ना ही कभी देखा होगा और ना ही कभी सुना होगा भारत में कहीं भी नहीं देखा जाता है और न ही कहीं भी निकलता है काल का जुलूस


समझो भारत न्यूज़ कैराना से पत्रकार सलीम फ़ारूक़ी की रिपोर्ट
 " काल निकले गा कल "




अपने आप में है कैराना की अनुठी मिसाल( काल)


भारत में कहीं भी नहीं देखा जाता है और न ही कहीं भी निकलता है ( काल का जुलूस )



 हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी धर्म नगरी कैराना में आगामी 23 सितम्बर को श्री रामलीला कमेटी कैराना के सानिध्य में जुलूस काल का आयोजन किया जा रहा हैं। यह वहीं जुलूस काल हैं जो इतिहास के पन्नों में कैराना की एक अलग ही पहचान बनाता हैं। क्योंकि यह जुलूस काल हिंदू मुस्लिम एकता का प्रतीक माना गया हैं। रामलीला आयोजन के दूसरे दिन यह जुलूस काल कस्बा कैराना के बाजारों तथा गलियों में घूमता हैं। जिसके पीछे हिंदू मुस्लिम दोनों ही समुदाय के नवयुवक दौड़ते हैं और काल की मार खाते हैं तथा आनंद लेते हैं। बाहर से भी लोग इसे देखने के लिए आते हैं। जो लोग अपने व्यवसाय या नौकरी के कारण कस्बा कैराना से बाहर चले गए हैं
और उनकी भावनाएं आज भी कैराना के इस काल को देखने के कारण जुड़ी हुई है और वह लोग बाहर दूसरे शहरों से काल जुलूस का आनंद लेने के लिए अपना काम छोड़कर कैराना आते हैं। करण नगरी कैराना में सौहार्द की अनूठी मिसाल है काल का जुलूस। सदियों पुरानी परंपरा को जीवित रखने में दोनों ही समुदाय के लोग पूरी जिम्मेदारी के साथ काल जूलुस में अपने दायित्व का निर्वहन करते हैं और इसका आनंद लेते हैं। जहां एक ओर वह लोगों को मारता है तो दूसरी ओर लोग उसकी मार को प्रसाद समझकर ग्रहण करते हैं और उसकी मार का कोई भी समुदाय का व्यक्ति किसी भी प्रकार से बुरा नहीं मानता है। मजहबी दीवार पर रखीं नफरत की नींव कैराना में आकर दफन हो जाती हैं। सालों से चली आ रही परंपरा को देखना हो तो कभी कैराना आइए।
जिले से म6हज 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित कैराना दोनों समुदाय के लोग देशभर में अनोखी मिसाल कायम कर दिखा रहे हैं और कैराना सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल पूरे देश में जुलूस के दौरान देखने को मिलती है। हिंदू परंपरा के अनुसार रामलीला हर शहर में शुरू हो चुके हैं। लेकिन इसी के बीच निकाले जाने वाले काल की परंपरा कहीं देखने को नहीं मिलती।

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