लेखक:
शौकीन सिद्दीकी, जिला ब्यूरो-चीफ, समझो भारत
कैमरे की नज़र से: रामकुमार चौहान
शामली, उत्तर प्रदेश।
हर रोज़ की तरह एक आम सुबह, लेकिन एक युवक के लिए वो सुबह ज़िंदगी और मौत के बीच की दीवार बन गई। बात है 27 जून 2025 की सुबह करीब 10:30 बजे की, जब पंसारीयान, चांद मस्जिद निवासी शौकिन पुत्र लतीफ, अपनी रोज़मर्रा की ड्यूटी निभाकर लौट रहा था। उसे क्या पता था कि वो रास्ता केवल घर की ओर नहीं, अस्पताल की ओर मोड़ लेगा।
शौकिन जो पहले इरशाद की दुकान पर काम करता था, अब फिरोज फल वाले की दुकान पर कार्यरत है। लेकिन पुराने काम की लेन-देन की टीस अब भी ज़िंदा थी। उसी पुराने हिसाब को लेकर जब इरशाद ने रास्ते में शौकिन को रोका, बात शुरू गिनती से हुई और गाली-गलौच पर आ गई। जब शौकिन ने अपनी आर्थिक मजबूरी बताते हुए थोड़ा समय माँगा, तो इरशाद ने उसे अपमानित करना शुरू कर दिया।
बात यहीं नहीं रुकी। इरशाद के साथ आए उसके साथी — आशु, नौशाद और जोना — लाठी-डंडों और धारदार हथियारों से लैस थे। उन्होंने शौकिन पर ऐसा हमला बोला, मानो कोई पुरानी दुश्मनी निभा रहे हों। सिर और शरीर पर गंभीर वार कर शौकिन को लहूलुहान करके फरार हो गए।स्थानीय लोगों और परिजनों की मदद से शौकिन को पहले नजदीकी सरकारी अस्पताल ले जाया गया, लेकिन हालत गंभीर होने के कारण उसे जिला संयुक्त चिकित्सालय रेफर कर दिया गया। बीते तीन दिन से शौकिन ज़िंदगी और मौत से लड़ रहा है — एक बेवजह की दरिंदगी के कारण।
अब, अस्पताल के बिस्तर से शौकिन ने पुलिस अधीक्षक को प्रार्थना पत्र सौंप कर जान-माल की सुरक्षा की मांग की है। उसने इस जानलेवा हमले के लिए इरशाद और उसके साथियों पर सख्त कानूनी कार्रवाई की मांग की है।
सवाल खड़े करता है ये हादसा
- क्या पैसे के लेन-देन का हल हिंसा में ही है?
- कब तक गरीब मज़दूरों को अपनी मेहनत की कीमत जान से चुकानी होगी?
- क्या ऐसे अपराधियों पर सख़्त कार्रवाई होगी या फिर एक और फ़ाइल धूल खाती रहेगी?
शौकिन का परिवार आज भय के साए में जी रहा है। न केवल इंसाफ की उम्मीद लिए, बल्कि आने वाले हर दिन की दहशत के साथ। ये मामला न सिर्फ कानून-व्यवस्था पर सवाल है, बल्कि हमारे समाज के बदलते मूल्यों का भी आईना है।
हमारी संस्था समझो भारत और हम सबकी ज़िम्मेदारी है कि शौकिन जैसे पीड़ितों को न्याय दिलाने में उनकी आवाज़ बने रहें। प्रशासन से निवेदन है कि मामले को गंभीरता से लेकर दोषियों पर जल्द से जल्द कार्रवाई हो।
आप क्या सोचते हैं?
क्या पुलिस को तुरंत गिरफ्तारी करनी चाहिए?
क्या लेन-देन के विवादों के लिए स्थानीय मध्यस्थता तंत्र की ज़रूरत है?
कमेंट में अपनी राय साझा करें और इस ब्लॉग को अधिक से अधिक शेयर करें, ताकि शौकिन को न्याय मिल सके।
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#समझोभारत_की_कलम_से
अस्वीकृति (Disclaimer): इस रिपोर्ट में वर्णित घटनाएं पीड़ित परिवार के बयान व प्राप्त प्रार्थना पत्र पर आधारित हैं। पुलिस जांच की अंतिम रिपोर्ट आने तक किसी पर अपराध सिद्ध नहीं माना जाता।
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