पत्रकारों से "उम्मीद" रखते हो तो पत्रकारों के भावनाओं को समझो पत्रकार कोई अलाउद्दीन का चिराग नहीं जो जब चाहे पूरा कर ले


जब कोई व्यक्ति चौकी थाने की चक्कर लगाता है हार थक जाता है तब वह पत्रकार के पास आता है।


जब किसी व्यक्ति के साथ धोखाधड़ी हो जाती है ब्लैकमेल किया जाता है अपना सब कुछ गवा देता है जब उसे कोई रास्ता नहीं दिखता था वह एक पत्रकार के पास आता है।


जब चुनाव आता है प्रचार प्रसार करवाना होता है तो बड़े-बड़े नेता मंत्री भी एक पत्रकार से संपर्क साधते हैं।


जब किसी के साथ अपराधी अपराध कर देता है भ्रष्टाचार कर देता है जब वह चारों तरफ मारे मारे फिरते हैं उनका कोई सुनने वाला नहीं होता है तब वह एक पत्रकार के पास आता है।


पत्रकार से अपनी आपबीती सुनाते हैं पत्रकार से न्याय की गुहार लगाते हैं मीडिया के माध्यम से अपनी बातों को पब्लिश कराने के लिए पत्रकारों से गिड़गिड़ाते आते हैं।



जब पत्रकार इनके लिए शासन प्रशासन से सवाल करता है इनके कामों को करवा देता है तब बड़ी आसानी से पत्रकारों को भूल जाते हैं।


यहां तक कि अपने आप को बचाने के लिए अपने परिवार को बचाने के लिए पत्रकार के खिलाफ झूठा एप्लीकेशन देकर अपने विरोधी को बचाना पड़े सिस्टम में बैठे लोगों के लिए वह भी कर देते हैं।


काम करवाने के नाम पर न्याय पाने के नाम पर अन्य जगहों पर खेत बेचकर जमीन बेचकर जेवर को गिरवी रख कर अपना काम करवा लेते हैं लेकिन एक पत्रकार को एक चाय पिलाने के लिए उसके गाड़ी में तेल डलवाने के लिए कभी नहीं सोचते।



जबकि पत्रकार अपना हरजा भी करता है अपना खर्चा भी करता है और दूसरों के काम के लिए अपने समय को भी बर्बाद करता है फिर भी लास्ट में एक पत्रकार को सिर्फ और सिर्फ आलोचनाओं का सामना करना पड़ता है।


हमारा कहने का मतलब यही है कि मास्टर का फीस हो सकता है वकील का फीस हो सकता है डॉक्टर का फीस हो सकता है थाने चौकी पर चढ़ावा चढ़ाया जा सकता है तो क्या पत्रकार को एक दिहाड़ी मजदूर समझ कर उसे उसकी मजदूरी नहीं दिया जा सकता है।


यदि कोई पत्रकार किसी से काम के बदले अपना समय बर्बाद करने के बदले अपना हर जा खर्चा करने के बदले किसी से ₹500 ले लेता है तो क्या वह दलाल हो जाता है वह बिकाऊ हो जाता है ऐसा जो लोग सोचते हैं वह अपने सोच को बदल दें क्योंकि पत्रकार को न तो सरकार पैसे देती है और ना कोई संस्था और ना पत्रकार का कोई सैलरी होता है उसका मेन जरिया विज्ञापन होता है इसलिए यह पत्रकारों से उम्मीद रखते हो तो पत्रकारों को विज्ञापन देने में आनाकानी ना करो।



और मैं अपने पत्रकार बंधुओं को भी बता देना चाहता हूं कि आप भी अपना एक निर्धारित शुल्क रख दीजिए यह कोई अपराध की श्रेणी में नहीं आता क्योंकि आप किसी के काम के लिए जाते हो तो आपका पेट्रोल खर्चा होता है आप किसी का खबर लिखते हो तो आपका मोबाइल का बैलेंस डाटा खत्म होता है।


क्या जवाब का गाड़ी का तेल खत्म हो जाएगा आप पैदल लेकर चलेंगे तो कोई ऐसा इंसान मिलेगा कि आपके गाड़ी में तेल डलवा दें आपके जेब में पैसे नहीं हैं।


जब आपके मोबाइल में डाटा खत्म हो जाता है बैलेंस खत्म हो जाता है तो क्या कोई ऐसा है कि आपका खबर पब्लिश नहीं हो पाता तो आपसे पूछता है कि सर आप ऑनलाइन क्यों नहीं है आपका खबर नहीं आ रहा है क्या दिक्कत है आपको क्या हुआ आपके मोबाइल में बैलेंस डलवा देता है।



बिल्कुल नहीं हमारे तमाम पत्रकार बंधु हैं जो पत्रकारिता के साथ-साथ अपना जीव का चलाने के लिए अपने परिवार का पालन पोषण करने के लिए छोटी मोटी दुकान करते हैं प्राइवेट नौकरी करते हैं फिर भी लोगों के नजरों में दलाल बिकाऊ के नाम से जाने जाते हैं।


इसलिए एक निर्धारित शीश पत्रकारों का भी होना चाहिए यदि कोई भी पत्रकार के पास अपनी समस्या को लेकर आता है वह विज्ञापन के रूप में या फीस के रूप में पत्रकार का मदद करना उसका फर्ज बनता है।


तभी पत्रकार सच्चाई के साथ निर्भीक होकर निष्पक्ष खबर लिखकर आपकी सेवा कर पाएगा।


हो सकता है कि कुछ लोग हमारे बातों से सहमत हो लेकिन मुझको पता है कि कुछ लोग असहमत भी होंगे।



बड़े-बड़े टीवी चैनल वाले बड़े बड़े अखबार वाले हम मानते हैं सैलरी पाते हैं लेकिन क्या एक आम आदमी की समस्याओं को वह लोग आसानी से दिखाते हैं जमीनी स्तर से जुड़कर एक वही पत्रकार काम करता है जिसको सैलरी नहीं मिलता या तो छोटे अखबार से होगा या फिर स्वतंत्र पत्रकार होगा या फिर सोशल मीडिया पर एक्टिव होकर काम करता होगा।



बड़े-बड़े टीवी चैनल वाले बड़े बड़े अखबार वाले नेता मंत्री रसूखदार पूंजीपतियों देश विदेश की खबरों में उलझे रहते हैं फिर वह एक आम आदमी का जन समस्याओं का खबर कैसे कवर कर पाते होंगे आप खुद सोच सकते हैं। 

जय हिन्द जय भारत


ज़मीर आलम

रास्ट्रीय अध्यक्ष

भारतीय स्वतंत्र पत्रकार एसोसिएशन ( रज़ि0 )

बी0-5/312, यमुना विहार, दिल्ली

8010884848

7599250450

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