहर हिंसा के आरोपी जीतू फौजी, शिखर अग्रवाल, हेमू, उपेंद्र सिंह राघव, सौरव और रोहित राघव शनिवार को कोर्ट से जमानत लेकर जैसे ही जेल से बाहर आए, हिन्दूवादी संगठन से जुड़े लोगों ने फूल माला पहनाकर उनका स्वागत किया, इस दौरान भारत माता की जय, वन्दे मातरम और जय श्री राम के नारे लगाए गए.


जबकि इस घटना की जांच एस आई टी यानि स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम कर रही थी, मार्च 2019 में यूपी पुलिस ने चार्जशीट दाखिल किया, इसमें 38 लोगों को आरोपी बनाया गया, 38 लोगों में से 5 लोगों को इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की हत्या का आरोपी भी बनाया गया था.


तब यूपी कांग्रेस के प्रवक्ता द्विजेंद्र त्रिपाठी ने कहा है कि बुलंदशहर केस में हम सभी जानते हैं कि कैसे बीजेपी ने आरोपियों को बचाने की कोशिश की थी और अब सत्ताधारी पार्टी के समर्थक आरोपियों का स्वागत कर रहे हैं, उन्होंने कहा कि योगी आदित्यनाथ सरकार को ये साफ करना चाहिए कि उनकी पार्टी हमेशा उनका साथ क्यों देती है जो कानून हाथ में लेते हैं...?


तब कांग्रेस के आरोपों पर बीजेपी ने कहा, कि कानून हाथ में लेने वालों को बीजेपी कभी शह नहीं देती, बीजेपी प्रवक्ता मनोज मिश्रा ने कहा, हम लोग अपराधियों का कभी साथ नहीं देते हैं, आरोपियों का स्वागत करने वाले पार्टी के कार्यकर्ता नहीं हैं, हम नहीं जानते हैं कि किन हालात में जेल के बाहर इनका स्वागत किया गया था, लेकिन बीजेपी से इनका कोई लेना-देना नहीं है.


जबकि इनपर प्राथमिकी भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 147, 148, 149, 124-ए, 332, 333, 353, 341, 336, 307, 302, 427, 436, 395 और आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम 1932 की धारा 7, सार्वजनिक संपत्ति नुकसान निवारण अधिनियम, 1984 की धारा 3 और 4 के तहत मामला दर्ज किया गया था.


अब बात दो दशक पहले की, गोरखपुर शहर के मुख्य बाज़ार गोलघर में गोरखनाथ मंदिर से संचालित इंटर कॉलेज में पढ़ने वाले कुछ छात्र एक दुकान पर कपड़ा ख़रीदने आए और उनका दुकानदार से विवाद हो गया, जब दुकानदार पर हमला हुआ, तो उसने अपनी रिवॉल्वर निकाल ली, दो दिन बाद दुकानदार के ख़िलाफ़ कार्रवाई की मांग को लेकर एक युवा की अगुवाई में छात्रों ने उग्र प्रदर्शन किया और वे एसएसपी आवास की दीवार तक पर भी चढ़ गए.


यह युवा थे योगी आदित्यनाथ, जो आज यूपी के मुखिया हैं, जिन्होंने कुछ समय पहले ही 15 फरवरी 1994 को नाथ संप्रदाय के सबसे प्रमुख मठ गोरखनाथ मंदिर के उत्तराधिकारी के रूप में अपने गुरु महंत अवैद्यनाथ से दीक्षा ली थी, गोरखपुर की राजनीति में एक 'एंग्री यंग मैन' की यह धमाकेदार एंट्री थी.


आज मुज़फ़्फ़र नगर मैं मुस्लिमों की कुछ सम्पत्तियों पर प्रापर्टी को जब्त करने के नोटिस चस्पा किये जा रहे हैं, वो भी बिना चार्जसीट के, अभी आरोपियों पर आरोपों को कोर्ट में साबित भी नहीं किया गया है, मगर दहशत फ़ैलाने के लिए ये काम सरकारी कर्मचारियों द्वारा किया जा रहा है, जबकि बहुत से वायरल वीडियो साफ़ दिखा रहे हैं विरोध प्रदर्शन में पुलिस की भूमिका कैसी है...?


सवाल यही है कि क्या कानून से बेगुनाह मुस्लिमों को इंसाफ़ मिल पायेगा, या फिर कानून मुस्लिमों के लिए अंधा है, जबकि उपर दिये कुछ उदाहरण बता रहे हैं कि एक पार्टी और धर्म विशेष के लोगों के लिए यही कानून कैसे संजीवनी बना और उनको शिखर तक पहुंचाया, हम किसी भी हाल में गांधीजी के देश मैं किसी भी प्रकार की हिंसा का समर्थन नहीं करते, मगर जब कानून की तरफ़ से सवाल पैदा किया जाता है तब अफ़सोस ज़रूर करते हैं, क्यूंकि हम जानते हैं आज अदालतों के साथ सरकारी उच्च पदों पर बैठे अधिकारी जानते हैं कि हर दंगे के पीछे कोई वजह होती है जिसका फ़ायदा राजनेता उठाते हैं और बेकसूर लोगों को मिलती है जेल...??

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