किसानों की पुकार: अपनी ही ज़मीन पर लूटा पसीना

शामली जनपद का लांक गाँव इन दिनों गहरी पीड़ा से गुजर रहा है। यहाँ के किसानों ने थाना–कोतवाली शामली में एक शिकायती पत्र सौंपा है, जिसमें उन्होंने बीते 45 वर्षों से चली आ रही अपनी ज़मीन संबंधी समस्या और हाल ही में हुई घटनाओं का दर्द बयान किया है।

ग्रामीणों का कहना है कि उनकी कृषि भूमि, जिस पर वह दशकों से खेती कर रहे हैं, विवादित व्यक्तियों द्वारा लगातार क्षति पहुंचाई जा रही है। 13 सितंबर 2025 की दोपहर, चार सहस्त्रधारी व्यक्तियों ने जबरन गन्ने की फसल काट डाली। किसानों ने आरोप लगाया कि उन उपद्रवियों ने खेतों की बाड़ काटकर उनकी मेहनत को तहस-नहस कर दिया। पीड़ितों ने इस घटना के वीडियो और फोटो भी पुलिस को सौंपे, साथ ही 112 पर सूचना भी दी।

लेकिन सबसे दुखद पहलू यह है कि पुलिस द्वारा अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। किसानों का कहना है कि वे पहले से ही आर्थिक नुकसान से जूझ रहे हैं, ऊपर से तैयार गन्ने की फसल नष्ट कर देने से उनकी कमर पूरी तरह टूट गई है।

ग्रामीणों की मांग है कि प्रशासन मौके पर पहुंचकर नुकसान का मुआयना करे और दोषियों के खिलाफ कड़ी कानूनी कार्यवाही की जाए।

यह मामला केवल एक गाँव का नहीं, बल्कि उन लाखों किसानों की आवाज़ है जो अपनी ही ज़मीन पर अपने हक़ के लिए संघर्षरत हैं। सवाल यह है कि जब किसान अपनी जीविका और अस्तित्व की रक्षा के लिए पुलिस–प्रशासन से मदद की गुहार लगाते हैं, तो उन्हें न्याय कब और कैसे मिलेगा?

“समझो भारत” राष्ट्रीय समाचार पत्रिका किसानों की इस लड़ाई को जनता के सामने लाने का संकल्प लेती है। यह केवल खेत-खलिहान की समस्या नहीं, बल्कि देश की खाद्य सुरक्षा और मेहनतकशों की गरिमा से जुड़ा प्रश्न है। समझो भारत राष्ट्रीय समाचार पत्रिका के लिए  शामली, उत्तर प्रदेश से पत्रकार ज़मीर आलम की ख़ास रिपोर्ट 

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