फूलों का ताज़िया: आगरा के इमामबाड़े में शहादत की याद और अकीदत का गुलदस्ता

📍 स्थान: पाय चौकी, आगरा, उत्तर प्रदेश

🖊️ रिपोर्टर: आमिर खान
📰 समझो भारत न्यूज़
📅 तारीख: 3 जुलाई 2025


मोहर्रम का महीना—ग़म, सब्र और वफ़ा की मिसाल, जिसमें हर तारीख अपने भीतर करबला की एक अलग दास्तान समेटे होती है। आज 7वीं मोहर्रम की तारीख को आगरा के पाय चौकी स्थित इमामबाड़े में वो नज़ारा देखने को मिला, जो सिर्फ आंखों को ही नहीं, दिलों को भी छू जाता है।

फूलों से सजा ताज़िया, अकीदत और मोहब्बत की महक बिखेरता हुआ, जब इमामबाड़े में रखा गया, तो मानो हर रंग-बिरंगा गुलदस्ता शोहदाए करबला की याद में एक जिंदा दस्तावेज़ बन गया।

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ताज़िए की बहार और अकीदतमंदों का हुजूम

सजावट ऐसी कि देखने वाला बस देखता ही रह जाए। गुलाब, गेंदा, बेला और मोगरे के फूलों से सजे इस खास ताज़िए ने हर शख्स को अपनी तरफ़ खींच लिया। नज़र देने वाले हाथ और नम आंखें, जैसे हर फूल में इमाम हुसैन (अ.स) की कुर्बानी को महसूस कर रही थीं।

🤲 नज़र और दुआओं का साया

लोगों ने नज़र पेश की—कोई चादर लेकर आया, कोई अगरबत्ती, तो कोई सिर्फ़ दिल की दुआओं के साथ हाजिर हुआ। हर अकीदतमंद का एक ही मक़सद था: "शहादत की इस मिसाल को सलाम पेश करना।" इमामबाड़े में गूंजती सन्नाटे भरी आवाज़ों में दुआएँ थीं, मुनाजात थीं और सच्चे दिलों की सिसकियाँ।

📿 हर साल निभाई जाती है ये रस्म

यह फूलों का ताज़िया कोई आम रस्म नहीं, बल्कि सदियों से निभाई जा रही एक परंपरा है जो सातवीं मोहर्रम को अदा की जाती है। ये रस्म न सिर्फ़ करबला की जंग और शहादत की याद ताज़ा करती है, बल्कि एकता, सब्र और इंसानियत के पैगाम को भी आम करती है।


समझो भारत न्यूज़ इस अज़ीम मौके की गवाह बनी और आपके लिए लाया वो लम्हा, जो ताज़िए की खूबसूरती और करबला की शहादत, दोनों को बयाँ करता है।

🕊️ "हुसैन (अ.स) वो नाम है जो ज़ुल्म के सामने झुकता नहीं, और ताज़िया वो प्रतीक है जो हर साल हमें ये याद दिलाता है।"

📌 बने रहिए समझो भारत न्यूज़ के साथ, जहां हर ख़बर सिर्फ़ ख़बर नहीं, बल्कि एक एहसास होती है।


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✒️ समझो भारत| आमिर खान, आगरा

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