"नाजिर सिद्दीकी उर्फ साहिर सिद्दीकी, मो. मांकू तिलहर, शाहजहांपुर बेईमान, 420 कबूतर बाज है। सावधानी इससे रहें!"
पहली नजर में लगेगा कि ये कोई मज़ाक है। लेकिन जब गौर से समझेंगे तो दिमाग की बत्ती गुल और हंसी का बम एक साथ फूटेगा! ऐसा प्रचार न अखबार में देखा, न टीवी पर, न सोशल मीडिया पर... ये तो सीधे “करेंसी मार्केटिंग” है!
🪙 जब नफ़रत भी रचनात्मक हो जाए...
जिसने भी ये किया, मानना पड़ेगा कि उसने ग़ुस्से को “कला” में बदल दिया। बदला भी ऐसा कि नोट पर छाप दिया – अब ये नोट जाने कितनों के हाथों घूमेगा और हर बार “साहिर सिद्दीकी” का नया चरित्र उजागर होगा।
अब सोचिए, जब कोई सब्ज़ी वाला ये नोट लेगा, और पढ़ेगा कि “420 कबूतरबाज़ है” – तो या तो ठहाके लगाएगा या सीधे साहिर को फोन करके बोलेगा – “भाई तू तो फेमस हो गया!”
😆 व्यंग्य की कला का नया रूप!
भारत देश है जहां "सत्य परेशान हो सकता है, पराजित नहीं!" और शायद इसी सोच के तहत किसी सताए हुए बंदे ने अपनी रचना शक्ति को बैंक नोट पर उतार दिया। अब ये सिर्फ एक नोट नहीं रहा – ये एक चलता-फिरता एफआईआर है।
यह नोट चुपचाप कह रहा है –
"किसी को इतना मत सताओ कि वह तुम्हारा प्रचार प्रसार इस तरह करने लगे!"
😂 पाठकों के लिए संदेश:
अगर आप कभी प्रेम में धोखा खाएं, व्यापार में ठगे जाएं या दोस्त की फरेबबाज़ी सहें – तो सीधा पुलिस स्टेशन मत जाइए...
एक 100 का पुराना नोट लीजिए, और उसमें लिख दीजिए:
"राजू यादव – मोहल्ला मस्तानपुर – 420 नंबर का दिमाग है, लेकिन दिल का बकवास है!"
आपका प्रचार नोटबंदी से पहले के नोटों पर ज़िंदा रहेगा।
🔚 निष्कर्ष:
हमारे देश में व्यंग्य, दर्द, बदला और रचनात्मकता – सबका अनोखा मेल है। ये नोट इसका जीता-जागता उदाहरण है।
अब अगली बार जब आप किसी नोट को हाथ में लें, तो उसके ऊपर भी नज़र डालिए – क्या पता वहाँ भी कोई ‘लोकल लव स्टोरी’ या ‘फ्रॉड डायरी’ छपी हो।
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अगर आपको भी कोई ऐसा मज़ेदार नोट मिला हो, तो ज़रूर शेयर कीजिए… क्या पता अगला ब्लॉग आपका हो!
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