(“समझो भारत” राष्ट्रीय समाचार पत्रिका की विशेष रिपोर्ट)
📍 स्थान: शामली, उत्तर प्रदेश
✍️ रिपोर्टर: अजय बावरा
📞 संपर्क: 7617494695
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परिचय:
शामली शहर, जिसे उत्तर प्रदेश के पश्चिमी छोर का एक महत्वपूर्ण केंद्र माना जाता है, आज एक बेहद गंभीर और शर्मनाक समस्या से जूझ रहा है। शहर के दिल कहे जाने वाले दिल्ली रोडवेज बस स्टैंड पर बना "शहीद वीर अब्दुल हमीद स्मारक", जो हमारे वीर सैनिक की शहादत और बलिदान का प्रतीक है — आज वह अतिक्रमण की राजनीति की बलि चढ़ चुका है।स्मारक जो बना था गौरव का प्रतीक:
नगर पालिका परिषद शामली ने हाल ही में इस स्मारक का सौंदर्यीकरण करवाया। नए डिज़ाइन, झाड़ियों की छंटाई, सजावटी चैन और आकर्षक लाइटिंग ने इस क्षेत्र की रौनक में चार चांद लगा दिए थे। यह कार्य न सिर्फ एक प्रशंसनीय पहल थी, बल्कि जनमानस में देशभक्ति और गौरव की भावना को फिर से जीवित करने वाला प्रयास भी।पूरे शहर में इसकी तारीफें हो रही थीं, लेकिन यह चमक बहुत देर टिक नहीं सकी।
राजनीति की आड़ में अतिक्रमण:
स्मारक के चारों ओर अब ठेले, खोमचे, अवैध ढाबे और रेहड़ी वाले डेरा जमाए बैठे हैं। स्थानीय लोगों और रेस्टोरेंट "छोटी हवेली" के मालिक का साफ आरोप है कि यह अतिक्रमण वार्ड के सभासद पति के संरक्षण में दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है।
यहां तक कि स्मारक की सुरक्षा और सजावट के लिए जो चैन लगाई गई थी, उसे भी ठेली संचालकों द्वारा धीरे-धीरे काटकर हटा दिया गया।
इससे न केवल सौंदर्य को ठेस पहुंची, बल्कि सार्वजनिक संपत्ति का अपमान भी हुआ।प्रशासन की चुप्पी और भविष्य की भयावह आशंका:
लाखों रुपये खर्च करके बनाया गया स्मारक धीरे-धीरे खंडहर में तब्दील होने के कगार पर है। स्थानीय नागरिकों का कहना है
कि अगर जल्द ही इस अतिक्रमण पर प्रशासन ने ध्यान नहीं दिया, तो स्थिति हिंसक संघर्ष में बदल सकती है। क्षेत्र में तनाव की स्थिति पैदा हो चुकी है और कोई बड़ा खून-खराबा होने की आशंका को नकारा नहीं जा सकता।क्या यह सिर्फ अतिक्रमण है? या कुछ और…
यह मुद्दा केवल जगह घेरने या व्यापार फैलाने तक सीमित नहीं है। यह उस राष्ट्रीय भावना का अपमान है जिसे हमने शहीद वीर अब्दुल हमीद जैसे योद्धाओं की स्मृति में संजो कर रखा है। यह उस राजनीति का काला चेहरा है जो समाज सेवा की बजाय सत्ता और स्वार्थ के लिए जनता की भावनाओं से खेल रही है।
समाधान क्या है?
- नगर पालिका को चाहिए कि वह इस स्मारक की पूरी जिम्मेदारी अपने हाथ में ले।
- अतिक्रमण हटाने के लिए विशेष अभियान चलाया जाए।
- स्थायी निगरानी तैनात की जाए जो भविष्य में पुनः अतिक्रमण न होने दे।
- इस मुद्दे को राजनीति से अलग रखकर केवल शहर और देशहित में देखा जाए।
- स्थानीय नागरिकों को भी जागरूक और संगठित होकर स्मारक की सुरक्षा में सहयोग देना चाहिए।
निष्कर्ष:
"शहीद स्मारक केवल पत्थरों का ढांचा नहीं होता, वह हमारी आत्मा का एक हिस्सा होता है।"अगर हम इसे अतिक्रमण, राजनीति और लापरवाही के हवाले कर देंगे तो यह सिर्फ एक स्मारक नहीं, हमारी संवेदनाओं और राष्ट्रीय चरित्र का भी पतन होगा।
"समझो भारत" राष्ट्रीय समाचार पत्रिका शहर के हर नागरिक से अपील करती है कि
"इस बार खामोश मत रहो — आवाज़ उठाओ, स्मारक बचाओ!"
📞 रिपोर्टिंग/शिकायत हेतु संपर्क करें: 8010884848
📍 स्थान: शामली बस स्टैंड
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✍️ रिपोर्टर: अजय बावरा
📰 समझो भारत – राष्ट्र की ज़ुबान, जनता की आवाज़।
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