लेखक: ज़मीर आलम, "समझो भारत", खतौली (मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश)
"कुछ लोग दुनिया से जाते नहीं, रूह बनकर दिलों में बस जाते हैं..."
दिल्ली–देहरादून राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित खतौली का नाम जब भी लिया जाएगा, तो एक नाम अदब और एहतराम से ज़रूर लिया जाएगा — शारिक राणा साहब का। चीतल ग्रैंड होटल के नाम से जानी जाने वाली यह ऐतिहासिक सराय, वर्षों से मुसाफ़िरों के दिलों में जगह बनाए हुए है। लेकिन आज यह खबर हर दिल को उदास कर रही है कि इस प्रतिष्ठान के संस्थापक और मालिक शारिक राणा अब इस फानी दुनिया में नहीं रहे।
दिल्ली के एक अस्पताल में इलाज के दौरान उनका इंतकाल हो गया। वे पिछले कुछ समय से बीमार चल रहे थे। जैसे ही यह खबर खतौली और आसपास के क्षेत्रों में पहुंची, हर ज़ुबान पर खामोशी और हर आंख में नमी तैर गई। होटल इंडस्ट्री ही नहीं, सामाजिक हलकों और व्यापारी वर्ग में भी यह खबर गहरे सदमे का सबब बनी।
चीतल ग्रैंड: एक सपना, जो उन्होंने जिया
शारिक राणा ने जब होटल चीतल ग्रैंड की नींव रखी थी, तब शायद किसी ने नहीं सोचा था कि यह जगह आने वाले वर्षों में सिर्फ एक होटल नहीं, बल्कि "सफर का ठिकाना" बन जाएगी। दिल्ली से देहरादून की ओर जाने वाले हजारों मुसाफ़िरों के लिए यह जगह सिर्फ पेट भरने का नहीं, दिल भरने का ठिकाना रही है।
यहां की बिरयानी की खुशबू हो, गरमागरम पराठों का स्वाद हो या चाय की चुस्की — हर चीज़ में उनकी मेहमाननवाज़ी की तहज़ीब घुली रहती थी। लेकिन सबसे खास बात थी उनकी मुलायम मुस्कान, विनम्र स्वभाव और दिल से मिलते हुए हाथ, जिसने हर आने वाले को अपना सा महसूस कराया।
एक समाजसेवी, एक मार्गदर्शक
शारिक राणा सिर्फ एक सफल कारोबारी नहीं थे। वे एक समाजसेवी, एक रहनुमा और नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा थे। होटल के जरिए उन्होंने न केवल खतौली को एक पहचान दिलाई, बल्कि दर्जनों लोगों को रोज़गार, सम्मान और स्थायित्व भी प्रदान किया। अपने स्टाफ को वे कभी 'कर्मचारी' नहीं बल्कि 'परिवार' कहा करते थे।
वे अकसर कहते, "सच्ची मेहमाननवाज़ी वो है, जहां मुसाफ़िर रुक कर फिर आने की दुआ करे।" और उन्होंने अपनी इस बात को पूरी शिद्दत से निभाया।
शोक की लहर, नम आंखों से दी विदाई
उनके निधन पर खतौली का बाजार सन्नाटे में डूबा रहा। व्यापार मंडल, होटल संघ, सामाजिक संगठन, स्थानीय नेता और आम नागरिक – हर किसी ने उनकी याद में दो मिनट की खामोशी और नम आंखों से श्रद्धांजलि अर्पित की।
उनकी अंतिम यात्रा में भीड़ का जनसैलाब इस बात का गवाह था कि शारिक राणा साहब केवल एक नाम नहीं, बल्कि एक इंसानियत की मिसाल थे। उनकी कमी को भर पाना शायद नामुमकिन है।
"समझो भारत" की ओर से श्रद्धांजलि
"समझो भारत" परिवार की ओर से हम शारिक राणा साहब के इंतकाल पर गहरा शोक व्यक्त करते हैं। हम ईश्वर से दुआ करते हैं कि उन्हें जन्नतुल फिरदौस में आला मुक़ाम अता हो और उनके परिवार को इस दुख को सहने की हिम्मत और सब्र मिले।
“अलविदा शारिक राणा साहब, खतौली आपकी शख्सियत को कभी भूल नहीं पाएगा। आप तो चले गए, लेकिन आपके अदब, तहज़ीब और मोहब्बत की खुशबू हमेशा इस सरज़मीं पर महकती रहेगी।”
रिपोर्टर: ज़मीर आलम
स्थान: खतौली, मुजफ्फरनगर
संपर्क: 8010884848 | samjhobharat@gmail.com
#SamjhoBharat | राष्ट्रीय समाचार पत्रिका
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