“50 रुपए में इंसानियत की मिसाल: कांधला की नन्हीं जिया ने अपने गुलक से बाढ़ पीड़ितों का दर्द कम किया”

कांधला। कस्बे के मोहल्ला मौलानान निवासी नौशाद की नन्हीं बेटी जिया ने अपने छोटे से गुलक में जमा सभी पैसे बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए दे कर पूरे कस्बे में इंसानियत की मिसाल कायम कर दी। जिया की उम्र सिर्फ़ कुछ साल ही है, लेकिन उसका दिल और सोच बड़े-बड़ों के लिए शर्मशार कर देने वाली है।

जिया की रोजमर्रा की दुनिया में गुड़ियों, चॉकलेट और नए कपड़े ही खुशियाँ होती थीं। मगर पंजाब में आई बाढ़ की हृदय विदारक ख़बर ने उसके मासूम दिल को झकझोर दिया। उसने अपने गुलक में जमा 50 रुपए निकाल कर राहत के लिए देने का फ़ैसला किया। पिता नौशाद ने बताया, “जिया ने मुझसे कहा—‘अब्बू! ममेने गुलक तोड़ी, 50 रुपए भी दे रही हूँ, शायद किसी के काम आएँ।’ उस मासूम आवाज़ में दर्द भी था और इंसानियत का पैग़ाम भी। मेरी आँखें भर आईं। मेरे लिए यह पल जीवनभर याद रहेगा।”

जिया की यह छोटी-सी पहल यह दिखाती है कि इंसानियत के लिए दौलत की आवश्यकता नहीं होती। जो बच्चे अपनी छोटी-छोटी इच्छाओं और खेलों में मग्न रहते हैं, वही अपने दिल से दूसरों के दर्द को समझ सकते हैं।

कस्बे के लोग जिया की इस निहायत साधारण मगर बेहद असरदार मदद की चर्चा कर रहे हैं। हर कोई यह सोच रहा है कि अगर एक नन्हीं बच्ची अपने गुलक से 50 रुपए दे सकती है, तो बड़े-बड़े घरों में बैठे अमीर लोग बाढ़ पीड़ितों के लिए कुछ क्यों नहीं कर रहे? जिनके पास दौलत और सुविधाएँ हैं, क्या उनके दिल में दूसरों के लिए थोड़ी भी जगह नहीं है?

जिया के इस कदम ने पूरे कस्बे को यह संदेश दिया कि मदद करने के लिए दौलत नहीं, केवल संवेदनशीलता और दिल की संवेदना चाहिए। 50 रुपए भले ही किसी की भूख पूरी न कर पाएं, लेकिन उसका जज़्बा लाखों दिलों को हिला गया।

विशेषज्ञों का कहना है कि जिया जैसे छोटे प्रयास बड़े बदलाव की शुरुआत करते हैं। छोटे-से योगदान भी हज़ारों लोगों में जागरूकता पैदा कर सकता है और इंसानियत की मिसाल कायम कर सकता है।

कस्बे के लोगों ने जिया की हिम्मत की तारीफ़ की और उसके जज़्बे को सभी के लिए प्रेरणा बताया। जिया ने साबित कर दिया कि उम्र और दौलत कोई मायने नहीं रखते, बस दिल में दूसरों के लिए दया और दर्द होना ज़रूरी है।

आज जिया का टूटता गुलक न केवल बाढ़ पीड़ितों की मदद करेगा, बल्कि बड़े-बड़े घरों में बैठे अमीरों के लिए आईना बन गया है। यह संदेश साफ़ है कि असली इंसान वही है जो अपने हिस्से की खुशियाँ दूसरों के लिए कुर्बान कर दे।

कस्बे के लोग उम्मीद कर रहे हैं कि जिया की इस नन्हीं पहल से प्रेरित होकर और लोग बाढ़ पीड़ितों के लिए आगे आएँ और इंसानियत की राह में कदम बढ़ाएँ। "समझो भारत" राष्ट्रीय समाचार पत्रिका के लिए पत्रकार गुलवेज़ आलम की खास रिपोर्ट 
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