प्रस्तावना:
सोशल मीडिया के इस युग में जहां हर दिन नए चेहरे रातों-रात सितारे बन जाते हैं, वहीं कई बार प्रसिद्धि की यह होड़ मर्यादाओं और नैतिक सीमाओं को लांघ जाती है। उत्तर प्रदेश के सम्भल जिले के शहबाजपुर कलां गांव से उभरा महक और परी विवाद इसी सामाजिक विडंबना की ताज़ा मिसाल बन गया है।
हाल ही में इस प्रकरण ने जब सोशल मीडिया पर हलचल मचाई, तो समाज के हर वर्ग में इस पर चर्चाएं शुरू हो गईं। जहां एक ओर कुछ लोगों ने इसे युवाओं की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का पक्ष बताया, वहीं दूसरी ओर एक बड़ा तबका इससे आहत नजर आया और इसे समाज की नैतिकता पर हमला बताया।
विवाद की पृष्ठभूमि:
शहबाजपुर कलां, थाना असमोली, जनपद सम्भल से संबंधित यूट्यूबर महक और परी पर अश्लील कंटेंट बनाने और सोशल मीडिया पर साझा करने का आरोप लगा। 14 जुलाई 2025 को इस मामले में शिकायत दर्ज होने के बाद स्थानीय पुलिस ने त्वरित कार्रवाई करते हुए 15 जुलाई को दोनों को गिरफ्तार किया और न्यायालय में पेश किया।
हालांकि, चंदौसी न्यायालय से उन्हें उसी दिन ज़मानत भी मिल गई।
पूछताछ में खुलासा:
पुलिस सूत्रों के अनुसार, पूछताछ के दौरान महक और परी ने स्वीकार किया कि उन्होंने वायरल होने और प्रसिद्धि पाने के लिए जानबूझकर यह विवादित कंटेंट तैयार किया था।
उनका तर्क था कि आज के डिजिटल युग में जब तक आप कुछ हटकर, विवादास्पद या उत्तेजक नहीं करते, तब तक कोई आपको देखता तक नहीं।
यह बयान एक तरफ जहां उनके सोशल मीडिया रणनीति को दर्शाता है, वहीं दूसरी ओर यह युवाओं के अंदर तेजी से पनप रहे “वायरल होने की भूख” की भी गवाही देता है।
अब तक की कार्रवाई और आश्वासन:
ज़मानत मिलने के बाद महक और परी ने यह स्पष्ट किया है कि वे भविष्य में किसी भी प्रकार का अश्लील या आपत्तिजनक कंटेंट साझा नहीं करेंगी।
महक ने यह भी कहा कि अब वह केवल अपने वायरल डायलॉग्स जैसे –
“#महक परी ही कह दे”
जैसे सामाजिक और मनोरंजक स्लोगन तक ही सीमित रहेंगी और समाज की मर्यादा का पूर्ण पालन करेंगी।
यह सिर्फ एक मामला नहीं... एक प्रवृत्ति है:
यह मामला एक संकेत है – कि हमारे देश के ग्रामीण और कस्बाई इलाकों तक भी सोशल मीडिया का प्रभाव तेजी से फैल चुका है।
आज “फेम” और “फॉलोअर्स” की चाह में युवा वर्ग कई बार नैतिकता, संस्कार और समाज की मर्यादा को ताक पर रख देता है।
कुछ चिंताजनक प्रश्न:
- क्या हम अपने युवाओं को यह नहीं समझा पा रहे कि लोकप्रियता और प्रतिष्ठा में फर्क होता है?
- क्या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मतलब अश्लीलता और भड़काऊ कंटेंट की छूट है?
- क्या समाज और अभिभावकों की जिम्मेदारी खत्म हो गई है?
एक पत्रकार की नज़र से:
इस मामले की रिपोर्टिंग करते हुए यह साफ महसूस हुआ कि महक और परी जैसे युवा ना तो अपराधी हैं, ना ही बदनीयत से ऐसा कुछ कर रहे थे – बल्कि वे इंटरनेट की खतरनाक चकाचौंध के शिकार हैं।
उनका उद्देश्य भले ही प्रसिद्धि पाना रहा हो, लेकिन जिस रास्ते को उन्होंने चुना, वह गलत था और समाज में भ्रम फैलाने वाला भी।
समाज का क्या कर्तव्य है?
- सोशल मीडिया की शिक्षा स्कूल और कॉलेज स्तर पर दी जाए।
- अभिभावकों को बच्चों के डिजिटल व्यवहार पर निगरानी रखनी चाहिए।
- प्रशासन को संयम, संवाद और सुधार की नीति अपनानी चाहिए – केवल दंड नहीं।
निष्कर्ष:
महक और परी का यह मामला समाज के लिए एक आईना है। इसमें दोष केवल दो लड़कियों का नहीं, बल्कि उस तंत्र का है जिसने उन्हें यह विश्वास दिला दिया कि “जो दिखेगा, वही बिकेगा” – चाहे वह किसी भी कीमत पर क्यों ना हो।
अब वक्त है कि हम सभी इस डिजिटल दौर की नई पीढ़ी को लोकप्रियता नहीं, प्रतिष्ठा का महत्व समझाएं।
सोशल मीडिया एक ताक़त है, लेकिन सही दिशा में... नहीं तो यही ताक़त समाज के ताने-बाने को तोड़ सकती है।
📌 रिपोर्टिंग – ज़मीर आलम
प्रधान संपादक, समझो भारत राष्ट्रीय समाचार पत्रिका
📍मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश
📞 8010884848
📧 samjhobharat@gmail.com
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