शामली नगर पालिका परिषद का एक और बड़ा कारनामा


दुकानों के आवंटन फर्जी प्रमोशन के बाद अब नाम परिवर्तन के विज्ञापन के नाम पर ढाई सौ की जगह आम आदमी से वसूले जा रहे 1000 रुपए, इतना ही नहीं जो नागरिक अपनी इच्छा से प्रकाशन कराना चाहते हैं उसको ऐसे समाचार पत्रों का नाम बता दिया जाता है जिनमें 3 से ₹4000 विज्ञापन पर खर्च होता है। और बिना मान्यता के अखबार में भी प्रकाशन कराए जा रहे हैं विज्ञापन, अपने चहेतों को लाभ देने के उद्देश्य से काटी जा रही है आम नागरिकों की जेब,जबकि नियम और व्यवहारिकता यह कहती है कि ऐसे प्रॉपर्टी संबंधी विज्ञापनों को स्थानीय समाचार पत्रों में प्रकाशित कर आना चाहिए जिनको प्रदेश व केंद्र सरकार से विज्ञापन हेतु मान्यता प्राप्त हो लेकिन हो इसके विपरीत रहा है। आपको बता दें कि यूं तो नगर पालिका परिषद आए दिन चर्चाओं में रहती है चाहे वह अपने चहेतों को लाभ देने के उद्देश्य से आवंटित की गई दुकान हो, जिनको बाद में मंडला आयुक्त द्वारा निरस्त कर दिया गया चाहे  चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को प्रमोशन देकर क्लर्क बनाने का प्रकरण हो जिसको बाद में निरस्त का आर्डर आने पर नीचा देखना पड़ा हो अब एक बार फिर नगर पालिका परिषद चर्चाओं में है जहां आज तक नगर पालिका परिषद में किसी भी नागरिक को किसी भी अपनी प्रॉपर्टी के आदान-प्रदान में नाम परिवर्तन कराने के लिए जो आवेदन किया जाता है उस आवेदन के पश्चात आवेदक को किसी भी मान्यता प्राप्त समाचार पत्र में नाम परिवर्तन का विज्ञापन छपा ना होता है जिसके लिए नगर पालिका परिषद द्वारा मात्र ₹250 प्रकाशन निर्णय लिया जाता था जोकि आम नागरिक की सुविधा को देखते हुए नगर पालिका परिषद द्वारा पैसा लेकर विज्ञापन प्रकाशित करा दिया जाता था जब तक  ऐसे विज्ञापन स्थानीय समाचार पत्रों प्रकाशित होते है लेकिन अब अधिकारी कर्मचारियों की मिलीभगत के चलते उन्हीं नागरिकों से ₹1000 रुपए लिए जा रहे हैं जिसमें आपसी बंदरबांट करते हुए समाचार पत्र में विज्ञापन छपाये जा रहे इतना ही नहीं जो आवेदक स्वयं प्रकाशन कराना चाहते हैं उनको ऐसे समाचार पत्रों का नाम बता दिया जाता है जिनमें उनका खर्च 3 से ₹4000 तक का आता है जिनके प्रकाशन के रेट अधिक है और उनको कहा जाता है कि इन्हीं समाचार पत्र में प्रकाशित विज्ञापन मान्य होगा जिससे आम आदमी है वहीं यदि कर्मचारियों को विज्ञापन दिया जाए तो वह अपनी जेब भरते हैं जहां ढाई सौ का खर्च  के ₹1000 वसूले जाते हैं और इतना ही नहीं ऐसे समाचार पत्रों में भी विज्ञापन प्रकाशित करा दिए जाते हैं जिनको कहीं से भी विज्ञापन मान्यता नहीं है यूपी से न ही केंद्र सरकार से जबकि अधिनियम एवं व्यावहारिकता की बात करें तो ऐसे प्रॉपर्टी संबंधी विज्ञापनों को स्थानीय समाचार पत्रों में ही प्रकाशित कर आना चाहिए जिनको नियम अनुसार केंद्र सरकार व प्रदेश सरकार द्वारा विज्ञापन हेतु मान्यता दी गई हो यदि जानकार सूत्रों की सच माने तो कुछ सभासदों द्वारा इसका विरोध भी किया गया था लेकिन फिर भी अधिकारी कर्मचारी तथा 2 सभासदों द्वारा उक्त प्रकरण में कोई सुधार न करते हुए बंदरबांट को ही जारी रखें अब देखना यह होगा कि आखिर इस तरीके से कब तक लगता रहेगा आम नागरिक को चूना कब तक लगाती रहेगी नगर पालिका परिषद शामली,  यह तो आने वाला समय ही बताएगा लेकिन इतना तय है कि नगर पालिका परिषद अपने कार्यकलापों के चलते एक बार फिर से चर्चा में है।

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